September 16, 2025

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मध्य-रात्रि 01:21

बहुत समय से निद्रा का 'समय' अस्तव्यस्त चल रहा है। इसलिए बस येन-केन-प्रकारेण नींद खुलते ही शरीर को उसकी स्थिति पर छोड़ देता हूँ। कभी कमरे में ही चलता फिरता हूँ या कुर्सी पर बैठकर आँखें बंद कर लेता हूँ। यह स्पष्ट रहता है कि सोना नहीं है और सोचना नहीं है। यह जानना भी रोचक है कि निद्रा उसके और शरीर के अपने नियमों के अनुसार आती और जाती है। इस बारे में मन कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता। आवश्यक प्रतीत  होने पर किसी स्थिति में एक सीमा तक जागते रहने का प्रयास किया जा सकता है और सीमा का उल्लंघन करने पर उसका मूल्य भी चुकाना पड़ता है।

रात्रि 02:00 तक का समय यूँ ही कटता है। फिर कोई स्मृति सक्रिय हो उठती है तो उसमें लिप्त होने लगता हूँ। या, बस किसी तरह शांत रहने का प्रयास करता हूँ। पर फिर, प्रयास ही शांति में बाधा है, इस पर ध्यान जाता है। तो अशांत मन से संघर्ष नहीं करता। 02:00 से 03:00 तक का समय यूँ बीतता है।

03:00 बजे के बाद मन सुस्थिर होने लगता है।

कोई विषय, कोई विचार, कोई स्फूर्ति मन में उमंग बन जाती है और 

विषयाननुवर्तन्ते विषयी यत्र

तादात्म्यं तत्र प्रवर्तते।

तादात्म्यमेव वृत्तिः स्यात्

वृत्तिर्हि चित्तमित्यस्मिता।।

इस तरह मन को अवलम्बन प्राप्त होते ही 'समय' से सामञ्जस्य हो जाता है। तब न ऊब होती है, न थकान, न नींद आ रही होती है, न आलस्य। इसे ही सालंब ध्यान कह सकते हैं।

देशबन्धचित्तस्य धारणा।।१।।

तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम्।।२।।

तदेवार्थमात्रनिर्भासा समाधिः।।३।।

(विभूतिपाद )

स्वप्ननिद्राज्ञानालम्बनं वा।।

अब रात्रि के 01:53 हो रहे हैं।

मन और शरीर अपनी अपनी प्रकृति से गतिशील रहते हैं। और जब उनकी गतियों के बीच असामञ्जस्य होने लगता है तो संघर्ष, असंतोष, व्याकुलता, अवसाद और ग्लानि आदि की स्थिति बनने लगती है। और तब मन उस स्थिति से त्राण पाने के लिए अविवेकपूर्वक किसी भी विषय का आलंबन लेकर उस विषय से संलग्न और  लिप्त हो जाता है। 'समय' यद्यपि बीत जाता है, किन्तु हाथ कुछ लगता है तो वह बस निराशा और व्यर्थता ही होता है। हाँ, फिर 'समय' बीतने पर धीरे धीरे मन स्वस्थ भी हो जाता है। जैसे किसी बर्तन में रखा जल एक बार हिल जाने के बाद स्वयं ही धीरे धीरे शांत और सुस्थिर हो जाता है, और किसी प्रयास से उसे शांत नहीं किया जा सकता। प्रयास से तो वह और भी चंचल और अस्थिर हो जाया करता है।

मध्य-रात्रि 02-19

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