अतिमानस और अतिचेतन
Transcendental Mind And Transcendental Consciousness.
उसे रंगबिरंगी वस्तुओं में रुचि थी। शुरू में तो उसने कुछ बड़े बड़े पत्थर जमा किए थे और एक कमरा बना लिया था जिस पर उसने पेड़ों के पत्ते, और कुछ सूखी टहनियाँ रखकर अपने रहने के लिए एक सुविधाजनक पर्णकुटी जैसा घर भी बना लिया था। जंगल में अपनी इच्छानुसार वह जहाँ तहाँ घूमते हुए थक चुकी होती तो उस पर्णकुटी में आराम कर सकती थी। पत्थरों की बनी वे चार दीवारें जिनकी ऊँचाई उसके कद से थोड़ी सी अधिक थी। वह लगभग हर रोज ही उस घर में कुछ न कुछ नया बदलाव किया करती थी। जब उसे महसूस हुआ कि उस घर में हाथों को ऊपर की ओर फैलाने में घास फूस और पत्तों से बनी छत रुकावट डालने लगी है तो उसने दीवारों की ऊँचाई और बढ़ा दी। और वैसे भी उसे तब यह भी समझ में आ चुका था कि अब उसकी ऊँचाई भी बढ़ रही है।
उसका अतिथि मित्र जब पुनः अपने समुदाय के लोगों के साथ आया था तो वे लोग यह देखकर बहुत खुश हुए थे कि आसपास बहुत से ऐसे पत्थर थे, जिन्हें आग में तपा कर गलाया जा सकता था। और फिर ठोक पीटकर उन्हें वाञ्छित आकार की वस्तुओं में ढाला जा सकता था। यूँ कह सकते हैं कि यह समय "लौह युग" / "Iron Age" का समय रहा होगा।
उनका यह सारा ज्ञान बिना किसी भाषा के ही आनेवाली नई पीढ़ी को वे संप्रेषित कर देते थे। क्योंकि हर तरह का संपूर्ण तकनीकी ज्ञान ऐसा ही होता है। तकनीक तो यंत्र भी सीख लेते हैं, क्योंकि उन्हें बनाना भी तकनीक ही है।
वे लोग अलग अलग प्रकारों के लोहे से भिन्न भिन्न तरह की वस्तुएँ जैसे कुल्हाड़ी, चाकू, तलवार और धनुष से चलाए जानेवाले बाण भी बनाया करते थे।
उनमें एक व्यक्ति ऐसा भी था जो उस दल का मुखिया था और सभी उसकी आज्ञा के अनुसार अपना अपना कार्य करते थे। इसी तरह और भी दो तीन व्यक्ति थे जो उससे कम आयु के युवा थे, जबकि वह अब काफी बूढ़ा हो चुका था।
उसकी आज्ञा को मानने का एक और कारण था क्योंकि ऐसा समझा जाता था कि उसका संपर्क कुछ ऐसे अदृश्य लोगों से होता है जो उसे मार्गदर्शन देते हैं। यह वैसे कुछ अविश्वसनीय प्रतीत होता है, किन्तु उनमें से लगभग हर कोई अपने अनुभवों से भी जानता था और उसे लगता था कि ये अदृश्य लोग वही हैं, जिनकी कभी मृत्यु हो जाती है और उनके शरीर के नष्ट हो जाने पर, उनके शरीर को पूरी तरह से जलाकर राख कर दिए जाने पर भी वे किसी किसी को दिखाई देते हैं और उनमें से प्रायः हर किसी को यह बिल्कुल स्वाभाविक प्रतीत होता था इसलिए इस पर किसी को संदेह ही नहीं था।
चुम्बकीय लोहा
इसका दूसरा प्रमाण उनके पास यह भी था कि जब ऐसे किसी व्यक्ति की स्वप्न जैसी अवस्था में उन अदृश्य लोगों से भेंट होती तो इसकी सत्यता की परीक्षा वे कर सकते थे। और यह जानकारी भी उन्हें बहुत पहले से थी। न जाने कितनी पीढ़ियों पहले से।
यह प्रमाण बहुत सरल था।
वे रात्रि को सोते समय अपने सिरहाने पर बिस्तर के नीचे लोहे का बना कोई चाकू रखा करते थे और प्रायः जब भी उन्हें लगता कि स्वप्न में उनकी किसी अदृश्य व्यक्ति से मुलाकात हुई थी तो उस चाकू को लोहे की बनी किसी दूसरी वस्तु से स्पर्श कर इसकी पुष्टि भी कर सकते थे कि उस चाकू को उस अदृश्य वस्तु की आत्मा ने स्पर्श किया और इसलिए उसमें चुम्बकीय गुण प्रविष्ट हो गया। उसे यह रोचक प्रतीत हुआ और जब एक दिन स्वयं उसे भी ऐसा महसूस हुआ तो उसे उन अदृश्य लोगों और उनकी इस सत्ता पर विश्वास हो गया।
