September 21, 2025

A Sea-change.

सर्वपितृ अमावस्या

पितृपक्ष की अंतिम तिथि को महालया भी कहा जाता है। महालया नामक इस तिथि पर पितर जब मृत्यलोक से अपने पितृलोक में लौट जाते हैं। पितृलोक में वे उस समय तक वास करते हैं जब तक उन्हें कोई नया शरीर,  और उस नये शरीर में नया जीवन नहीं प्राप्त हो जाता है। जैसे ही उन्हें एक नये शरीर में नया जीवन प्राप्त हो जाता है, उस जीवन में उनकी नयी जीवन-यात्रा शुरू हो जाती है। और प्रायः हर कोई अपने इसी जीवन को अपने जन्म के रूप में मान लिया करता है। बिरले ही कभी किसी को ऐसा लगता है कि वह इस शरीर में कहीं दूसरे स्थान और उस ऐसे दूसरे शरीर से आया है जहाँ पहले कभी वह था, किन्तु यह उसे स्मृति और स्वप्न जैसा लगता है। जीवन अर्थात् चेतनता / चेतना (Sense, Sensitivity and Sensibility), जिसे एक शब्द में consciousness कह सकते हैं। बहुत बिरले ही कोई ठीक ठीक यह समझ पाता है कि जिसे जीवन, मन और चेतना कहा जाता है, उनमें परस्पर क्या समानताएँ और क्या भिन्नताएँ हैं। एक शब्द के स्थान पर दूसरे शब्द का प्रयोग करने से यह नहीं स्पष्ट होता है कि उससे जिस वस्तु का उल्लेख किया जा रहा है वह क्या है। चेतना का अर्थ है वह क्षमता जिससे कोई वस्तु किसी दूसरी वस्तु को जान और अनुभव कर सकती है। इनमें से दोनों ही वस्तुओं में यह क्षमता हो तो उन दोनों को ही चेतन अर्थात् इस क्षमता से युक्त कहते हैं, जबकि उनमें से जब केवल एक में ही यह क्षमता हो और दूसरी वस्तु में यह क्षमता न हो तो उस दूसरी वस्तु को जड कहते हैं। एक और रोचक तथ्य यह भी है कि किसी के पास इसका भी कोई प्रमाण नहीं हो सकता कि अपनी तुलना में जिस वस्तु को जड कहा जा रहा है वह  ऐसी जानने या अनुभव करने की क्षमता से रहित है ही! किन्तु फिर भी जीवन से युक्त और जीवन से रहित किसी वस्तु की पहचान तो की ही जा सकती है। तात्पर्य यह है  कि किसी वस्तु में उसके अपने आपके अस्तित्व में होने का भान है या शायद न भी हो, किसी और को यह भान अवश्य है। और जिसे अपने आपके अस्तित्व का भान है वह स्वयं को इस वर्तमान में प्राप्त शरीर तक सीमित एक व्यक्ति-विशेष मानता है या उसे लगता है कि इस वर्तमान शरीर में वह कहीं अन्य स्थान से आया है, जहाँ पर वह एक अन्य शरीर के रूप में जी रहा था। और पिछले सौ - पचास या अधिक वर्षों तक से इसका वैज्ञानिक अध्ययन कर इसके अकाट्य प्रमाण भी मिल चुके हैं, इसलिए यह कहा जा सकता है कि ऐसा कोई व्यक्ति अब पितृलोक से निकलकर पुनः जन्म ले चुका है। और यह अनुमान भी किया जा सकता है कि संभवतः बिरले ही कभी कोई मृत्यु के बाद बहुत दीर्घ काल तक पितृलोक में रहता हो, इसलिए भी पितरों के श्राद्ध का महत्व बहुत थोड़े समय तक के लिए हो सकता है।

सर्वपितृ अमावस्या का महत्व क्या है, इसे इस दृष्टि से भी समझा जा सकता है। 

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