© Vinay Kumar Vaidya,
(vinayvaidya111@gmail.com)
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आज की कविता /
उस दिन /29/03/2015
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एक दिन,
तुम मुझे संसार में न पा सकोगे,
इसलिए नहीं ,
क्योंकि मैं संसार में न रहूँगा,
और न ही इसलिए,
क्योंकि तुम संसार में न रहोगे,
बल्कि सिर्फ इसलिए,
क्योंकि उस दिन,
संसार ही तुममें न रह जाएगा!
किन्तु तुम तब भी रहोगे,
वैसे ही अक्षुण्ण, यथावत्,
जैसे / जो अभी हो तुम!
और हो, सदा, सदैव!
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(vinayvaidya111@gmail.com)
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आज की कविता /
उस दिन /29/03/2015
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एक दिन,
तुम मुझे संसार में न पा सकोगे,
इसलिए नहीं ,
क्योंकि मैं संसार में न रहूँगा,
और न ही इसलिए,
क्योंकि तुम संसार में न रहोगे,
बल्कि सिर्फ इसलिए,
क्योंकि उस दिन,
संसार ही तुममें न रह जाएगा!
किन्तु तुम तब भी रहोगे,
वैसे ही अक्षुण्ण, यथावत्,
जैसे / जो अभी हो तुम!
और हो, सदा, सदैव!
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