August 30, 2017

क़ानून

आज की कविता
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’मैं नहीं करता सम्मान क़ानून का!’
कहना भी आसान है, और करना* भी ।
लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं,
कि मैं तोड़ता हूँ, तोड़ूंगा क़ानून को!
क्योंकि क़ानून व्यवस्था है ज़रूरी है,
न मिले भले उससे न्याय, मज़बूरी है ।
यूँ भी कानून का सम्मान कौन करता है?
बस कमज़ोर ही तो क़ानून से डरता है ।
जो न कमज़ोर की रक्षा कर सके क़ानून,
ऐसे क़ानून से क्यों करे उम्मीद कोई?
क़ानून को बदलने के भी तरीके हैं,
सिर्फ़ बहस से क़ानून कैसे बदलेगा?
किसी मग़रूर ताक़तवर रुतबे वाले को,
कोसने या उससे लड़ने से क्या होगा?
मैं नहीं जानता कि क्या बदलता है,
क्या आदमी क़ानून को बदलता है,
या क़ानून ही आदमी को बदलता है,
मैं तो बस सिर्फ़ इतना ही जानता हूँ,
जो भी चीज़ बनती है, मिटा करती है ।
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 *(या सम्मान न-करना) 

August 28, 2017

मशक-दशकम् / प्रसंगवश

मशक-दशकम्
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१. मच्छर मलेरिया, यलो-फ़ीवर, और डेंगी जैसी घातक बीमारियाँ फैलाते हैं जिनसे हर साल लाखों-करोड़ों मनुष्य मरते हैं ।
२.मादा-मच्छर अपने अंडों और वंश के लिए मनुष्य के खून में पाये जानेवाले प्रोटीन पर निर्भर होते हैं । नर-मच्छरों को इस अतिरिक्त प्रोटीन की ज़रूरत नहीं होती और वे फूलों के रस से पोषण पाते हैं ।
३.केवल कुछ प्रकार के मच्छर ही मनुष्य के खून पर पलते-बढ़ते हैं, शेष मच्छर रेंगनेवाले जीवों, उभयचर जीवों या पक्षियों के खून पर पलते-बढ़ते हैं ।
४.मच्छर १.५ मील प्रति घंटे की गति से उड़ सकते हैं । मधु-मक्खियों और तितलियों की तुलना में बहुत धीमे ।
५.उनके पंख अत्यंत तीव्र गति से कंपन करते हैं जिसे हम उनकी भनभनाहट के रूप में सुनते हैं ।
६.जोड़ा बनानेवाले मच्छर समान-गति से पंख हिलाते हुए तो अपने लिए उपयुक्त साथी की पहचान कर लेते हैं ।
७.समुद्र-तटीयक्षेत्रों में पनपनेवाले मच्छर उपयुक्त वास-स्थल की तलाश में अपने स्थान से १०० मील दूर तक भी चले जाया करते हैं ।
८.मादा-मच्छर कुछ इंच गहरे ठहरे हुए जमा पानी में भी अपने अंडे देती हैं जहाँ उनके लार्वा तेजी से पनपते हुए देखे जा सकते हैं, इसलिए अपने निवास या कार्य-स्थल के आसपास, बगीचे में या छत, आँगन में कहीं पानी जमा न होने दें ।
९.एक वयस्क मच्छर की औसत उम्र ५-६ माह तक भी हो सकती है ।
१०.मच्छरों के पास यह विशेष-क्षमता होती है कि वे वातावरण में उपस्थित कॉर्बन-डाई-ऑक्साइड को तुरंत जान लेते हैं जिसकी सहायता से वे आसानी से उनका भोजन तलाश लेते हैं ।
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चलते-चलते :
मच्छर को मच्छर मत समझो बड़ी बीमारी है,
उसमें भी अचरज बस यह, वह केवल नारी है !
(अर्थात् यह कि केवल मादा मच्छर ही ! स्पष्टीकरण इसलिए ताकि किसी को गलतफ़हमी न हो !)
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August 25, 2017

तथ्य : एक यथार्थ

आज की कविता
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तथ्य : एक यथार्थ
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कोई खुद से बातें कैसे कर सकता है!
बातें तो दो के बीच हुआ करती हैं ।
लेकिन अकसर ही मैंने ये भी देखा है,
किसी-किसी को बातें करते खुद से ।
फिर जब मैं उससे बातें करने लगा,
मुझे नहीं मालूम कि किससे बातें कीं!
दो जो पहले आपस में बातें करते थे,
उनमें से कौन है जिससे मैंने बातें कीं?
और बाद में जब उससे मिलकर मैं लौटा,
चलते-चलते ही मेरे मन ने जब सोचा ।
तो सवाल यह मेरे ही तो मन आया,
क्या मैं भी खुद से ही बातें करता हूँ?
बातें तो दो के बीच हुआ करती हैं,
क्या सचमुच मैं बँटा हुआ हूँ दो में ?
क्या यह बस एक ख़याल ही नहीं मेरा?
ख़याल ही तो बातें करता है ख़याल से!
वह दो होकर बातें करता था जैसे खुद से,
जिसको देखा था मैंने बातें करते खुद से ।
जब देखा था तब उसको ही बस देखा था,
और तभी तो यह ख़याल मेरे मन आया,
उसके पहले कहाँ कौन सा था ख़याल?
जब देखा था तब क्या था मैं बेख़याल?
शायद ही कोई यक़ीं करेगा इस पर,
सिर्फ़ वही जिस पर गुज़रा हो ऐसा कुछ!
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August 22, 2017

आज की कविता : धूप-छाहीं रंग

आज की कविता : धूप-छाहीं रंग
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जुलाहा बुनता है चदरिया,
धूप-छाहीं रंग के धागों से,
और ग्राहक भ्रमित-बुद्धि,
चकित-दृष्टि से देखते !
करते विवाद ये है सुनहला,
नहीं, ये है नीला रुपहला,
मुस्कुराता है बस जुलाहा,
सुनता रहता तर्क उनके,
उसे ही ओढ़कर बिछाकर,
घड़ी भर विश्राम करके,
लौट जाता हाट से,
जो कमाई हो गई वह,
धर देता गृहिणी के हाथ पे,
गृहिणी के हाथों में,
रुपहले, सुनहले सिक्के,
देखकर वह सुखी होता,
राम को आशीष देता,
जुलाहा बुनता है चदरिया,
धूप-छाहीं रंग के धागों से,
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जुलाहा कहता है बोल,
कबित्त से कुछ अनमोल,
गाता है मंद-स्वरों में,
राम की महिमा को,
राम उसके श्यामरंग,
या लिए हैं धनुष-बाण,
मानता नहीं वह कुछ,
हाँ जानता ज़रूर है ।
गाहक जब सुनते हैं,
करघे की खट्-खट्,
देखते हैं वे जब,
उसकी घरवाली को,
तय नहीं कर पाते,
वह हिन्दू है या तुरक़!
न हिन्दू को न तुरक़ को,
गाहक को क्या मतलब,
राम से या श्याम से,
गाहक को मतलब है,
बस वाजिब दाम से
जुलाहा जानता है,
गाहक ही तो राम है,
पर भूलता भी नहीं,
राम ही तो गाहक है,
जुलाहा नहीं करता मोल,
गाहक भी हर तरह का,
जो जितना चाहे दे दे,
जुलाहा दुःखी नहीं होता,
प्रेम का भला क्या मोल?
चदरिया का ज़रूर है,
चदरिया फिर बन जायेगी,
उसका भी भला क्या मोल?
जुलाहा कहता है बोल,
कबित्त से कुछ अनमोल,
गाता है मंद-स्वरों में,
राम की महिमा को,
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August 20, 2017

कला का मूल्य

आज की कविता
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फूलवाले बाबा!
जैसे फूलवाले बाबा लाते हैं फूल रोज़,
ऐसी निष्ठा से जैसे प्रभु को हों अर्पित,
नहीं पूछते ’बदले में क्या दोगे तुम’,
और भक्त भी खुश हो केवल यही सोचते,
कितने सुन्दर फूल कितनी भीनी महक!
मेहनत से लाये, तरो-ताज़ा हैं अब तक!
भक्त कभी कोई विवेचना कर देते हैं,
केवल प्रसंगवश, अहोभाव से भरकर,
फूलवाले बाबा केवल मुस्कुरा देते हैं,
कहते हैं प्रकृति ने बाँटा, हमने पाया,
प्रकृति या प्रभु को भी नहीं पता होगा,
उसकी कला का मूल्य, कितना प्रसाद!
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प्रतिभा-संवर्धन / नए रचनाकार

