December 01, 2019

जहाँ मन नहीं होता ...

जहाँ कोई नहीं होता ...
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मेरे इस ब्लॉग में
"जब मन नहीं होता .."
कविता को बहुत अधिक बार देखा गया है।
इसी के क्रम में sequel की तरह एक कविता आज लिखी।
हिन्दी में लिखने का मन प्रायः होता है किन्तु जब कुछ ऐसा लिखा जाता है जो मेरी अपनी दृष्टि से बहुत उत्साह और प्रसन्नता देता है तो उसे स्वाध्याय में लिख देता हूँ। जो अपेक्षाकृत गंभीर या क्लिष्ट लगता है, उसे भी वहीँ लिख देता हूँ।  क्योंकि मुझे लगता है, इस ब्लॉग के पाठक मेरे स्वाध्याय ब्लॉग को अवश्य देखते होंगे। क्योंकि उसके views 259000 हो चुके हैं, जबकि इस hindi-ka-blog के केवल 69000 !
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कविता / 1 दिसंबर 2019 
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किसी गतिशीलता में क्या,
कोई मन नहीं होता?
किसी गतिशीलता में क्यों,
कोई मन नहीं होता?
किसी गतिहीनता में क्यों,
ऊबने लग जाता है मन,
लेकिन सो जाने पर क्यों,
कोई मन नहीं होता?
या फिर सो जाते ही क्या,
कोई मन नहीं होता?
या लग जाता है, तब क्या,
कोई मन नहीं होता?
उचट जाता है जब क्या,
कोई मन नहीं होता?
होता है निमग्न तब क्या,
कोई मन नहीं होता?
कहाँ से आता है यह मन,
कहाँ हो जाता है ओझल,
खोज तो लें, पर ऐसा क्या,
कोई मन नहीं होता?
जहाँ से आता है यह मन,
जहाँ पर फिर खो जाता है,
जहाँ होने पर फिर यह मन,
कभी ग़मगीन नहीं होता,
कहाँ है वह जगह सोचो,
अगर मन सोच सकता हो,
कहाँ है वह जगह लेकिन,
जहाँ कोई नहीं होता?
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