द्वैत अद्वैत
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संवाद, स्मृति, पहचान, संबंध, द्वैत में ही संभव होते हैं। भय, लोभ, आशा, आशंका, अपेक्षा, उपेक्षा, अतीत और भविष्य, यहाँ और वहाँ आदि सभी का अस्तित्व भी इसी प्रकार से द्वैत की पृष्ठभूमि में, और द्वैत के संदर्भ से ही सिद्ध होता है। और द्वैत भावना के अस्तित्व में आने के बाद ही द्वैत सत्य प्रतीत होता है। द्वैत-भावना के अभाव में न तो किसी संबंध और न ही किसी प्रकार का संवाद का ही संभव है। द्वैत के ही अन्तर्गत दृष्टा और दृश्य का उद्भव, स्थिति और लय होता है।
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