साहित्य साधना
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पिछले दस-बीस सालों से जब से ’नेट’ का विस्तार हुआ है, अंग्रेज़ी का साम्राज्य ढहने लगा है, सभी दूसरी भारतीय और अन्य सभी भाषाओं में लिखनेवालों की प्रतिभा को अवसर मिला है कि अपनी-अपनी भाषा में अच्छा साहित्य लिखें । लेकिन बहुत से नए लेखकों की प्रतिभा अनेक कारणों से कुंठित होकर रह जाती है । सौभाग्य से हिंदी का साहित्य बहुत समृद्ध है और इसलिए नए रचनाकारों के लिए जहाँ अवसर भी अधिक हैं प्रतिस्पर्धा भी उतनी अधिक कठिन है । पता नहीं अवसर और प्रतिस्पर्धा का अनुपात स्थिर है या कम-ज्यादा होता रहता है लेकिन यदि कुछ बातों पर नए रचनाकार ध्यान दें तो जहाँ एक ओर उनकी रचनात्मकता में निखार आएगा, वहीं उन्हें इसका लाभ इस रूप में भी मिलेगा कि गुणात्मक स्तर पर उनकी प्रतिभा और भी परिष्कृत तथा विकसित होगी, उन्हें अधिक आत्म-संतोष मिलेगा । आनुषंगिक लाभ यह है कि इससे हिंदी भी समृद्ध होगी । साहित्य साधना अगर व्यवसाय है तो आप किन्हीं फ़ार्मूलों, तकनीकों और उपलब्ध साधनों से तात्कालिक तौर पर शायद सफल हो सकते हैं लेकिन उससे आपको संतोष प्राप्त होगा ही यह नहीं कहा जा सकता । इन फ़ार्मूलों, तकनीकों और उपलब्ध साधनों के बारे में आप स्थापित रचनाकारों से भी मार्गदर्शन ले सकते हैं किंतु आपको यह स्पष्ट होना चाहिए कि आपकी साहित्य-साधना आपको स्थायी संतुष्टि दे  यह ज़रूरी नहीं ।
इसलिए अगर वस्तुतः आप एक संतुष्ट रचनाकार होने के बारे में सोचते हैं तो आपको पहले तो रचना के विषय से गहराई से जुड़ना होगा । आपको तदनुसार भाषा-शैली और विधा को सुनिश्चित करना होगा जैसे आप कविता में अपनी बात बेहतर ढंग से कह सकते हैं या कहानी या लेख में ।  आप अपनी रचना कितना विस्तार देते हैं कि आपकी बात अधिक से अधिक अच्छी तरह पाठकों तक पहुँच सके । एक छोटी, संक्षिप्त प्रखर रचना भी पाठक को झकझोरकर रख सकती है और एक लंबी रचना भी उसे बाँधे रख सकती है यदि आप उस रचना से वाक़ई गहराई से जुड़े हैं । किसी विशेष संदेश को अपनी रचना के माध्यम से पाठक तक पहुँचाने के भी अपने हानि-लाभ हो सकते हैं । केवल चौंकानेवाले वाक्यों से आप पाठक को थोड़ी देर के लिए प्रभावित तो कर सकते हैं लेकिन उसका मनोरंजन हो जाने पर वह और अधिक मनोरंजन की तलाश में लग जाएगा और जाने-अनजाने आपसे भी अपेक्षा करने लगेगा कि आप निरंतर नई चौंकानेवाली प्रस्तुतियाँ देते रहें ।
अभी दो-चार दिन पहले मैं एक शायर की शायरी यू-ट्यूब पर ’सुन’ और ’देख’ रहा था । हाँ उनकी शायरी चौंकाती ज़रूर थी लेकिन इससे अधिक वहाँ कुछ नहीं था । कुछ पाठक / श्रोता इतने में ही प्रभावित हो जाते हैं इस शायरी या ऐसे साहित्य में गहराई कितनी हो सकती है इसे संवेदनशील पाठक / श्रोता ही महसूस कर सकता है । लगभग ऐसा ही कुछ उन गायकों के साथ भी होता है जिनकी गायन-साधना और रियाज़ पर आश्चर्य होता है लेकिन व्हॉट नेक्स्ट? अच्छे से अच्छे कलाकार की साधना और तपस्या का सम्मान अवश्य ही होना चाहिए और होता भी है किंतु इसे तय करने का क्या कोई पैमाना हो सकता है? कलाकार जब कला को पेशेवर तौर से करता है तो यह कला और स्वयं उसका भी दुर्भाग्य है । यही बात साहित्यकार पर भी लागू होती है । शिल्पकार, चित्रकार या साहित्यकार जैसे ही अपनी रचना की ’बोली’ लगाता है उसी क्षण उसका मूल्य ’तय’ हो जाता है और वह बाज़ार की एक वस्तु हो जाती है । और आश्चर्य नहीं कि बहुत से साहित्यकार प्रतिष्ठा, सम्मान और ’पहचान’ स्थापित करने के प्रयास में अपनी रचनाधर्मिता के अमूल्य होने को भूल बैठते हैं । कला या साहित्य की महानता इसी में है कि आपने उसके माध्यम से जिसे अभिव्यक्त किया है उसे दर्शक / पाठक / श्रोता ने कितनी गहराई से अनुभव, -न कि उसका उपभोग किया है ।  यह ’उपभोग’ की दृष्टि वास्तव में रचनाकार और उसकी रचना को विनष्ट कर देती है ।
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भाषा और प्रगतिशीलता

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कुछ दिनों पहले एक मित्र ने एक वीडिओ पोस्ट किया था जिसके साथ चेतावनी थी कि इसे सतर्कता से देखें, क्योंकि हो सकता है इससे आपको धक्का लग सकता है ...
वीडिओ शुरू ही इंटरव्यू लेनेवाले के अंग्रेज़ी वाक्य से होता है जो अंग्रेज़ी में प्रश्न करता है :
" कुड यू स्पीक ए फ़्यू सेन्टेन्सेस इन इंग्लिश ...?"
अभी उसका वाक्य पूरा भी नहीं हुआ होता कि इंटरव्यू देनेवाला ऊँची आवाज़ में रोषपूर्वक हिंदी में गालियों की बौछार से जवाब देता हुआ उससे हिन्दी और बीच बीच में फ़र्राटेदार अंग्रेज़ी में बोलता हुआ यह दर्शाता है कि हमने पाँच साल (या ज़्यादा) कौन-कौन से पापड़ बेले, कितने प्रोजेक्ट्स किए, कितने प्रेज़ेन्टेशन दिये और आप बस एच.आर. में एम.बी.ए. कर यहाँ इन्टरव्यू लेने बैठ गए क्योंकि आप अंग्रेज़ी स्कूल (कॉन्वेन्ट) में पढ़े और हमने गरीबी में बड़ी कठिनाइयों से स्कूल और पी.ई.टी. की परीक्षाएँ पास कीं । पूरे वीडिओ में अन्त तक वही उग्रतापूर्वक यह दर्शाता है कि अंग्रेज़ी पढ़े-लिखे लोगों ने कैसे टेलेन्ट रखनेवालों के अवसर छीन लिए ।
यहाँ तक ठीक था लेकिन क्या अंग्रेज़ी पर अधिकारपूर्वक बोल सकने का यह अर्थ है कि अंग्रेज़ी की गालियों के पैबन्द (या ठिगले) भी बीच-बीच में जोड़े जाएँ?
हिन्दी और दूसरी भारतीय भाषाओं को सबसे अधिक नुक़्सान अंग्रेज़ी ने नहीं अंग्रेज़ी संस्कृति और सभ्यता ने पहुँचाया है । तमाम अंग्रेज़ी वल्गर शब्दों का प्रयोग धड़ल्ले से करने से आप भले ही खुद को स्मार्ट और डैशिंग समझ लें यह आक्रामकता न सिर्फ़ आपके आत्मविश्वास की कमी को दर्शाती है, बल्कि आपकी मानसिकता को भी बुरी तरह विकृत कर देती है । आज के युवा-युवतियों ने अंग्रेज़ी (भाषा) को अपनाया तो शायद यह वक़्त का तक़ाज़ा है किंतु अपनी संस्कृति और सभ्यता की अच्छाइयों की क़ीमत पर अंग्रेज़ी और उससे जुड़ी सांस्कृतिक और सभ्यताई बुराइयों को सीखना और उनका गर्वपूर्वक प्रदर्शन करना क्या आपके और पूरे समाज के लिए किसी भी प्रकार से हितकारी है?
यदि आप अंग्रेज़ी के वल्गर शब्दों का प्रयोग खुले आम करने में संकोच अनुभव नहीं करते तो आप स्त्री के लिए समाज में सम्मान की दृष्टि होने की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं? और निश्चित ही फ़िल्मों का भी इसमें बहुत बड़ा योगदान है । और यदि कोई स्त्री ’स्त्री-स्वतंत्रता’ के नाम पर ऐसे शब्दों का प्रयोग करने में संकोच अनुभव नहीं करती तो भी इससे समाज में क्या संदेश जाता है? लोग उस स्त्री को या दूसरी भी किन्हीं स्त्रियों को अगर गलत दृष्टि से देखने लगें तो क्या वह स्त्री भी स्वयं ही इसके लिए किसी हद तक ज़िम्मेवार नहीं है?
हिन्दी के लिए दुर्भाग्यजनक बात है कि राग दरबारी (श्रीलाल शुक्ल) से लेकर नामवर सिंह जैसे लोगों ने भी ’सर्वहारा’ और प्रगतिशीलता की आड़ और दंभ में साहित्य में अभद्र शब्दों का प्रयोग शुरु किया और कमलेश्वर जैसे लोगों ने भी इसे ही ’आधुनिक’ होना समझा ।
प्रश्न सिर्फ़ इतना है कि क्या इस प्रगतिशीलता से समाज में स्त्री का स्थान वाक़ई अधिक सुरक्षित अधिक सम्मानजनक हो पाएगा?
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नीड़ का निर्माण

