March 07, 2015

आज की कविता : ' अगर प्रेम कविता है! '

© Vinay Kumar Vaidya,
(vinayvaidya111@gmail.com)
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आज की कविता : 'अगर प्रेम कविता है!'
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अगर प्रेम 'कविता' है,
तो ठीक,
मैं बहस नहीं करूँगा,
मैं सिर्फ पढूँगा, सुनूँगा, गुनूँगा,
अगर प्रेम जड़त्व है ,
और भारीपन से भर जाते हैं लोग,
तो भरूँगा खुद को,
हो जाऊँगा इतना भारी,
कि धरती को भेदकर समा जाऊँगा,
उसके गर्भ में,
और,
प्रेम अन्धकार है ,
कि पार देखते ही डर जाते हैं लोग,
तो मैं डरूँगा,
या आँखें फाड़कर देखूँगा,
कि कहाँ तक है अन्धकार,
और उसके पार क्या है,
या कुछ है भी या नहीं,
अगर प्रेम  अवसाद है,
बुझे बुझे ही मर जाते हैं लोग ,
तो अवसन्न होकर मिट जाऊँगा,
जैसे शाम को उजाला मिट जाता है,
और अगर प्रेम उम्र का दलदल है,
तो डूबते-उतरते,
गिरते-पड़ते भी,
उभर आऊँगा,
जैसे सुबह उजाला लौट आता है,
और उबार लूँगा,
तुम्हें भी!
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