June 25, 2022

महान विभु विज्ञानात्मा

कठोपनिषद्, अध्याय २,

वल्ली १,

विज्ञानात्मा का महत्व

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स्वप्नान्तं जागरितान्तं चोभौ येनानुपश्यति।। 

महान्तं विभुमात्मानं मत्वा धीरो न शोचति।।४।।

स्वप्नान्तं जागरितान्तं च उभौ येन अनुपश्यति। महान्तं विभुं-आत्मानं मत्वा धीरः न शोचति।।

जिस महान विभु विज्ञानात्मा के माध्यम से स्वप्न और जागृत दशा में मनुष्य अलग अलग समय पर भिन्न भिन्न पदार्थों को देखता है, उसे अपने भीतर विद्यमान जान लेने पर धीर अर्थात् विवेकशील मनुष्य फिर कभी शोक नहीं करता।

क्योंकि समस्त दृश्य पदार्थों की अनित्यता की पृष्ठभूमि में वह इस विज्ञानात्मा को ही आधारभूत नित्यता की तरह जानता है। 

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