एक कविता अधूरी सी अंतहीन ...
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नीड़ का निर्माण कर लूँ,
ऐसी न कल्पना थी कभी ,
क्योंकि मैं पंछी गगन का,
उड़ते-उड़ते थक गया तो,
लौटकर आ जाता हूँ फिर,
जब ये धरती है मेरा घर,
क्यों बनाऊँ फिर मैं नीड़?
मेरा जीवन क्यों हो सीमित,
छोटे से एक नीड़ तक,
यह असीम आकाश मेरा,
और यह धरती असीम,
छोड़कर जाना नहीं है,
मुझको अपना कोई चिन्ह,
जानता हूँ लौटना होगा पुनः,
रात की निद्रा तो बस विश्राम है,
फिर नया दिन नई मंज़िल,
फिर से नया विहान है !
जिनको बनाना हो बनायें,
अपना-अपना अलग नीड़,
करते रहें संघर्ष, सृजन,
और बढ़ाते रहें भीड़,
मेरा जीवन क्यों हो सीमित,
छोटे से एक नीड़ तक,
यह असीम आकाश मेरा,
और यह धरती असीम,
क्योंकि मैं पंछी गगन का,
उड़ते-उड़ते थक गया तो,
लौटकर आ जाता हूँ फिर,
जब ये धरती है मेरा घर,
क्यों बनाऊँ फिर मैं नीड़?
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August 15, 2017

ह - नुक्‍ता चीं -अनुक्‍त चिह्न शब्दकोश

नुक्‍ता चीं -अनुक्‍त चिह्न शब्दकोश
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हक़ (उचित, वाजिब, न्याय्य, अधिकार),
हक़ीक़त (सच्चाई, यथार्थ, तथ्य, रहस्य),
हक़ीक़तन (वास्तव में),
हक़ीक़ी (अपरिहार्य, सच्चा), [इश्क़ हक़ीकी -ईश्वरीय प्रेम (लौकिक प्रेम 'इश्क़े-मज़ाजी' की तुलना में)],
हक़ीर (गर्हित, तुच्छ),
हज़म (पचना, खा जाना),
हज़रत (महामहिम, महान),
हज़ार (संख्या १०००),[संस्कृत - स-ह-स्र],
हज़ारहा (हज़ारों), [सहस्रशः],
हज़ारा (जिसमें हज़ार’ बहुत से हिस्से हों),
हज़ारी (हज़ार से संबंधित),
हज़ारी-बाज़ारी (फ़ौजी और तिजारती -सैनिक और व्यापारी),
हफ़्ता (सप्ताह),
हमक़ौम (एक ही जाति / देश / स्थान / संस्कृति के),
हमख़ियाल (एक समान विचारधारा के),
हमज़बान (एक ही भाषा बोलनेवाले),
हमज़ाद (जुड़वाँ),
हमज़ात (एक ही क़िस्म के),
हम-ज़ुल्फ़ (साढ़ू),
हममज़हब (एक ही परंपरा के),
हमराज़ (एक-दूसरे के रहस्य जाननेवाले),
हमसफ़र (सहयात्री),
हर-फ़न-मौला,
हरगिज़ (कदापि, क़तई, बिलकुल -’नहीं’ के साथ प्रयुक्त होता है),
हरफ़ / हर्फ़ (वर्ण, -विशेष रूप से अरबी या फ़ारसी भाषा में लिखा जानेवाला),
हरफ़नमौला (हर-फ़न-मौला),
बहरफ़ (शब्दशः, अक्षरशः, जैसे का तैसा, यथावत्),
हर्फ़ (हरफ़),
हर्राफ़ (चतुर, तीक्ष्णबुद्धिवाला),
हलक़ (गला, कंठ),
हलक़ा (सीमित क्षेत्र, पटवारी, तहसीलदार का हलक़ा), [हलका -वज़न में कम],
हलफ़ (शपथ),
हलफ़नामा (शपथपत्र),
हलालख़ोर (जो विधिसम्मत अन्न का सेवन करता है),
हलालख़ोर (सफ़ाई कर्मचारी),
हाज़मा (पाचन),
हाज़िम (पाचक, पच जानेवाला),
हाज़िर (प्रस्तुत, उपस्थित),
हाज़िरजवाब,
हाज़िरी,
हाफ़िज़ (रक्षा करनेवाला, जिसे क़ुरान कंठस्थ है), [मुहाफ़िज़ -शरणार्थी, बही-ख़ाता रखनेवाला, महफ़ूज़ - सुरक्षित],
हिक़ारत (घृणा, नफ़रत),
हिफ़ाज़त (रक्षा, सुरक्षा),
हिफ़ाज़ती (सुरक्षा से संबंधित, रक्षात्मक),
हिमाक़त (मूर्खता, धृष्टता, उद्दंडता),
हीलाबाज़ (चालबाज़),
हुक़्क़ा,
हुक़्केबाज़,
हुक़्क़ा-पानी,
हुज़ूर (मालिक, मुख्य व्यक्ति या स्थान, हुज़ूर तहसील),
हुज़ूरी - (सेवा, ख़िदमत), [जी-हुज़ूरी (चापलूसी)],
हैज़ा (विषूचिका, कॉलेरा),
हैफ़ (खेद, अफ़्सोस),
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स - नुक्‍ता चीं -अनुक्‍त चिह्न शब्दकोश

