शनि-मन्दिर,
--
(बच्चों की किसी किताब का एक पृष्ठ)
24 नवंबर को यहाँ आने के दो हफ़्तों बाद रुद्राक्ष होटल / रिसोर्ट की तरफ घूमने के लिए गया।
थोड़ा संकल्प तो ज़रूरी होता है किसी नए एडवेंचर के लिए।
रुद्राक्ष होटल से आगे इन्दौर रोड पर एक रास्ता पुल से होकर त्रिवेणी के पार इन्दौर की ओर जाता है, और दूसरा शनि-मन्दिर तक। याद आया यह वही स्थान है जिसे कभी (और अभी भी) नवग्रह-मन्दिर भी कहा जाता था / है।
इसके ठीक पहले एक रोड चिंतामन गणेश की दिशा में जाता है और उसी मोड़ पर स्वामीनारायण टेम्पल है।
भूख लग रही थी, तो सामने दूसरी साइड पर सड़क-किनारे के एक रेस्टोरेंट में पोहे खाए। चाय पी ।
पोहे खाने के बाद उस कागज़ पर निगाह पड़ी जिसमें पोहे दिए गए थे।
यथावत प्रस्तुत है।
Let's Read
Read this story and answer the questions given under it :
Ramu was a blind old man. One dark night he came out of his cottage and went along the road. He had a pitcher of water under his right arm and a lantern in his left hand.
A young man was coming from the other end of the road. He came to Ramu and shouted, Ramu you can't see, but you are carrying a lantern in your hand, why?
Ramu smiled and said, "Do not shout, young man. Listen to me. This light is not for me. It is for you and others. I go out every night with a lantern in my hand. So that people may see me and avoid knocking against me."
The young man was ashamed of his behavior and went away.
--
(a) Who said these words and to whom:
(i) "Do not shout young man. Listen to me."
(ii) "People may see me and avoid knocking against me."
(b) Answer these questions.
(i) Ramu came on the road. What did he have in his hands?"
-------------------------------------------------------------------------------------
-------------------------------------------------------------------------------------
o#o#o#o#o#o#o#o#o#o#o#o# 33 o#o#o#o#o#o#o#o#o#o#o#o#o#
_________________________________________________________
_________________________________________________________
आज इस कहानी के सन्दर्भ और निहितार्थ किसी हद तक बदल गए हैं और तमाम बहसें मुझे इसी कहानी की पुनरावृत्ति लगती हैं।
बहरहाल मुझे यह भी लगता है कि मैं ही कहानी का 'रामू' हूँ और 'यंग-मैन' भी हूँ, पर मेरे हाथ की लालटेन बुझी हुई है जिससे इन दोनों इंसानों की तरह, मैं स्वयं भी अनभिज्ञ हूँ !
--
--
(बच्चों की किसी किताब का एक पृष्ठ)
24 नवंबर को यहाँ आने के दो हफ़्तों बाद रुद्राक्ष होटल / रिसोर्ट की तरफ घूमने के लिए गया।
थोड़ा संकल्प तो ज़रूरी होता है किसी नए एडवेंचर के लिए।
रुद्राक्ष होटल से आगे इन्दौर रोड पर एक रास्ता पुल से होकर त्रिवेणी के पार इन्दौर की ओर जाता है, और दूसरा शनि-मन्दिर तक। याद आया यह वही स्थान है जिसे कभी (और अभी भी) नवग्रह-मन्दिर भी कहा जाता था / है।
इसके ठीक पहले एक रोड चिंतामन गणेश की दिशा में जाता है और उसी मोड़ पर स्वामीनारायण टेम्पल है।
भूख लग रही थी, तो सामने दूसरी साइड पर सड़क-किनारे के एक रेस्टोरेंट में पोहे खाए। चाय पी ।
पोहे खाने के बाद उस कागज़ पर निगाह पड़ी जिसमें पोहे दिए गए थे।
यथावत प्रस्तुत है।
Let's Read
Read this story and answer the questions given under it :
Ramu was a blind old man. One dark night he came out of his cottage and went along the road. He had a pitcher of water under his right arm and a lantern in his left hand.
A young man was coming from the other end of the road. He came to Ramu and shouted, Ramu you can't see, but you are carrying a lantern in your hand, why?
Ramu smiled and said, "Do not shout, young man. Listen to me. This light is not for me. It is for you and others. I go out every night with a lantern in my hand. So that people may see me and avoid knocking against me."
The young man was ashamed of his behavior and went away.
--
(a) Who said these words and to whom:
(i) "Do not shout young man. Listen to me."
(ii) "People may see me and avoid knocking against me."
(b) Answer these questions.
(i) Ramu came on the road. What did he have in his hands?"
-------------------------------------------------------------------------------------
-------------------------------------------------------------------------------------
o#o#o#o#o#o#o#o#o#o#o#o# 33 o#o#o#o#o#o#o#o#o#o#o#o#o#
_________________________________________________________
_________________________________________________________
आज इस कहानी के सन्दर्भ और निहितार्थ किसी हद तक बदल गए हैं और तमाम बहसें मुझे इसी कहानी की पुनरावृत्ति लगती हैं।
बहरहाल मुझे यह भी लगता है कि मैं ही कहानी का 'रामू' हूँ और 'यंग-मैन' भी हूँ, पर मेरे हाथ की लालटेन बुझी हुई है जिससे इन दोनों इंसानों की तरह, मैं स्वयं भी अनभिज्ञ हूँ !
--
No comments:
Post a Comment