आज की कविता /आह उदयपुर !
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सुदूर है वह हरित पर्वत,
पास है यह सुरम्य झील,
वे घनेरे मेघ काले,
और नभ वह नील,
झोंके पवन के धीमे-धीमे,
छेड़ते हैं राग कोई,
लहरों में बज उठा अनोखा
मधुर स्वर में साज़ कोई,
एक नौका झील में,
एक मेरे हृदय में भी,
तुम कहो तो साथ ले लें
चाँद तारों को अभी,
हाँ मगर मत भूल जाना,
सँजो रखना याद में भी ,
और फ़िर फ़िर याद करना,
प्रीति को तुम बाद में भी !
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सुदूर है वह हरित पर्वत,
पास है यह सुरम्य झील,
वे घनेरे मेघ काले,
और नभ वह नील,
झोंके पवन के धीमे-धीमे,
छेड़ते हैं राग कोई,
लहरों में बज उठा अनोखा
मधुर स्वर में साज़ कोई,
एक नौका झील में,
एक मेरे हृदय में भी,
तुम कहो तो साथ ले लें
चाँद तारों को अभी,
हाँ मगर मत भूल जाना,
सँजो रखना याद में भी ,
और फ़िर फ़िर याद करना,
प्रीति को तुम बाद में भी !
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