नुक्‍ता चीं -अनुक्‍त चिह्न शब्दकोश
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स  
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सक़्क़ा (जल-सींचने का पात्र) [संस्कृत - सिच् > सेक, अभिसिच् > अभिषेक],
सख़्त (कठोर, ठोस, सशक्त) [संस्कृत -शक्त, शक्तिः, शक्ती - सख़्ती],
सख़्ती,
सज़ा (योग्य, लायक़, दण्ड), [संस्कृत - सज्, सज्ज, सज्जित],
सज़ायाफ़्ता, [संस्कृत - सज्जायाः आप्तो ,यः सज़ावार],
सदक़ा (दान, अर्पण, समर्पण), [सदक़े जाना],
सफ़र (यात्रा),
सफ़री (यात्रा, यात्रा से संबद्ध),
सफ़हा (किताब का पृष्ठ, पाना),
सफ़ा (साफ़, स्वच्छ),
सफ़ाया (निवारण, समाप्ति),
सफ़ाई,
सफ़ीर (दूत),
सफ़ेद,
सफ़ेदपोश,
सफ़ेदा (खड़िया मिट्टी, चूना),
सफ़ेदी.
सबक़ (पाठ),
सब्ज़ (हरा, ताज़ा),
सब्ज़बाग़ (दिखाना),
सब्ज़ा (हरापन, हरीतिमा, हरियाली) [उग आया है दरो-दीवार पर सब्ज़ा ग़ालिब],
सब्ज़ी (हरापन, हरीतिमा, हरियाली, पत्तीदार, तरकारी),
सब्ज़ी-फ़रोश,
सरग़ना (नायक, प्रमुख),
सर्दी-ज़ुकाम,
सर्फ़ (ख़र्च करना, होना),
सर्राफ़,
सर्राफ़ा,
सलीक़ा (रीति, विधि, तरीका, रूढ़ि, परिपाटी),
साक़ी (मदिरा का प्याला देनेवाला, प्रिय), [संस्कृत -साक्षी],
साज़ (वाद्ययन्त्र),
साज़-संगीत,
साज़ो-सामान,
साज़िंदा (वादक, संगीतकार),
साज़िश (षड्यंत्र),
साज़िशी,
साफ़ (स्वच्छ, स्पष्ट, सफ़ेद),
साफ़ी (सफ़ाई करने का कपड़ा),
साबिक़ (पूर्व, पहले),
साबक़ा (सुदीर्घ परिचय, व्यवहार),
सिफ़त (प्रकृति, गुण, स्वभाव, चरित्र, आदत),
सिफ़र (शून्य), न-कुछ,
सिफ़ारत (दूत से संबंधित, मध्यस्थता),
सिफ़ारत-ख़ाना (दूतावास),
सिफ़ारिश (अनुशंसा, किसी के पक्ष में किया जानेवाला अनुरोध),
सिफ़ारिशी,
सिर्फ़ (मात्र, केवल),
सीख़ (पतली तारनुमा डंडी) [सीख-कबाब],
सीख़चा (खिड़की में लगी छ्ड़ें),
सीख़िया (सीख़ पर बना / भुना),
सुख़न (भाषण, वक्तृता), [हमसुख़न -एक सी भाषा बोलनेवाले],
सुराग़ (संकेत),
सुर्ख़ (गहरा या चमकदार लाल),
सुर्ख़ी (लालिमा, लाली),
सूफ़ी (सूफ़ी इस्लामिक आचार-विचार),
सूराख़ (छिद्र, छेद),
सैक़ल (कल-पुर्ज़ों को सुधारना, स्वच्छ करना)
सैक़लगर,
सोख़्ता (सोखनेवाला काग़ज़), [स्याही-सोख़्ता],
सोफ़ता (उचित अवसर, फ़ुरसत, प्रासंगिक),
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August 14, 2017

श - नुक्‍ता चीं - अनुक्‍त चिह्न शब्दकोश

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श -- नुक्‍ता चीं - अनुक्‍त चिह्न शब्दकोश
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शख़्स, शख़स (व्यक्ति),
शख़्सियत (व्यक्तित्व),
शख़्सी (व्यक्तिगत, वैयक्तिक),
शग़ल (फ़ुरसत, समय बिताना, गतिविधि),
शग़ला, शग़ल,
शगूफ़ा (फूल की कली, छिड़ना, छेड़ना, शुरू होना) [शगूफ़ा खिलना, छोड़ना],
शफ़क़, शफ़क़त (सुबह-शाम को होनेवाली आकाश की लालिमा),
शफ़ा (चिकित्सा, इलाज, उपचार),
शफ़ाख़ाना (दवाख़ाना, अस्पताल),
शरीफ़ (सभ्य),
शरीफ़ा (सीताफल),
शर्क़ी (पूर्व दिशा का, [मशरिक़ -पूर्व दिश],
शाख़ (डाली, शाखा),
शिगाफ़ (दरार, टूटना, कटने से हुआ घाव),
शिग़ाल (सियार) [संस्कृत - श्रगाल],
शिगूफ़ा, शिगूफ़ा,
शीराज़ा (ग्रथन, पुस्तक की जिल्द बाँधना), [शीराज़ा खुलना, टूटना, बिखरना],
शुग़ल, शग़ल,
शेख़ (गणमान्य, विशिष्ट), [शेख़-चिल्ली - कल्पना-लोक में विचरनेवाला],
शेख़ी (झूठी शान), [शेख़ी जताना, हाँकना, मारना],
शेख़ीबाज़ - शेख़ी जतानेवाला,
शोख़ (प्रसन्न, ख़ुश, चंचल, सनकी, शैतान, अधीर, चमकीला -रंग),
शोख़ी (रूमानी मिज़ाज)
शौक़ (इच्छा, रुचि, पसन्द होना), [शौक़ रखना, शौक फ़रमाना],
शौक़िया (प्रेमपूर्ण, प्रेमवश, लगाव होने से),
शौक़ीन (रुचि रखनेवाला),
शौक़ीनी,
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ल, व, - नुक्ता चीं -अनुक्त चिह्न शब्दकोश

ल - नुक्ता चीं -अनुक्त  चिह्न शब्दकोश
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लक़दक़ (निराश, अर्थहीन),
लक़दक़ (प्रखर, तेजस्वी),
लक़लक़् (एक पक्षी),
लक़वा (पक्षाघात, लू या ठंड लग जाना),
लख़लख़ा (सुगंधित द्रव्यों का मिश्रण),
लख़्त (लख़्ते-जिगर, लख़्ते-दिल, अत्यन्त प्रिय),
लताफ़त (नज़ाकत, मृदुता, कोमलता, लावण्य),
लतीफ़ (सौम्य, मृदु),
लतीफ़ा (चुटकुला, हास्य पैदा करनेवाला),
लतीफ़ेबाज़ (मनोरंजक),
लफ़ज़ी (शाब्दिक),
लफ़्ज़ (शब्द), [अलफ़ाज़],
लफ़्फ़ाज़ (वाचाल),
लवाज़मा (साथ रखने की ज़रूरी चीज़ें),
लहज़ा (दृष्टि, नज़र, क्षण, प्रसंग), [लहजा -उच्चारण, ध्वनि, शैली],
लाहौल बिला क़ूवत (चिन्ता, असहमति, भय, रोष व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त किए जानेवाले शब्द),
लाज़िम (ज़रूरी, अपरिहार्य),
लाज़िमी (लाज़िम, ज़रूरी), [लाज़िमी तौर पर],
लिफ़ाफ़ा,
लिफ़ाफ़िया (दिखावटी, ऊपरी),
लिहाज़ (ध्यान, शिष्टचार, शालीनता, सम्मान),
लिहाज़ा (अतः, इसलिए),
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वक़अत (वज़न, बल, दबाव),
वक़ूफ़ (ज्ञान, समझ), [वाक़िफ़, बेवक़ूफ़, नवाक़िफ़, वक्फ़],
वक़्त (समय, घड़ी, प्रसंग, क्षण), [बवक़्त, बेवक़्त, वक़्त गुज़ारना],
वक़्फ़ (धर्मार्थ दान आदि),
वक्फ़ा (अवधि, अंतराल, दौरान),
वग़ैरह (इत्यादि),
वग़ैरा, वग़ैरह,
वज़न (भार), [वज़नी, वज़नदार],
वज़ा (स्वभाव, स्थिति, दशा),
वज़ारत (वज़ीर का कार्यालय, कार्यक्षेत्र या कार्य),
वज़ीफ़ा (छात्रवृत्ति),
वज़ीर (मन्त्री, अमात्य),
वज़ीरी,
वज़ू (प्रार्थना से पहले पानी से शरीर की शुद्धि करना -इस्लामी विधि),
वफ़ा (प्रेम, स्नेह, निष्ठा),
वफ़ाई (प्रेम),
वफ़ात (मृत्यु) [वफ़ात पाना -मरना],
वरक़ (पँखुड़ी, पत्ती, धातु की पतली पत्ती, सोने-चांदी का वरक़),
वरक़ा (आवरण-पृष्ठ, पुस्तक का),
वरग़लाना (उकसाना, बहकाना, फ़ुसलाना),
वाक़ई (वास्तव में, सचमुच),
वाक़फ़ियत (जानकारी, सूचना), [वक़ूफ़ -ज्ञान, समझ],
वाक़िफ़,
--
 

August 13, 2017

आज की कविता : ’मैं’

आज की कविता : ’मैं’
--
’मैं’ कभी भीड़ है,
’मैं’ कभी भेड़िया,
’मैं’ कभी भेड़ है,
’मैं’ कभी गड़रिया,
’मैं’ कभी नदिया है,
’मैं’ कभी है नैया,
’मैं’ कभी धारा भी,
’मैं’ किनारा भी कभी,
’मैं कभी एक भी,
’मैं’ कभी अनेक भी,
’मैं’ कभी बुरा भी,
’मैं’ कभी नेक भी!
’मैं’ कभी ’मैं’ है,
’मैं कभी ’तू’ है,
’मैं' कभी ’हम’ है,
’मैं' कभी आप भी!
’मैं’ से जुदा कोई,
दूसरा ’मैं’ कहाँ?
’मैं’ के सिवा कोई,
दूसरा ’मैं’ कहाँ?
--

