Conflict and The Idiosyncracy
दुःख अनंत और असीम है। कभी उसका अन्त नहीं होता। बस सतत और अनवरत रूपान्तरित होता रहता है। वही, जो अभी सुख प्रतीत हो रहा होता है, पलक झपकते दुःख प्रतीत होने लगता है, और दुःख दूर हो गया, ऐसा क्षणिक आभास और सुख के मिलने की आशा का नया, क्षणिक आभास उसका स्थान ले लेता है।
यह सब एक दुष्चक्र होता है, जो शायद अनंत और असीम है। यह सब मन की गतिविधि और मन में होता है जो स्वयं यह दुष्चक्र और अपने आपको इसमें फंसा हुआ अनुभव करता है। मन स्वयं ही 'अनुभव' होता है और मन ही 'अनुभव' को परिभाषित भी करने लग जाता है। मन स्वयं अपने आपको और वर्तमान के इस क्षण को इस प्रकार अतीत और भविष्य की कल्पना करते हुए समय की अवधारणा में विभाजित हो जाने के आभास से ग्रस्त हो जाता है।
यही मन है। यही 'मैं' है, जिससे पृथक्, स्वतंत्र दूसरा कोई या कुछ कहीं होता ही नहीं।
यह अवधारणा ही ग्रन्थि / Gestalt है, जो कि वैचारिक आग्रह के रूप में सूत्र / Algorythm में बदल जाती है।
विभाजित मन split mind ही व्यक्ति के रूप में क्षणिक अस्तित्व का आभास उत्पन्न करता है और अगले ही क्षण पुराना व्यक्ति विलीन होकर नये व्यक्ति को अस्तित्व प्रदान करता है। यह नया व्यक्ति उसके अपने क्षण में पुराने का एक और संस्करण होता है जो सतत रूपांतरित होता हुआ मन के एक व्यक्ति विशेष होने का भ्रम होता है।
यह व्यक्ति अर्थात् यह भ्रम ही मन का जीवन है, जो सतत स्वयं को काल्पनिक निरंतरता प्रदान करता रहता है creating one's own an apparently continuous existence.
यह मन ही पुनः किसी इंद्रियगोचर बाह्य जगत की प्रतीति से मोहित हुआ उसमें अपने आपको 'मैं' की तरह उससे संबद्ध किन्तु उससे स्वतंत्र भी मान बैठता है।
यह सब आकस्मिक और अप्रत्याशित रूप से घटित होता है और तब मन-रूपी यह विखंडित व्यक्ति fragmented person की तरह से केवल द्विध्रुवीय असामञ्जस्य - bipolar personality disorder से ही नहीं, बल्कि बहु-व्यक्तित्व असामञ्जस्य - multiple personality disorder (mpd) से भी ग्रस्त हो जाता है।
इस सबका पूर्वाग्रह-रहित अवलोकन अर्थात् careful awareness अवश्य ही इस दुष्चक्र को विलीन कर सकता है।
इस पूर्वाग्रह-रहित अवलोकन का अभ्यास नहीं किया जा सकता। जीवन What Is के प्रति उत्कट प्रेम और पूर्वाग्रह-रहित अवलोकन होने पर यह अनायास ही फलित होता है और इस तरह से फलित होने पर यह अज्ञात से अज्ञात के आयाम में इस तरह से विकसित, पल्लवित और पुष्पित होता रहता है, जिसके बारे में न तो कोई अवधारणा, न सिद्धांत और न ही कोई निष्कर्ष प्राप्त हो सकता है।
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