आज की कविता,
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व्यथा एक दीप की !
दर्द पोशीदा है, ठहरा ठहरा है आँखों में,
मोम जैसे पिघलता सा जमा जमा सा हो,
शौक से देखते हैं लोग रौशनी, परवाने से,
पता किसे है दर्द क्या है शमा सा जलने में ।
--©
शुभ रात्रि,
(रात भर जलना है !)
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व्यथा एक दीप की !
दर्द पोशीदा है, ठहरा ठहरा है आँखों में,
मोम जैसे पिघलता सा जमा जमा सा हो,
शौक से देखते हैं लोग रौशनी, परवाने से,
पता किसे है दर्द क्या है शमा सा जलने में ।
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शुभ रात्रि,
(रात भर जलना है !)
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