June 23, 2024

78. The Dove / कपोत

Question / प्रश्न 78. :

ऋषि और देव ?

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Answer : उत्तर

महान ऋषि शौनक का यश / यशस् अपने उस विशाल विश्वविद्यालय में सहस्रों जिज्ञासु छात्रों के लिए अध्ययन करने हेतु दीर्घ काल तक आवास और शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था करने के लिए सुविख्यात था।

उन महर्षि के मन में उठा एक प्रश्न उन्हें निरन्तर व्याकुल किया करता था। वह यह था : 

यद्यपि मेरा समस्त ज्ञान परस्पर आश्रित निष्कर्षों पर आधारित और इसलिए अपूर्ण है, वह क्या है, जिसे जान लेने पर वह कुछ तत्वतः जाना जा सकता है?

इसी प्रश्न का उत्तर खोजते हुए वे महान् ऋषि अङ्गिरस् या अङ्गिरा ऋषि के आश्रम में विधिवत् हाथों में समिधा लेकर उनके समक्ष प्रस्तुत हुए थे।

महर्षि अङ्गिरा उस समय अपने आसन पर विराजमान थे और उन्होंने स्मितपूर्वक ऋषि शौनक पर दृष्टिपात किया। 

महर्षि अङ्गिरा के आश्रम में अनेक दूसरे ऋषि प्रारब्धवश श्वान, बिडाल, उलूक, शुक और कपोत के रूप में अलग अलग देह धारण कर पारस्परिक सौजन्यता सौहार्द और स्नेहपूर्वक निवास करते थे। ये सभी ऋषि एक दूसरे से केवल भावतरंगों के माध्यम से परस्पर संवाद करते थे।

श्वान को ज्ञात था कि वे ही स्वयं ऋषि शौनक के आश्रम में भी श्वान के रूप में उनके साथ रहते थे और उन्होंने ही ऋषि अङ्गिरस् / अङ्गिरा और उनके आश्रम के स्थान का पता लगाया, और ऋषि शौनक को वहाँ जाने का संकेत किया था।

ऋषि शौनक अपने उस श्वान के ही साथ चलते हुए वहाँ  अङ्गिरा ऋषि के आश्रम तक आ सके थे।

ऋषि अङ्गिरा के आश्रम में यत्र तत्र हिरण (Deer) और कौशिक (Rabbit) भी स्वच्छन्द और निर्भय होकर विचरण किया करते थे, और इसी प्रकार दूसरे भी अनेक पक्षी और वन्य जीव भी वहाँ आया जाया करते थे।

पातञ्जल योगदर्शन के अनुसार :

अहिंसा में प्रतिष्ठित हुए महानुभाव के समीप सभी प्राणी अपने नैसर्गिक वैर भाव को भुला देते हैं। 

यही वहाँ पर प्रत्यक्ष ही दृष्टिगत होता था।

ऋषयः पूतपापाः गतकल्मषाः

(पूतिं प्राप्तवान् इति पूतिन / पुतिनः अपि)

सनातन धर्म तो कालसापेक्ष और कालनिरपेक्ष दोनों ही प्रकारों से कार्यरत है किन्तु किसी घटना का वर्णन करने के लिए कालसापेक्षता का आश्रय लेना आवश्यक होता है, इसलिए यहाँ भी इसी आधार पर इस कथा को अतीत के सन्दर्भ में कहा जा रहा है। संयोगवश और संभवतः वर्तमान समय के परिप्रेक्ष्य में भी यह प्रासंगिक प्रतीत हो सकता है।

अस्तु, 

ऋषि अङ्गिरस् के आश्रम में एक बार शुक और कपोत एक दूसरे से बातचीत कर रहे थे :

कपोत ने शुक से प्रश्न किया :

मित्र! श्वान और विडाल दोनों ही हमसे शत्रुता करते हैं,  उनमें कौन श्रेष्ठ है और कौन निकृष्ट है?

कपोत के द्वारा यह प्रश्न पूछे जाने पर शुक ने कहा :

मित्र! यद्यपि दोनों ही प्रारब्ध और परिस्थितियों के वश में होने से हमसे वैरभाव करते हैं इसलिए हमें उनसे सतर्क और सावधान रहना चाहिए, किन्तु मूषक-दृष्टि से देखें तो श्वान की तुलना में विडाल अधिक श्रेष्ठ है क्योंकि विडाल तो आहार की आवश्यकता होने पर ही किसी का शिकार करता है जबकि श्वान अकारण ही मूषक या किसी दूसरे प्राणी पर भी आक्रमण करता रहता है।

आश्रम में ऋषि शौनक को आते हुए देखकर दोनों चुप हो गए।

फलश्रुति -

मुण्डकोपनिषद् के अनुसार :

ॐ ब्रह्मा देवानां प्रथमः सम्बभूव।।

लोकस्य कर्ता भुवनस्य गोप्ता।।

ऋषि भी देववर्ग की कोटि में होने से प्रारब्धवश किसी भी शरीर का रूप लेकर उस प्रकार से जीवन व्यतीत कर सकते हैं।

यशस् तथा हि देवानां संबभूव ।।

यदा शौनकः तं / तस्मिन् ज्ञानबीजं वपितवान् / वपति स्म तदा ही ईशो / परमेश्वरो तमाविवेशवान्।।

When Yeshus was given the seed of ऋतज्ञानं / Right Knowledge, by SUnu,  Ishwaro descended upon Yeshus like a Dove

So were / are all these sages of Veda and purANa, वेद, इतिहास, स्मृति और पुराण। 

।।ऋषयः पूतपापाः।। 

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