March 18, 2015

प्रसंगवश / जीवन-मृत्यु

प्रसंगवश / जीवन-मृत्यु
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© Vinay Kumar Vaidya,
(vinayvaidya111@gmail.com)
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" जीवन का अंतिम सत्य मृत्यु है । मृत्यु का बोध ही जीने की कला सिखाता है,..."
मुझे इस वाक्य में एक गहरी भूल दिखलाई देती है, क्या जीवन का अंत है? हम लोगों को मरते हुए देखते हैं और सोचने लगते हैं कि यह जीवन का अंतिम सत्य है, और मेरा भी यही होगा. क्या किसी ने कभी 'जीवन' का अंत देखा है? जिसे हम 'जीवन' कहते हैं, क्या उसका 'आरम्भ' है? किसी ने कभी देखा? क्या जीवन निरंतर ही एक सतत 'सत्य' नहीं है? किन्तु हम 'जीवन' का एक मानसिक-चित्र बना लेते हैं, जो या तो कल्पना, धारणा, विचार या प्रतिक्रिया मात्र होता है, न कि वह जिसके सम्बन्ध में हमारे मन में यह कल्पना, धारणा, विचार या प्रतिक्रिया पैदा होती है. समस्या यह है कि हम जीवन से अभिन्न हैं, किन्तु इस कल्पना, धारणा, विचार या प्रतिक्रिया के जन्म के बाद इस भ्रम में पड़ जाते हैं कि हम कोई 'व्यक्ति-विशेष' हैं, कोई 'शरीर-विशेष', मनुष्य, स्त्री, पुरुष, अमीर-गरीब, बच्चे, युवा, वृद्ध आदि हैं,... इस भ्रम का ही वस्तुतः 'जन्म' है, और 'मृत्यु' भी इस भ्रम की ही है, या कहें कि 'जन्म' और 'मृत्यु' 'विचार' / ख़याल भर है.
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पुनश्च :
मुझसे एक प्रश्न पूछा गया :
'जीवन का अंत या प्रारम्भ है कि नहीं यह तो कभी खत्म न होने वाली बहस का मुद्दा है.' ...
एक सरल प्रश्न : क्या 'जीवन' की अनुपस्थिति में किसी बहस की कोई संभावना है? मतलब यही कि बहस का आरम्भ और अंत होने के लिए कोई 'बहस करनेवाला' होना तो अपरिहार्यतःआवश्यक है, मतलब यह कि 'जीवन' स्वतः-प्रमाणित यथार्थ है, भले ही उसके स्वरूप को भौतिक वस्तुओं की तरह अनुभव या सिद्ध न भी किया जा सके. जब आप कहते हैं 'हम जो शरीर धारण किए हैं....,' तब आप कहें या न कहें, यह स्पष्ट ही है कि आप शरीर भर नहीं, बल्कि उस शरीर से भी सूक्ष्म और विराट वह तत्व हैं, जो शरीर के जन्म से शरीर की मृत्यु तक अपरिवर्तित रहता है, जन्म से पहले या मृत्यु के बाद क्या है, इस बारे में मैं भी कुछ नहीं कह रहा.. मैं तो इस दौरान जो है, उसकी बात कर रहा हूँ. और उस रूप में हमारा यथार्थ कोई नश्वर वस्तु नहीं हो सकता, भले ही हम अपने को शरीर और व्यक्ति मानकर नश्वर मान बैठें और जन्म-मृत्यु को सत्य मानकर दार्शनिक अंतहीन तर्क-वितर्क करते रहें, जब तक हम इस यथार्थ पर ध्यान नहीं देते तब तक उस तर्क-वितर्क /बहस से चाहकर भी नहीं भाग सकते. वह प्रश्न अंत (मृत्यु) तक हमारे सामने मुंह बाए खडा रहेगा....
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