कविता / 20-01-2022
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अवसाद के उन पलों में जब,
कहीं कोई राहत नहीं होती,
संबंधों के उन लमहों में जब,
रिश्तों की पहचान नहीं होती,
दिल ढूँढता है, तसल्ली लेकिन,
झूठे-सच्चे दग़ा भरे धोखे-छल,
दिल को बहला लें, है मुमकिन,
और उन पलों के झपकते ही,
जब पता चलती है, साजिश,
और गहरा हो जाता है, अवसाद,
और खुद पर ही आता है तरस,
और भी आता है गुस्सा खुद पर,
जब कोई झूठी तसल्ली फिर से,
रचती है साजिश नए सिरे से,
और दिल ये भी भूल जाता है,
है ये सिलसिला, पुराना वही!
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