मानसं तु किम्?
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वे लोग अभी तक किसी भाषा का आविष्कार नहीं कर सके थे। न तो सांकेतिक, न शाब्दिक ध्वन्यात्मक वर्णों आदि में बोली जानेवाली या वर्णात्मक लिपि में लिखी जानेवाली। उन्हें इसकी कमी भी महसूस नहीं होती थी क्योंकि वे अपनी भावनाओं को केवल तात्कालिक रूप से ही व्यक्त होने देते थे और उन्हें छिपाने के बारे में उन्हें कोई कल्पना तक नहीं थी।
उसके साथ भी यही था। उसे यह तो पता था कि लाल, नीला और हरा रंग किस प्रकार परस्पर भिन्न हैं किन्तु उसका ध्यान कभी इस पर नहीं जा पाया था कि उनमें विद्यमान 'रंग' नामक समान तत्व क्या है! और वैसे ही उसे विभिन्न ध्वनियों की पहचान भी थी किन्तु ध्वनि और रंगों की कोई पहचान उसके मन में अभी तक परिभाषित और स्थिर नहीं हो सकी थी।
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