August 12, 2017

र -नुक्‍ता चीं -अनुक्‍त चिह्नकोश

र -नुक्‍ता चीं -अनुक्‍त चिह्नकोश
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र 
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रक़बा (क्षेत्र -भूमि का),
रक़म (राशि, द्रव्य, सोना-चांदी, प्रकार),
 रक़मी (तय राशि, चिन्हित),
रक़ीब (प्रतियोगी),
रक़्क़ासा (नर्तकी), [रक़्स -नृत्य],
रख़्श (प्रकाश या किरण),
रग़बत (इच्छा, रुझान, झुकाव),
रदीफ़ (शायरी में किसी पंक्ति के अंत में मिलते-जुलते उच्चारण वाला शब्द),
रफ़ल (राइफल),
रफ़ल (ऊनी शॉल),
रफ़ा (समाप्ति), रफ़ा-दफ़ा,
रफ़ू (कपड़े को रफ़ू करना),
रफ़्ता (क्रमशः) [रफ़्ता-रफ़्ता],
रफ़्तार (गति, वेग, चाल),
रमज़ान (महीना),
रमज़ानी (रमज़ान के महीने का),
राज़ (रहस्य),
राज़दार (विश्वस्त, भरोसेमंद),
राज़िक़ (संवर्धन करनेवाला, परमेश्वर),
राज़ी (संतुष्ट),
राज़ी (रहस्य),
रुख़ (चेहरा, गाल, दिशा, सामने),
रुख़सत (विदा),
रुख़सती (विदाई),
रेख़ती (फ़ारसी से भिन्न प्रकार की शैली की उर्दू शायरी),
-रेज़ (रंगरेज़),
रेज़गी (रेज़गारी, खुल्ले पैसे),
रेज़ा (टुकड़ा),    
रेख़ता (बिखरा हुआ, मिश्रित, मिला-जुला),
रोग़न (मक्खन),
रोग़न (राग-रोग़न),
रोज़ (प्रतिदिन),
रोज़नामा (डायरी),
रोज़नामचा (डायरी),
रोज़-बरोज़ (दिन-प्रतिदिन),
रोज़मर्रा (आए दिन, रोज़ ही),
रोज़गार (आजीविका),
रोज़गारी (कमाई, नौकरी),
रोज़ा (रमज़ान के महीने में रखा जानेवाला),
रोज़ाना (रोज़),
रोज़ी (रोज़ी-रोटी),
रौग़न (रोग़न),
--  
    
        


    

य -नुक्‍ता चीं -अनुक्‍त चिह्नकोश

य -नुक्‍ता चीं -अनुक्‍त चिह्नकोश
--
य 
--
यक़ीन (निष्ठा, भरोसा),
यख़नी (पुलाव),
--
Note :
इस अनुक्‍त चिह्नकोश में  संग्रहीत हिंदी-शब्दों के लिए सन्दर्भ की औपचारिकता तथा सरलता के लिए आधार-रूप में
The OXFORD HINDI-ENGLISH DICTIONARY (R.S.McGregor 1993),
ISBN 0-19-563846-8
1993 Edition, Thirteenth impression 2003
को लिया गया है । इसलिए शब्दों के प्रचलित रूप और यहाँ दिए गए प्रकार में अंतर होना संभव है।
इस सूचना को इसलिए भी दिया जा रहा है कि पाठक इन शब्दों को स्वयं भी वहाँ से देख सकता है और अपनी संतुष्टि कर सकता है ।
यहाँ यह कार्य शुद्धतः हिंदी की सेवा की भावना से किया गया है इसलिए जिन शब्दों को यहाँ उद्धृत, संशोधित किया गया है, संपादित किया गया है, उन के लिए किसी प्रकार से किसी का कोई बौद्धिक अधिकार (Intellectual Property Rights) है ऐसा मैं नहीं समझता । न ही मेरा ऐसा कोई बौद्धिक अधिकार (Intellectual Property Rights) है।
यह सूचना इसलिए भी दी जा रही है कि किन्हीं कारणों या परिस्थितियों से अगर मैं इसे पूरा न कर सकूँ तो जिसकी भी रुचि हो वह इसे अपने तरीके से पूरा कर सकता है।
--  


   

