April 27, 2010

उन दिनों -74.

~~~~~~~ उन दिनों - 74 ~~~~~~~~
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जानना और होना
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''अब हम एक बारीक तथ्य पर ध्यान दें ।''
-वे बोले

''जानना जहाँ एक ऒर एक गतिविधि होता है, वहीं दूसरी ऒर क्या वह
एक स्थिति भी नहीं होता ?
कैसी स्थिति किसकी स्थिति ?

''आप समझ रहे है न ?''

-उन्होंने मुझे सहारा देते हुए पूछा .

मैं बहुत देर तक उनकी बात पर गौर करता रहा ।

''देखिए अगर आप यहाँ से एक कदम भी आगे बढ़ सकते हैं तो समझिए
लौटना असंभव हो जाएगा । और सच तो यह है कि कोई लौटनेवाला ही
कहीं न होगा ।''

वे बड़ी सतर्कतापूर्वक एक एक शब्द बोल रहे थे ।

यह मेरा इम्तहान था ।

देखिए जब मैं कह रहा हूँ कि जानना एक स्थितिपरक तथ्य भी है तो
मेरा आशय यह है कि उस जानने को आप होने के अर्थ में भी ग्रहण
कर सकते हैं । वह है - होना, - निपट होना, न कि कुछ होना या कुछ से
कुछ और  होना या बनना ।

उन की निगाहें मुझ पर टिकीं थीं । जंरूर यह एक कठिन समय था ।

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April 25, 2010

उन दिनों-73.

~~~~~~उन दिनों-73~~~~~~~~
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'' इस प्रकार जानना एक तो स्थिति है, और दूसरी ऒर जानना   एक गतिविधि भी है ।''
किसी माध्यम से कुछ जानना, और स्वयं उस माध्यम को भी जानना ।
माध्यम की सहायता से जब कुछ जाना जाता है, तो ऎसा जानना एक
गतिविधि होता है, किन्तु जिस जानने में माध्यम को ही जाना जाता है
क्या वह जानना गतिविधि है, ऎसा कहना ठीक होगा ?
क्या वह जानना गतिविधि की बजाय एक सहज बोध ही नहीं होता ?''
उन्होंने पूछा .

April 23, 2010

सूर्य का स्वागत


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सूर्य का स्वागत !
सूर्य हाथों में लिए
द्वार पर आई सुबह ।
देखता हूँ उसका चेहरा
मैं बड़ी उम्मीद से ।

क्या ये कोई स्वप्न है,
या नया विहान है ?
मन मेरा ना समझ पाता
सुबह से अनजान है ।

भोर तक जागी रहीं थीं
चिर सजग आँखें उनींदी ।
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April 20, 2010

उन दिनों 72

~~~~~~~~~उन दिनों-72~~~~~~~~
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''
तो जानना एक प्रकार से 'सकर्मक' क्रिया होता है, तो दूसरी तरह से 'अकर्मक' गतिविधि होता है । ''
''
क्या क्रिया और गतिविधि दो भिन्न चीज़े हैं ?''
-
मैंने पूछा
''
हाँ, जैसे प्रेमया घृणा, आदर, ... आदि होते हैं । ''
''
हाँ ।''
''
हम प्रेम करते हैं, और हमें प्रेम होता हैबहरहाल प्रेम ठीक-ठीक क्या है, इसे हालाँकि हम तो जानते हैं, जानने का ख़याल ही कभी हमें आता है, लेकिन हमें सिखाया जाता है, : किसी से घृणा मत करोअपने माता-पिता से, भाई-बहनों से, राष्ट्र से, भाषा से, धर्म से प्रेम करोतो क्या प्रेम या घृणा भी दो प्रकार की चीज़ें नहीं होतीं ?''
''
हाँ, कभी-कभी जिससे हमें डर लगता है, हम उससे भी किसी मजबूरी के चलते प्रेम या प्रेम करने का दिखावा करते हैं । ''
''
हम 'जानने' के बारे में कह रहे थेएक तो जानना एक क्रिया होती है, an activity, जिसमें इन्द्रियों, या मन के माध्यम से विषय को प्रत्यक्ष संपर्क में ग्रहण किया जाता है, जहाँ ज्ञाता, ज्ञान, और ज्ञेय किसी 'माध्यम' से एक ही क्रिया में आपस में घनिष्ठत: संबंधित होते हैंमाध्यम के भेद के अनुसार जानने का प्रकार बदलता रहता हैविषय के अनुसार माध्यम को भी बदला जाता है, या ऐसा करना जरूरी ही होता हैकिन्तु ज्ञाता ? स्पष्ट ही है कि ज्ञाता सदैव अपरिवर्त्तित रहता हैऔर 'जानना'भी इसी प्रकार मूलत: अपरिवर्त्तित रहता हैलेकिन 'जानकारी'? क्या वह अपरिवर्त्तित रहती है ? क्या वह निरंतर बदलती नहीं रहती ? क्या हम उसे सत्य नहीं मन बैठते हैं ?
'
तथ्यों' के जगत में क्या जानकारी स्वयमेव सदा एक जैसी रह सकती है ?लेकिन हम उसे दो भागों में बाँटकर एक से अपनी और अपनी पहचान की दुनिया को एक सत्य की तरह ग्रहण करने लगते हैं । ''
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