तथ्य और परिवर्तन
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किसी चीज़ को जानना और बदलना बहुत अलग अलग बात है।
अगर आप अपने को जानते हैं, तो आप अपने को कदापि बदल नहीं सकते। क्योंकि आप स्वयं ही अपने आपको जानते हैं, और इस तरह से, जाननेवाले के रूप में आप जो भी हैं, वह अवश्य ही ऐसा एक आधारभूत तथ्य है, जिसे बदला जाना असंभव है। इसी तरह से, अगर आप भविष्य को जानते हैं तो उसे बदल नहीं सकते, क्योंकि अगर आप उसे बदल सकते हैं, तो स्पष्ट ही है कि उसे आप नहीं जानते। हाँ एक संभावना के रूप में आप भविष्य को शायद जान सकते हैं और फिर भी वह संभावना भी असंख्य दूसरी उन संभावनाओं में से केवल एक होगी, जिनकी कल्पना तक आप नहीं कर सकते।
इसी तरह, आप अतीत (past) या भूतकाल में घटित हुई किसी घटना को भी नहीं बदल सकते हैं। हाँ, उसके वर्तमान स्वरूप को आप अभी, इसी क्षण किसी हद तक शायद बदल सकते हों । वैसे भी, जो बीत चुका है, और जो आपकी स्मृति में जिस रूप में आपको स्मरण है, उसका वह रूप भी, यूँ भी भले ही आप चाहें या कि न चाहें, तो भी सतत बदलता ही तो रहता है ! जब अतीत की स्मृति तक को बदल सकना आपके लिए संभव नहीं है, तो फिर अतीत को बदलने की कल्पना तक करना क्या हास्यास्पद नहीं है!
जब यह तथ्य सरलता-पूर्वक, और स्पष्टतः देख लिया जाता है, तो फिर इसे बदल पाने की या बदलने की आवश्यकता ही कहाँ रह जाती है!
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