August 11, 2017

म - नुक्‍ता चीं -अनुक्त चिह्नकोश

- नुक्‍ता चीं -अनुक्त चिह्नकोश
--

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मंज़र (दृश्य),
मंज़ूर (स्वीकार),
मंज़ूरी,
मक़दूर (सामर्थ्य, शक्ति, साधन),
मक़बरा (हुमाँयू का मक़बरा),
मक़बूल (स्वीकृत, राज़ी),
मक़रूज़ (ऋणी, ऋण लेनेवाला),
मक़सद (इरादा, ध्येय),
मक़सूद (जो ध्येय है),
मक़सूम (बँटा हुआ, विभाजित) [ तक़सीम -विभाजन],
मक़ाम (मुक़ाम, पड़ाव),
मक़ामी,
मख़ज़न (कोठार, भंडारगृह) [ख़ज़ाना, संस्कृत -महाजन], बन्दूक की क़ारतूस,
मख़मल (मखमल -कपड़ा),
मख़मली,
मख़मसा (दैन्य, विपत्ति),
मख़मूर (उन्मत्त), [ख़मीर उठना -किण्वन् ],
मख़रूती (झुका हुआ, मुड़ा हुआ, लहर की आकृति वाला),
मख़लूक़ (जिसका सृजन किया गया),
मख़सूस (विशिष्ट, ख़ास),
मग़ज़ (मस्तिष्क, सार, गूदा, तत्व),
मग़ज़ी (हद तक का, मर्यादात्मक, दिमाग़ी, तात्विक),
मग़रिब (पस्चिम),
मग़रबी, नग़रिबी (पश्चिमी, पाश्चात्य),
मग़रूर (हठी, दुराग्रही, दंभी, ज़िद्दी),
मग़रूरी (हठ, गर्व),
मग़्ज़, मग़ज़,
मज़कूर (सूचना, उल्लेख) [ज़िक्र, ज़ाकिर],
मज़दूर (श्रमिक),
मज़दूरी (श्रम, पारिश्रमिक),
मज़बूत (दृढ़),
मज़बूती (दृढ़ता, सामर्थ्य),
मज़मून (विवरण, विषय, संक्षेप),
मज़म्मत (दोषारोपण, आलोचना, निंदा),
मज़र्रत (हानि, क्षति -पहुँचाना),
मज़लूम (शोषित, जिस पर अत्याचार हुआ), [ज़ुल्म, ज़ालिम],
मज़हब (संप्रदाय, आचार-विचार),
मज़हबी (आचार-विचार का तौर-तरीक़ा),
मज़ा (आस्वाद, आराम, आनंद, सुख-शान्ति),
मज़े से, मज़ेदार,
मज़ाक़ (परिहास, विनोद), [मज़ाक़ करना -विनोद करना, मज़ाक़ उड़ाना -उपहास करना, खिल्ली उड़ाना],
मज़ाक़िया (विनोदपूर्ण, हास्य),
मजाज़ी (वैध, स्वीकार्य, अनुमत),
मज़ार (मृतक को जहाँ दफ़नाया गया वह स्थान या वहाँ बनाया गया भवन),
मरग़ोला (अंगूठी या अंगूठी के आकार की कोई वस्तु),
मरज़ (मर्ज़, रोग, बीमारी),
मरज़ी (स्वीकृति, अनुमति), [रज़ा, राज़ी],
मरीज़ (रुग्ण, रोगी),
मर्ग़ (मैदान, पर्वत की तलहटी, घाटी) [गुलमर्ग़],
मर्ज़, मरज़,
मर्ज़बान (राज्य का उत्तराधिकारी, राजकुमार),
मशक़्कत (मेहनत, परिश्रम, कठिन श्रम, विपत्ति),
मशग़ूल (व्यस्त, संलग्न),
मशरिक़ (पूर्व दिशा),
मशरिक़ी (पूर्व दिशा से संबंधित),
मश्क़ (अभ्यास, यत्न, प्रतिलिपि),
मसख़रा (विदूषक, मज़ाक़िया),
मसख़री (मज़ाक़, ठिठौली),
मसरफ़ (उपयोग, इस्तेमाल),
मसरूफ़ (में व्यस्त),
मसरूफ़ियत (व्यस्तता),
महज़ (केवल, सिर्फ़),
महज़र (एकत्रित होने का स्थान, जनहित-याचिका),
महफ़िल (सभा, संगीत-नृत्य की सभा),
महफ़ूज़ (सुरक्षित, साबुत),
माक़ूल (उचित, समुचित, यथेष्ट, वाँछित > वाजिब),
माक़ूलियत (औचित्य),
माज़ूर (असहाय, निर्बल, क्षम्य),
माफ़ (क्षमा करना) [संस्कृत -माप],
माफ़िक़ (योग्य, समान, बराबर), [संस्कृत -मापिक],
माफ़ी (क्षमा), [मुआफ़, मुआफ़िक़, मौफ़ीक़],
मारफ़त (द्वारा, के माध्यम से, के ज़रिए),
मारूफ़ (ज्ञात, विख्यात, प्रसिद्ध),
माशूक़ (प्रिय, स्नेही, स्नेहिल) [इश्क़, आशिक़],
माशूक़ा (प्रिया, स्नेही, स्नेहिल),
माशूक़ाना (आकर्हण, सौन्दर्यपूर्ण),
मिक़दार (मात्रा),
मिक़नातीस (चुंबक),
मिज़राब (तारवाद्य बजाने का साधन, प्लेक्ट्रम),
मिज़ाज (मिलवट, मिश्रण, प्रकृति, स्वभाव, मन की स्थिति),
मिज़ाजी (सनकी, भावनात्मकता),
मिर्ज़ा, मिरज़ा,
मीज़ान (जोड़ की क्रिया, कुल, नापना),
मुंतज़िम (व्यवस्थित, सुचारु), [ तंज़ीम, इन्तज़ाम],
मुंतज़िर (प्रतीक्षा करनेवाला), [इन्तज़ार],
मुअज़्ज़न (मुअज़्ज़िन), [अज़ान -आव्हान, आवाहन, आजान],
मुअज़्ज़िज़ (आदरणीय, प्रख्यात),
मुआफ़, माफ़
 मुआफ़िक़, माफ़िक़,
 मुआवज़ा (क्षतिपूर्ति, ऐवज़ी),
मुक़त्तर (आसवित, डिस्टिल्ड), [अवतर > इतर > इत्र > अत्तार > मुक़त्तर],
मुक़त्ता (क़रीने से कटा हुआ), [लॉन, दाढ़ी-मूँछ, काग़ज़],
मुक़दमा (अदालती पेशी, विवाद),
मुक़द्दम (प्रमुख, ऊंचा),[क़द],
मुक़द्दमा, मुक़दमा,
मुक़द्दर (भाग्य),
मुक़द्दस (पवित्र),
मुक़र्रर (तय),
मुक़ाबला (स्पर्धा),
मुक़ाबिल (टक्कर का),
मुक़ाबिला, मुक़ाबला,
मुक़ाम (ठौर, स्थान),
मुक़ामी (स्थान का, स्थायी),
मुख़तलिफ़, मुख़्तलिफ़ (भिन्न-भिन्न),
मुख़्तसर (प्रमुख, ख़ास),
मुख़्तार (मुख्य), [ख़ुद-मुख़्तार, ख़ुद-मुख़्तारी -स्वायत्तता],
मुख़बिर (गुप्तचर सूचना देनेवाला),
मुख़ातिब (सामना करना, सामने होना),
मुख़ालिफ़ (विपरीत, सम्मुख, विरोध में),
मुख़ालिफ़त (विरोध, विपक्ष),
मुख़्तलिफ़ (भिन्न-भिन्न),
मुग़ल, मुग़ली, मुग़लई, मुग़लानी, मुग़लिया,
मुज़ायक़ा (मुश्किल, परिणाम),
मुज़ाहिम (रोकनेवाला, बाधक),
मुतफ़न्नी (चालबाज़, चालाक),
मुतलक़ (अबाध, पूर्ण),
मुतअल्लिक़ (से संबंधित),
मुताबिक़ (अनुसार),
मुत्तफ़िक़ (तालमेल होना),
मुदाख़लत (दख़लंदाज़ी, हस्तक्षेप),
मुनक़्क़ा,
मुनाफ़ा (लाभ),
मुफ़लिस (निर्धन, कंगाल),
मुफ़लिसी,
मुफ़स्सल (अलग हुए, अलग-अलग),
मुफ़ीद (फ़ायदेमंद, लाभप्रद),
मुफ़्त (बिना मूल्य लिए),
मुफ़्ती,
मुमताज़ (प्रसिद्ध),
मुरग़ा, मुर्ग़ा,
मुरग़ी, मुर्ग़ी,
मुर्ग़ (मुर्ग़ा),
मुलाक़ात ( मिलाना,भेंट),
मुलाक़ाती,
मुलाज़मत (सेवा, उपस्थिति),
मुलाज़मी,
मुलाज़िम (कर्मचारी),
मुलाहज़ा (जाँच),
मुवाफ़िक़, मुआफ़िक,
मुशफ़िक़ (प्रिय, स्नेही, दयालु),
मुश्ताक़ (इच्छुक, चाहनेवाला),
मुसाफ़िर (यात्री),
मुसतौफ़ी (हिसाब का ऑडिट),
मोम-ज़ामा (कपड़ा),
मौक़ा (अवसर),
मौक़ूफ़ (निलंबित, निर्भर),
--                 
              
    
    

      
    



August 10, 2017

’आज’ की कविता / इन दिनों

’आज’ की कविता
--
इन दिनों 
सुबह सरे-राह* पर पर्दा था,
एक साया था सायात** का,
सवाल था दिन भर, कि क्या है,
शाम को पर्दा फ़ाश हो गया,
यूँ तो पर्दे पे हर रोज़ ही,
नित नये मंज़र नज़र आते हैं,
आँखें चौकन्नी अगर हों,
छिपे ख़ंज़र नज़र आते हैं,
जैसे बनते हुए महलों में,
ठीक से देखोगे अगर,
बस देखनेवालों ही को
ढहते खंडहर नज़र आते हैं,
जैसे खुशहाली तरक़्की में,
दस्तके-क़हर नज़र आते हैं,
मय के छलकते प्यालों में,
ख़ामोश ज़हर नज़र आते हैं,
जैसे उनके आने की अदा,
आते ही कहते हैं कि जाते हैं,
और जाने की फिर ये अदा,
जाते हुए कहते हैं कि आते हैं,
बस कि यूँ पर्दे उठा करते हैं,
बस कि यूँ पर्दे गिरा करते हैं,
सिलसिला रहता है तारी,
सिलसिले यूँ ही जारी रहते हैं ।
--
*sararah
**sayat
--

August 09, 2017

सृजन : कविता, संगीत, चित्र

संगीत, चित्र और कविता (गीत)
---
यह वीडिओ एपिसोड १६ से मैंने सुना । वाचक ने जैसा कि कवि ग्रेस के बारे में कहा कि हो सकता है कवि ने स्वयं भी कविता को उस प्रकार से न समझा हो, जैसा किसी और ने समझा होगा ।
कविता, चित्र और संगीत (ख़ासकर भारतीय शास्त्रीय संगीत) के बारे में मेरी समझ यह है कि आप इन्हें किसी पैमाने पर इनके मूल तत्वों को नाप नहीं सकते । किंतु फिर भी आप संवेदना के स्तर पर उस मनःस्थिति से अवश्य जुड़ सकते हैं जिसमें रचना का सृजन किया / हुआ होता है । और ज़रूरी नहीं कि रचना किन्हीं भावनाओं को जागृत या उद्दीप्त करे ही (हालाँकि वह भी संभव है, और प्रायः होता भी है), बहरहाल यह अवश्य संभव है कि रचना आपको एक ऐसे लोक में ले जाए जहाँ आपका मन अत्यंत शान्त, स्तब्ध और स्थिर हो जाता है, संक्षेप में कहें कि स्वाभाविक रूप से ’एकाग्र’ हो जाता है, जहाँ आपके मन की गतिविधि (चित्तवृत्ति) अनायास निरुद्ध हो जाती है ।
और इसके लिए कविता, संगीत या चित्र की एक विधा भी पर्याप्त समर्थ हो सकती है । मेरा सोचना तो यह है कि एक से अधिक विधाओं में संयोजित रचना का अपना सामर्थ्य श्रोता / दर्शक / की रुचि और परिपक्वता के अनुसार कम या अधिक भी हो जाता है ।
मराठी कवि ’ग्रेस’ की रचना के आस्वाद में मैंने यही पाया ।
मैंने कुछ समय पूर्व RSTV का you-tube का एक लिंक शेयर किया था,  जिसमें भारतीय फ़िल्मोद्योग के पर्दे के पीछे संगीत के रचनाकारों की ’कला’ के बारे में बतलाया गया था । उसमें एक संगीतकार भारतीय संगीत को ’लीनियर’ कह रहे थे, और उस की तुलना में पाश्चात्य विधा को (लेटरल) / स्पेटिअल् ! उनका आशय यह था कि भारतीय विधा में एक ही वाद्य प्रमुख होता है जिसके साथ एक राग के स्वरों की संगति का (जैसे तानपूरा या सारंगी) और एक तालवाद्य होता है । जबकि पाश्चात्य (या आधुनिक) में अनेक वाद्यों (उदाहरण के लिए एक से अधिक वायोलिन एक साथ) से स्वरों  के संयोजन से नया प्रभाव पैदा किया जाता है । यह हुआ (लेटरल) / ’स्पेटिअल्’ । एक अन्य महिला संगीतकार ने भी इस बारे में लगभग यही कहा था ।
मुझे आश्चर्य हुआ कि क्या संगीत की उस (लेटरल) / ’स्पेटिअल्’ विधा से चित्त की वह स्थिति होना संभव है जो ’ग्रेस’ की रचना पढ़ते हुए या सुनते हुए अनायास हो जाती है? संभव है कि एट्थ / नाइन्थ सिम्फ़नी को सुनने का अनुभव किसी गहन अनुभूति में ले जाता हो, किंतु मूल प्रश्न है राग की स्वाभाविक गति से उत्पन्न अनुभव । निश्चित ही भारतीय संगीत में स्वर (और वर्ण) देवता तत्व है, -अर्थात् ’जागृत-प्राण तत्व’ और उन्हें यन्त्रों से नहीं जगाया जा सकता ।
-

