February 09, 2010

उन दिनों -46.

~~~~~~ उन दिनों -46. ~~~~~~
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मुझे आज यहीं रहना था । अगले दिन भी दफ्तर का बाकी काम निपटाना था, इसलिए । शाम को मैं 'सर' के साथ 'ईवनिंग-वॉक' पर जाऊँगा, अगर उन्हें फुर्सत मिली, उनकी इच्छा हो तो ।
'सर' के घर टी वी नहीं था । उन दिनों घर में टी वी होना वैसी ही बात थी जैसी कि सत्तर के दशक में ट्रांजिस्टर या रेडियो था ।
"आपके यहाँ टी वी नहीं है ?"
-मैंने कौतूहल प्रदर्शित करते हुए पूछ लिया ।
"देखिये, तीन-चार साल बाद बिटिया ससुराल चली जायेगी । इसे टी वी का शौक नहीं है, और मुझे टी वी देखने की बजाय टी वी न देखना अधिक भाता है । "
-वे हँसते हुए बोले ।
"और तब तक ? क्या बिटिया की इच्छा नहीं होती होगी टी वी देखने की ?"
-मैंने उनके घरेलू जीवन में दखलंदाजी की ।
"होती है तो उसकी फ्रेंड्स या रिश्तेदारों के घर जाकर देख ही लेती है, क्योंकि उसे हमने कभी मना नहीं किया । और इसमें एक छोटा सा नुकता यह भी है कि उसे हमने कह रखा है कि यदि शादी के समय टी वी चाहिए तो उसी वक्त खरीदेंगे । उसे लेती जाना अपने साथ । अगर अभी खरीदा, तो भी शादी के समय वही मिलेगा, नया नहीं । "
चाय का समय था, उन्होंने आवाज लगाई,
"चाय-वाय बन रही है न !"
कोई जवाब नहीं आया । हम दोनों इंतज़ार करते रहे । मैंने अभी तक उनसे उनके परिवार के बारे में कुछ पूछना सौजन्यतावश ठीक नहीं समझा था, और उन्होंने खुद भी पहल नहीं की थी ।
"मुझे पढ़ने का बहुत शौक था, यह तो आपसे कह ही चुका हूँ, आइये आपको कुछ दिखलाऊँ !"
वे मुझे कमरे में रखी 'शेल्फ्स' की इ तरफ ले गए । उस छोटे से कमरे में दीवार के सहारे खड़ी तीन 'वॉल-टू- वॉल' आलमारियों तक जाने के लिए कुर्सी से उठना ही काफी था । तीनों के 'स्लाइडिंग' शीशे चमचमा रहे थे । उन पर पड़े पर्दों को हटाते हुए वे मुझे करीने से लगी किताबें दिखलाने लगे । वहाँ वह सारा विश्व-विख्यात साहित्य मौजूद था, जिसे उस वक्त के श्रेष्ठ साहित्य के तौर पर जाना जाता था । राजनैतिक विचारधाराओं, आध्यात्मिक और दार्शनिक प्रश्नों पर स्थापित मनीषियों द्वारा रचा गया हिंदी का ग्रंथलोक तो वहाँ पर था ही, लेकिन संस्कृत या विदेशी श्रेष्ठ ग्रंथों के संबंध में लिखीं गईं बहुत सी उच्छ कोटि की किताबें और अनुवाद भी वहाँ थे । कुछ ऐसी सेकण्ड-हैण्ड किताबें भीं थीं, जिनके मैंने तो बस नाम ही सुने थे । जो आउट ऑफ़ प्रिंट थीं । योग, तंत्र, कृष्णमूर्ति, थियोसोफी, और 'दर्शन' की तो बहुत सी किताबें थीं हीं, और भी कई ऐसे टाइटल्स थे, जो मैं पहली बार पढ़ रहा था

>>>>>>>> उन दिनों -47.>>>>>>>
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