उस समुदाय का प्रमुख इसलिए भी विशिष्ट था कि उसे यह अच्छी तरह से पता था कि भिन्न भिन्न तरह के ऐसे अदृश्य व्यक्तियों से कैसे मिला जा सकता है और उनसे मिलना कितना उचित या अनुचित हो सकता है, कितना निरापद और भयावह या खतरनाक भी हो सकता है।
फिर उसे एक दिन यह रहस्य भी समझ में आ गया कि क्यों उसका अतिथि मित्र एक दिन अचानक उसे बताए बिना कहीं चला गया था। और जब बहुत दिनों बाद वह अपने समुदाय के साथ लौटा था तो समुदाय प्रमुख और उसके साथ की उसकी साथी स्त्री ने कुछ वनस्पतियों को जलाकर विशेष सुगंध फैलाकर कुछ अदृश्य लोगों को निमंत्रित किया था और उसके अतिथि मित्र के साथ उन दोनों के वस्त्रों में गाँठ लगाकर उन दोनों को जलती हुई अग्नि की परिक्रमा करने के लिए कहा था। उसे यह सब विस्मयपूर्ण और कौतूहल भरा लगा था किन्तु यह समझ में आ गया कि एक स्त्री और एक पुरुष के बीच संतान की उत्पत्ति करने के लिए तय किए जानेवाले इस विधान का क्या महत्व है और यह एक सर्वाधिक और अत्यन्त पावन संस्कार है। यद्यपि उसके पास ये सारे शब्द नहीं थे किन्तु अग्नि में विद्यमान जिस तेजस्वी पुरुष के दर्शन उसे उस समय हुए वह औरों के लिए शायद अदृश्य ही रहा होगा ऐसा उसे लगा।
वह प्रायः उस समुदाय की स्त्रियों के साथ वन में फल, फूल, वनस्पतियाँ और खनिज द्रव्य लेने जाया करती थी और वही उसे वह गुप्त विद्या प्राप्त हुई कि किस प्रकार लाख, lac. गोंद, glue / gum, राल, गुग्गलु, चंदन, आदि सुगंधित incense वनस्पतियों को जलाकर भिन्न भिन्न प्रकार के अदृश्य व्यक्तियों को आकर्षित किया जा सकता है या दूर भी रखा जा सकता है। उस समुदाय का वह विशिष्ट व्यक्ति इन लक्ष्यों को भली भाँति जानता था और कभी कभी इन अच्छे या बुरे लोगों का चित्र बनाकर भी उनसे हुई उसकी मुलाकात का वर्णन किया करता था। विशेष रूप से तब जब वह विधि विधान पूर्वक ऐसा कोई अनुष्ठान करता। और लोगों के लिए यह सब समझ सकना कठिन था किन्तु सभी को यह स्पष्ट हो गया था कि ऐसे अदृश्य व्यक्तियों का अस्तित्व है जिनसे संपर्क भी किया जा सकता है। किन्तु हम लोगों द्वारा बोली और लिखी जानेवाली किसी बौद्धिक भाषा से उनका कोई परिचय तब तक नहीं हुआ था इसलिए वे राक्षस, यक्ष, गन्धर्व, किन्नर और देवताओं इत्यादि को जानते हुए भी उनके लिए प्रयुक्त किए जानेवाले किसी शब्द से पूरी तरह से अनभिज्ञ थे। वे एकेश्वरवादी या बहुदेवतावादी भी नहीं थे और इन अदृश्य व्यक्तियों को अपनी बुद्धि द्वारा जानी गई विशेष शक्तियों की तरह जानते थे। उन्हें प्रेत-धर्म भी ज्ञात नहीं था क्योंकि उनके समुदाय में किसी की मृत्यु हो जाने पर समुदाय का मुखिया ही तय करता था कि उसके वश की अंत्येष्टि कैसे की जाए। वे यह तो जानते थे कि मृत्यु हो जाने के बाद भी कोई अदृश्य रूप से अस्तित्वमान रहता है, किन्तु उन्हें इस बारे में नहीं पता था कि क्या ऐसे अदृश्य व्यक्ति का जन्म पुनः किसी नए शरीर में उस तरह से होता है जैसे कि उन सब लोगों का जन्म किसी समय हुआ था। किन्तु देवताओं और ऐसे ही अन्य अदृश्य व्यक्तियों अर्थात् ऋषियों से संपर्क होने के बाद पहले मंत्रों से और फिर अनुष्ठानों को पूर्ण करने से उनमें वैदिक ज्ञान के प्रति जागृति हुई और उस चिरंतन, शाश्वत और अविनश्वर वस्तु से भी उनका परिचय हुआ, जिसे सामान्यतः। सत्य, ब्रह्म, आत्मा या परमात्मा कहा जाता है।
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