ब - नुक्‍ता चीं -अनुक्त चिह्नकोश

- नुक्‍ता चीं -अनुक्त चिह्नकोश
--

--
बख़ुद (स्वगत, स्वतः),
बख़ुद आना ( होश में आना),
बख़ुशी (ख़ुशी से),
बख़ूबी (अच्छी तरह से),
बख़ैर (सुरक्षित रूप से),
बग़ैर (के बिना),
बज़रिया (के माध्यम से),
बज़ोर (बलपूर्वक),
बतारीख़ (इस तिथि को),
बदिक़्क़त (कठिनाई से),
बराए-ख़ुदा, बराय-ख़ुदा (भगवान के लिए!),
बवक़्त (के समय में),
बक़ा (निरंतरता, अमरता, सनातन, शाश्वत), [बाक़ी, बक़ाय],
बक़्क़ाल (अनाज-व्यापारी),
बख़रा (पट्टी, पट्टीदार; कृषि-भूमि में),
बख़री (पट्टी),
बख़रैत,
बख़िया (सिलाई, टाँका लगाना), [उधेड़ना],
बख़ियाना (कपड़ा सिलाई या रफ़ू करना),
ब-ख़ैरियत,
बख़्त (हिस्सा, भाग्य, सौभाग्य),
बख़्तर (कवच) [बख़्तरबंद],
बख़्श (दान देना),
बख़्शना,
बख़्शिश, बख़्शीश,
बख़्शी (वेतन देनेवाला),
बग़ल (पार्श्व, पास, बाज़ू),
बग़लगीर-होना (गले मिलना),
बग़ावत (विद्रोह),
बग़िया / बगिया,
बग़ीचा (बाग़ीचा, उध्यान),
बग़ैर (के बिना),
बज़रिआ (ब-ज़रिया),
बज़ोर (ब-ज़ोर),
बज़्म (सभा, समूह, एक साथ होना),
बनफ़शा (violet),
बरक़रार (जारी, सतत),
बरख़ास्त (नौकरी से निकाल देना),
बरख़िलाफ़ (विपरीत, के विरुद्ध, से स्पर्धा में),
बरज़ोर (बलपूर्वक), [बरजोरी],
बरतरफ़ (हटाना, निकालना),
बरख़ुरदार (समृद्ध, भाग्यवान),
बरक़ (आकाशीय बिजली), बर्क़,
बर्फ़, बरफ़-ख़ाना (बर्फ़ रखने का डिब्बा),
बर्फ़बारी (हिमपात),
बर्फ़ानी (बर्फ़ीला),
बर्फ़ी (मावे की मिठाई),
बर्राक़ (तेजस्वी, शानदार, शुभ्र),
बलाग़त (ब-लाग़त, स्पष्टता),
बाक़ी (शेष, सतत, घटाने की क्रिया),
बाक़ी-साक़ी (बचा हुआ, अवशिष्ट),
बाग़,
सब्ज़बाग़ (दिखाना),
बाग़कारी (माली का काम),
बाग़दार, बाग़बान, बाग़-बाग़ होना,
बाग़ाती (बाग़ से संबद्ध),
बाग़ी (विद्रोही) [बग़ावत, बाग़ में खर-पतवार भी होते हैं],
बाग़ीचा,
बाज़ (श्येन),
बाज़ आना (रुकना, बंद करना), [संस्कृत बाध् बाधा, बाधित करना],
बाज़ (कतिपय) [बाज़ लोग],
बाज़ (जाँबाज़, हवाबाज़, खलाबाज़),
बाज़ार,
बाज़ारी,
बाज़ारू,
बाज़ी (खेल, शर्त), [संस्कृत वाजि, वाजिन् (घोड़ा)],
बाज़ू (भुजा, बाहु), [बाज़ूबंद, भुजबंध, बाहुबंध],
बाफ़ता (बुना हुआ कपड़ा),
बुक़चा (गठरी, गुच्छा), (अंग्रेज़ी ’bouquet', bucket, box),
बुग़्ज़ (द्वेष, मालिन्य),
बुज़दिल (कायर),
बुज़ुर्ग (बड़े-बूढ़े), [बुज़ुर्गवार, अंग्रेज़ी bourgeois , जर्मन् berg  / बुर्ज्  Heidelberg अरबी / फारसी
बुर्ज़ संस्कृत ’√वृ’ ’√वृध्’ ’√वर्त्’], [ख़ुर्द-बुज़ुर्ग, क्षुद्र ख़ुदरा],
बुर्क़ा, बुरक़ा,
बुर्राक़, बर्राक़,
बूज़ा (चाँवल, जौ या मक्का से बनी शराब),
बेअक़्ल,
बेइंसाफ़,
बेइख़्तियार (अनधिकृत),
बेइज़्ज़त,
बेइत्तफ़ाक़ (मतभेद),
बेक़द्र (महत्वहीन),
बेक़रार, बेक़सूर, बेक़ुसूर, बेक़ाबू, बेक़ायदा, बेक़ीमत,
बेख़बर, बेख़ुद, बेख़ुदी,
बेग़म, बेग़रज़, बेग़ैरत (निर्लज्ज),
बेज़बान, बेज़मीन, बेज़ार (अप्रसन्न),
बेतकल्लुफ़,
बेदख़ल,
बेनज़ीर (अनुपम, बेमिसाल), बेनियाज़ (आत्मनिर्भर),
बेपरहेज़,
बेफ़ायदा, बेफ़िकर,
बेबाक़,
बेमज़ा, बेमौक़ा,
बेरुख़ी, बेरोज़गार, बेरौनक़,
बेलिहाज़,
बेवक़ूफ़, बेवक़्त, बेवफ़ा,
बेसाख़्ता (निस्संकोच, त्वरित),
--

कविताएँ /

ईश्वर, नाम और प्रेम
--
कुछ उकेरे थे रेत पर,
कुछ उकेरे थे वृक्षों पर,
रेत को उड़ा ले गई पवन,
वृक्ष उखड़ या कट गए,
प्रेम अब घूमता है आवारा,
अजनबी, बेघर, लावारिस !
--

ईश्वर
--
तेरी तलाश थी जब तक, तू न मिला,
और जब तू मिल गया तो मैं न रहा!
--
नाम : प्रेम,
प्रेम
--
’प्रेम’ जब सीरियस था तो उसे आई सी यू में भर्ती कराना पड़ा ।
जब उसे ऑक्सीजन लगाई जा रही थी तो उसने प्रतिरोध किया ।
फिर भी बलपूर्वक लगा दी गई ।
लेकिन जल्दी ही ऑक्सीजन को हटाना पड़ा,
क्योंकि अब उसका कोई मतलब नहीं था ।
--

