प्रसंगवश,
गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर
कौन है ’जन-गण-मन-अधिनायक’?
जन अर्थात् जन-सामान्य,
गण अर्थात् गण्यमान अर्थात् देवता, गणतन्त्र के प्रतिनिधि,
मन अर्थात् राष्ट्र की चेतना,
अधिनायक अर्थात् सर्वोच्च शासक-शक्ति,
स्पष्ट है कि ’अधिनायक’ का अर्थ कोई मनुष्य-विशेष न होकर परमेश्वर मात्र है ।
हम सामान्यतः अधिनायक शब्द को dictator के अर्थ में ग्रहण करते हैं, और जिन्हें अधिनायक शब्द का यही भाव और अर्थ गुरुदेव की इस रचना में दिखलाई देता है, उनके पूर्वाग्रह पर मुझे हँसी आती है । और इसकी रचना की तारीख़ किंग जॉर्ज के भारत-आगमन के आसपास होने का यह मतलब निकालना कि गुरुदेव ने यह रचना उनकी प्रशस्ति में लिखी है, शुद्ध काल्पनिक अनुमान ही होगा, और इस आधार पर ठाकुर रवीन्द्रनाथ के साथ हमारा घोर अन्याय भी होगा । क्या देखना यह उचित नहीं होगा कि गीताञ्जलि और दूसरी असंख्य रचनाओं में उन्होंने ’ईश्वर’ का उल्लेख नहीं किया है? क्या कहीं किंग जॉर्ज का परोक्ष / अपरोक्ष उल्लेख किया है?
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गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर
कौन है ’जन-गण-मन-अधिनायक’?
जन अर्थात् जन-सामान्य,
गण अर्थात् गण्यमान अर्थात् देवता, गणतन्त्र के प्रतिनिधि,
मन अर्थात् राष्ट्र की चेतना,
अधिनायक अर्थात् सर्वोच्च शासक-शक्ति,
स्पष्ट है कि ’अधिनायक’ का अर्थ कोई मनुष्य-विशेष न होकर परमेश्वर मात्र है ।
हम सामान्यतः अधिनायक शब्द को dictator के अर्थ में ग्रहण करते हैं, और जिन्हें अधिनायक शब्द का यही भाव और अर्थ गुरुदेव की इस रचना में दिखलाई देता है, उनके पूर्वाग्रह पर मुझे हँसी आती है । और इसकी रचना की तारीख़ किंग जॉर्ज के भारत-आगमन के आसपास होने का यह मतलब निकालना कि गुरुदेव ने यह रचना उनकी प्रशस्ति में लिखी है, शुद्ध काल्पनिक अनुमान ही होगा, और इस आधार पर ठाकुर रवीन्द्रनाथ के साथ हमारा घोर अन्याय भी होगा । क्या देखना यह उचित नहीं होगा कि गीताञ्जलि और दूसरी असंख्य रचनाओं में उन्होंने ’ईश्वर’ का उल्लेख नहीं किया है? क्या कहीं किंग जॉर्ज का परोक्ष / अपरोक्ष उल्लेख किया है?
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