कितने जंगल हाउस!?
THE FIRST JUNGLE HOUSE.
12 फरवरी 1991 के दिन या उससे एक दिन पहले, मैं ओंकारेश्वर पहुँचा था। आश्रम की स्थापना और संचालन एक पूज्य स्वामी करते थे। भू-तल पर रहते थे और ऊपर प्रथम तल पर माता आनन्दमयी के मन्दिर का निर्माण हो रहा था। उस मन्दिर तक जाने की सीढ़ियाँ प्रथम तल को दो भागों में विभाजित करती थीं। पहला हिस्सा बाहर की ओर था, बाहर खुली छत और एक कमरा था, जिसमें दो द्वार थे। दोनों से बाहर आया जाया जा सकता था, और बाहर कहीं जाना होता तो यह ध्यान रखना होता था कि दोनों द्वार ठीक से बंद हों। किसी पर भी एक या दोनों द्वारों पर भी एक एक ताला लगाया जा सकता था। दो सीढ़ियाँ भू-तल से आती थीं और कमरे के दोनों तरफ से निकलकर प्रथम तल पर आती थीं। एक सीढ़ी भू-तल पर सामने की दिशा में थी और दूसरी पीछे की दिशा में। सब सीढ़ियाँ, चबूतरा आदि पत्थरों को मिट्टी से जोड़कर और उन पर सीमेंट चढ़ाकर बनाए गए थे। स्वामीजी का कमरा पीछे था और उसके भी दो द्वार थे। एक कमरा स्टोर रूम की तरह था और दूसरा उससे लगा हुआ, जो सामने था। बीच में खुली हुई जगह में मिट्टी का चूल्हा था जहाँ भोजन बनता था। मार्च में स्वामीजी वहाँ से इन्दौर चले गए थे। और मैं अकेला ही वहाँ रहने लगा था। सामने के कमरे के बाहर एक तखत पड़ा था, जिस पर मैं लगभग पूरे दिन बैठा या सोया रहता था। कुछ दूर पर नर्मदा नदी बहती थी, और वहाँ तक जाने के लिए पत्थरों के बीच से जाना पड़ता था। प्रायः ही दो या अधिक बार नदी तक जाया करता था।
वह स्थान जैसा था, वैसा ही कुछ यह स्थान भी है, और यहाँ भी वैसा ही खुला खुला आश्रम परिसर है। इसलिए अचानक उसका स्मरण हुआ। यह स्थान शायद अधिक सुन्दर और सुखद है। बाहर बहुत निर्माण कार्य चल रहा है। मेरे लिए करने के लिए बहुत सा काम हो सकता है। मेरा विचार है कि मैं इस पूरे परिसर को अपनी कल्पना के अनुसार बना सकूँ। साल भर पहले तक यह तक नहीं पता था कि कहाँ और कैसे रहना है, अब अनपेक्षित रूप से एकाएक बात बहुत बदल गई है। सोचा जाए तो बहुत सा काम करना है। अधोसंरचना तैयार है। संभवतः इस दीपावलि तक सब कुछ सुव्यवस्थित हो जाएगा। अभी तो बस प्रतीक्षा करते हुए समय बीत रहा है।
This Too Is Another Jungle House!
बीच में एक वर्ष 2023-24 में एक और जंगल हाउस में बीता था। वह भी बहुत सुन्दर था किन्तु फरवरी 2024 में उसे, स्कूल के उस निर्माणाधीन भवन को ढहा दिया जाना था, इसलिए वह स्थान छोड़ना पड़ा।
ऐसा ही एक जंगल हाउस राजघाट फोर्ट वाराणसी पर भी था जहाँ कृष्णमूर्ति फॉउन्डेशन के स्टडी-सेन्टर और रिट्रीट पर पहले डेढ़ हफ्ता फरवरी 2000 में और फिर एक हफ्ता नवंबर 2002 में बीता था।
यूँ भी होता है, कभी सोचा न था!
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