कविता / 06-06-2022
-------------©-------------
ऐसे ही गुजर जाएँगे, हम भी किसी दिन,
जिस तरह से गुजर गए हैं लोग अनगिन!
हमने किसको याद रखा, किसने हमको,
कौन किसको याद कर पाएगा हर दिन!
ऐसे ही गुजर जायेगा कारवाँ-ए-वक्त भी,
बजेगी सन्नाटे की, खामोशी की धुन!
क्या पता, उसको सुनेगा भी या नहीं कोई,
हम न सुन पाए सही, काश, सुन पाता, कोई!
सदा ही बजती रही है, जो क्षण क्षण में,
सदा ही है प्रतिध्वनित भी, कण कण में!
है निरंतर व्याप्त यद्यपि हृदय मन में,
पर क्यूँ अदृश्य लुप्त है जैसे जीवन में!
क्या उसे फिर खोज-सुन पाएँगे कभी!
क्या यहाँ फिर लौट पाएँगे हम कभी?
***
No comments:
Post a Comment