November 06, 2023

Rascle and Scoundrel

Taciturn and Reticent

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"उसके नोट्स" से :

महेश्वर मिश्र से परिचय होने के बाद मुझे एक नई दृष्टि प्राप्त हुई।

"आप क्या सोचते हैं? कौन सी भाषा सबसे पुरानी है? हम भारतीयों को इन चतुर विदेशियों ने इतना विमोहित कर रखा है कि उनकी शिक्षा दीक्षा से पूरे भारतवर्ष का ही विनाश हो रहा है। और भारतवर्ष का विनाश होने का परिणाम है संसार का विनाश।!"

वे कह रहे थे। फिर बोले :

"हमारे पूर्वज मिश्र थे। आपने मण्डन मिश्र का नाम सुना ही होगा। हम उन्हीं के वंशज हैं। किन्तु उनके ही कुल का विस्तार पूरे विश्व में था। सुदूर अतीत में, उनके ही कुल में उनके कोई पूर्वज अवज्ञप्ति कहलाते थे। अवज्ञप्ति के वंश में एक "मिश्र" हुए जिनका नाम उनके पिता ने पता नहीं क्या सोचकर "खण्डन" या "खण्डन मिश्र" रखा था। "खण्डन" और "मिश्र" जिस स्थान पर रहते थे, स्थानीय प्रभाव के कारण उस स्थान का और उनका भी नाम समय के साथ बदल गया।

"अवज्ञप्ति", "खण्डन" और "मिश्र" के ही अपभ्रंश क्रमशः अजप्त, खानदान और मिस्र के रूप में प्रचलित हो गए। एक और किंवदन्ती के अनुसार चूँकि उन लोगों ने जप-तप इत्यादि कर्मो को त्याग दिया था, इसलिए भी उन्हें "अजप्त" कहा जाने लगा। "अजप्त" ही "जप्त" हो गया जिसकी सुदूर प्रतिध्वनि जर्मन भाषा के :

"es gipt" में सुनी जा सकती है।

आप तो जानते होंगे कि ऋग्वेद के ही प्रमाण के अनुसार अरबी / अर्वण् संस्कृति और भाषा की उत्पत्ति रेत से या समुद्र से हुई है।... "

(मुझे यह सोचकर आश्चर्य हुआ कि उन्होंने अपने पिता से यह सारी जानकारी प्राप्त की होगी या मेरे ब्लॉग में इस बारे में पढ़ा होगा, क्योंकि ऋग्वेद का उक्त सन्दर्भ मैंने अपने किसी ब्लॉग में उद्धृत किया है। संयोगमात्र से भी ऐसा हुआ हो, यह भी संभव है। ऋग्वेद से उद्धृत उक्त सन्दर्भ में "पुरीष" शब्द का प्रयोग "रेत" के अर्थ में किया गया है, और "रेत" का अर्थ है "रेतस्"।

शायद उन्हें पता नहीं होगा कि अरबी भाषा की उत्पत्ति में "उणादि प्रत्यय" तथा "अइउण्" ही आधारभूत है। इस विषय में भी अपने ब्लॉग्स में मैने विस्तार से लिखा है। जब फ़रिश्तः / पार्षद / अंगिरा ऋषि / जाबाल ऋषि ने अब्रह्मन् / अब्राहम / इब्राहिम को दर्शन दिया था तो उसे 10 सम्मन्तमन्त  commandments  प्रदान किए थे । उसने उन्हें अपनी (अ) ब्राह्मी लिपि में लिख लिया था। अंगिरा जाबाल ऋषि / Angel Gabriel  ने तब उसे कहा "पढ़ो / बोलो / ब्रूहि।"

अब्राहम ने "ब्रूहि" को वर्णों के विलोम क्रम में लिखकर पढ़ा "हिब्रू"। तो यह हो सकती है अब्राहमिक परंपराओं के जन्म की कथा। हाँ इस प्रश्न का उत्तर भी अनायास ही मिल गया कि अवज्ञप्ति से  Egypt  कैसे बना होगा।

तब ऋषि ने अब्राहम से कहा : यह "सारतम" है।

अब्राहम ने उसे विलोमक्रम से जैसा अपनी हिब्रू लिपि में लिखा उसे उसने "सारतम" ही कहा, किन्तु बाद में उसे यह विस्मृत है गया और इस शब्द का लोकप्रचलित रूढ रूप "मदरसा" बना।  इसे यदि हिब्रू लिपि में लिखें और विलोमक्रम (दाँये से बाँए) पढें तो इसका उच्चारण यही होगा -- "सारतम"

"उसके नोट्स" पढ़ते हुए यह सब याद आया।

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