Question / प्रश्न 48
----------------------------
What Is Dharma?
धर्म क्या है?
--
"उसके नोट्स" से --
"धर्म" नामक शक्ति जिससे संपूर्ण जगत् संचालित होता है, उस वस्तु के कार्य को प्रत्यक्ष और परोक्ष, दो विधियों से जाना जा सकता है। प्रत्यक्षतः तो धर्म आचरण और कार्य अर्थात् "चरित्र" है जिसे कर्म के रूप में प्रत्यक्ष ही देखा जा सकता है, जबकि परोक्षतः या अप्रत्यक्षतः धर्म प्रेरणा के रूप में कार्यशील वह शक्ति है जिससे प्रत्येक जड चेतन वस्तु किसी कार्य का माध्यम बनकर उसे पूर्ण करती है।
इस "प्रेरणा" की अभिव्यक्ति पुनः विवेक, न्याय और प्राप्त परंपरा के अनुसरण के रूप में प्रत्येक के चरित्र, आचरण और बुद्धि में फलित होती है। नित्य-अनित्य विवेक ही धर्म की मूल प्रेरणा शक्ति है। इस प्रकार से धर्म से प्रेरित मनुष्य को अनायास ही धर्म के वास्तविक स्वरूप / तत्व का साक्षात्कार और प्रज्ञारूपी ज्ञान होता है, जो केवल स्मृति का विषय न होकर साक्षात् धर्म ही होता है। सबसे बड़ा सत्य यह है कि मृत्युलोक में उत्पन्न प्रत्येक प्राणी ही इसी धर्म से शासित हुआ अपना जीवन व्यतीत किया करता है, और मृत्युलोक अर्थात् यमलोक के शासनकर्ता मृत्यु अर्थात् यम स्वयं भी इसी से शासित हैं। यही वह धर्म है, जिसे सनातन धर्म भी कहा जाता है जो कि विभिन्न परंपराओं के भेद के कारण वैदिक और अवैदिक इन दो ही प्रकारों में पूरे संसार में प्रचलित है।
इसलिए धर्म ही एकमात्र प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष परमेश्वर है जिसकी उपासना करने का अधिकारी प्राणिमात्र ही है। जैसा पहले कहा है इसी धर्म का अनुष्ठान हर मनुष्य विवेक, न्याय और बुद्धि (तर्क) और परंपरा से प्राप्त विधि के अनुसार करता है और उसे जीवन में तदनुसार सुख और दुःख प्राप्त होते हैं। जो विवेक से परिचालित होता है, उसे यह स्पष्ट होता है कि सभी सुख और दुःख अनित्य हैं, अतीत स्मृति से, जबकि भविष्य कल्पना से भिन्न कुछ नहीं होता। तब उसमें धैर्य उत्पन्न होता है और वह निर्भय और प्रसन्न होता है। जीवन के शारीरिक और मानसिक कष्टों और पीड़ाओं को वह तपस्या की दृष्टि से स्वीकार कर लेता है, न तो उनसे पलायन करता है, न ही उनसे भयभीत होता है। अपने विवेक के अनुसार वह न तो उन्हें निमंत्रित करता हैकर न ही नियंत्रित करता है।
धर्म को ही एकमात्र परमेश्वर जानकर वह उसकी सेवा, विवेकपूर्वक उसकी ही उपासना किया करता है। धर्म ही आत्मा है जिसे परमात्मा या परमेश्वर भी कहते हैं।
धर्म ही एकमात्र सत्य है।
***
No comments:
Post a Comment