August 08, 2017

प, फ / फ़ - नुक्‍ता चीं -अनुक्त चिह्नकोश

नुक्‍ता चीं -अनुक्त चिह्नकोश
--
प 
--
परहेज़ (संयम), [संस्कृत -प्रतिषेध, परिषेध]
परहेज़ी,
पाकीज़गी (पवित्रता, शुद्धता),
पाकीज़ा (पवित्र, शुद्ध),
पैग़ंबर (संदेशवाहक, अब्राहम की परंपरा में मसीहा मूसा, ईसा, मोहम्मद),
पैग़ंबरी (पैग़ंबर से संबद्ध),
पैग़ाम (संदेश),
--
फ / फ़
--
फ़क़ीर (भिखारी, मुस्लिम फ़क़ीर, अत्यन्त निर्धन),
फ़क़ीराना, फ़क़ीरी,
फ़ख़्र (झूठा गर्व, अकड़),
फ़जर (भोर, बहुत सुबह), [फ़जर की नमाज़],
फ़ज़ल (कृपा, मेहर),
फ़ज़ीलत ( निपुणता, दक्षता, प्रवीणता, विद्वत्ता, कौशल) [आलिम-फ़ाज़िल],
फ़ज़ीहत (अपमान, बदनामी),
फ़ज़ीहती (अपमानित),
फ़ज़ूल (व्यर्थ, ग़ैर-ज़रूरी),
फ़तवा (मुस्लिम क़ायदे के अनुसार दिया गया आदेश, निर्णय),
फ़तह (जीत),
फ़तीला (पलीता),
फ़तुही (फ़तूही),
फ़तूर (दोष, ख़ामी, सनक),
फ़तूरी (शरारती, उपद्रवी, ख़ुराफ़ाती),
फ़न (हुनर, कौशल),
फ़ना (विलुप्त, मृत्यु होना),
फ़रक़ (अंतर, भेद, भिन्नता),
फ़रज़ंद (बेटा, पुत्र, संतान),
फ़र्ज़ी (वज़ीर, अमात्य),
फ़रज़ी (ऐवज़ी, नक़ली),
फ़र-फ़र (फ़ौरन, धाराप्रवाह),
फ़र्मा (साँचा, प्रमाण),
फ़रमाइश, फ़ररमाइशी,
फ़रमान (आदेश),
फ़र्माना (आदेश देना),
फ़रलांग फ़र्लांग (दूरी का नाप),
फ़रवरी (महीना),
फ़रश, फ़र्श (तल, भूमि),
फ़रशी, फ़र्शी,
फ़राख़ (उदार),
फ़राग़त (राहत, से फ़ुरसत होना), [फ़ारिग़],
फ़रामोश (कृतघ्न) [एहसान-फ़रामोश],
फ़रामोशी (कृतघ्नता),
फ़रार (भगौड़ा),
फ़रारी (भागा हुआ),
फ़रासीस (फ़्रेन्च), [Pharaoh pharisaic फ़ारसी, Paris पैरिस],
फ़रासीसी (फ़्रांसीसी),
फ़राहम (एकत्र, संग्रहीत, उपलब्ध किया गया),
फ़राहमी,
फ़रियाद (शिकायत, मदद माँगना),    
फ़रियादी,
फ़रेब (धोखाधड़ी, छल),
फ़रेबी,
फ़रो (फ़रो-गुज़ाश्त में, उपेक्षित, वंचित),
-फ़रोश (विक्रेता), किताबफ़रोश, सरफ़रोश,
फ़र्ज़ (कर्तव्य, लागू करना, कहना या मनना), [फ़र्ज़ (टैक्स अदा करना), फ़र्ज़ करें कि ...],
फ़र्राश (कामगार, नौकर),
फ़र्राशी,
फ़र्श, फ़र्शी,
फ़लक (आकाश, स्वर्ग),
फ़लसफ़ा (फ़िलॉसफ़ी, वैचारिक-सिद्धान्त),
फ़लसफ़ी (सैद्धान्तिक),
फ़लाँ (अमुक),
फ़लाना (फ़लाँ),
फ़लीता (बत्ती, बाती),
फ़सल (ऋतु, मौसम, पैदावार),
फ़सली (मौसमी),
फ़साद (भ्रष्ट होना, झगड़ा),
फ़सादी,
फ़साना (अफ़साना, कथा, कहानी),
फ़साहत (स्पष्ट और सही भाषा),
फ़सील दीवाल, [फ़ासला],
फ़स्द (शिरा से ख़ून बहना, बहाना),
फ़स्साद (शिराच्छादन, सर्जरी करना, करनेवाला),
फ़हम (समझ), [आम-फ़हम, ग़लतफ़हमी, फ़हमीद, फ़हमीदा],
फ़ाक़ा (भूखे रहना), फ़ाक़ाकशी,
फ़ाख़्ता (क़बूतर),
फ़ाज़िल (विद्वान, अतिरिक्त), फ़ाज़िल-बाक़ी (खाते में जमा-शेष),
फ़ातिहा (प्रारंभिक, क़ुरान का पहला अध्याय),
फ़ातिहा पढ़ना,
फ़ानी (नश्वर),
फ़ानूस (दीप-घर, झाड़-फ़ानूस),
फ़ायदा (लाभ),
फ़ायर (करना बन्दूक से),
फ़ार्मुला (सूत्र),
फ़ारसी,
फ़ारिग़ (निवृत्त),
फ़ालतू (बेकार, व्यर्थ),
फ़ालिज (लक़वा),
फ़ालूदा (सत्तू),
फ़ाश (रहस्य खुलना), [पर्दाफ़ाश],
फ़ासला (दूरी),
फ़ासिद (भ्रष्ट, कुटिल),
फ़िकर (चिन्ता, दुःख, शोक),
फ़िक़रा (कसना) फ़िक़रेबाज़,
फ़िज़ूल, फ़ज़ूल,
फ़ितना (दुर्भाग्य, दुर्दैव),
फ़ितना-अंगेज़ (उपद्रवी, ख़ुराफ़ाती),
फ़ितरत (प्रकृति, स्वभाव),
फ़ितरती (प्राकृतिक, स्वाभाविक),
फ़ितूर, फ़तूर,
फ़िदा (त्याग, बलिदान, क़ुर्बान),
फ़िरंग (फ़्राँस, यूरोप),
फ़िरंगी),
फ़िरक़ा, फ़िर्क़ा (विभाजित समुदाय),
फ़िरक़ापरस्त (संप्रदायवादी),
फ़िरक़ी (चक्कर, घुमाव),
फ़िरदौस (बाग, उद्यान, स्वर्ग),
फ़िरनी (व्यञ्जन-विशेष),
फ़िराक़ (अलगाव, दूरी, विरह),
फ़िलफ़ौर (फ़िल-हाल, फ़ौरन),
फ़िलहाल (वर्तमान में),
फ़ी (प्रति) [फ़ीसदी (प्रतिशत)],
फ़ीता (तस्मा, डोरी) [लालफ़ीताशाही],
फ़ीरोज़ा (फ़ीरोज़ा, turquoise),
फ़ीरोज़ी (आसमानी रंग का),
फ़ील (शतरंज में rook मोहरा),
फ़ीलपाँव ('हाथीपाँव' Elephantiasis)
फ़ुरसत,
फ़ुर्सत,
फ़ेल (क़ायदा),
फ़ेहरिस्त (सूची),
फ़ैज़ (उदारता, दया, कृपा),
फ़ैयाज़ (उदार),
फ़ैयाज़ी (उदारता),
फ़ैलसूफ़ (दार्शनिक, शातिर बदमाश),
फ़ैसला (निर्णय),
फ़ोता (अंडकोश, ज़मीन का टैक्स),
फ़ौज (सेना),
फ़ौजी,
फ़ौरन,
फ़ौलाद,
फ़ौलादी,
फ़ौवारा,
फ़्रांसीसी (भाषा, लोग),
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’आधार’ : प्रासंगिकता और औचित्य

’आधार’ : प्रासंगिकता और औचित्य
जिसके पास ’आधार’ नहीं, क्या वह ’अजन्मा’ है?
क्या उसका जन्म नहीं हुआ?
एक अक्टूबर से '17 से तो उसकी मृत्यु भी नहीं होगी!
क्योंकि ’आधार’ न होने पर उसका मृत्यु प्रमाण-पत्र भी जारी न हो सकेगा !
अजन्मा, अमर, आधार से वंचित निराधार .....!
’आधार’ के दो पहलू
यह ज़रूरी है कि सरकारी योजनाओं का लाभ वंचित और पात्र नागरिकों तक अवश्य पहुँचे, और इसलिए यह आवश्यक है कि उनकी ’पहचान’ सुनिश्चित हो । इसके लिए बायोमीट्रिक सूचना का संग्रह सर्वाधिक सहायक साधन हो सकता है । लेकिन इसके भी दो पहलू, अपने हानि-लाभ हैं । और जो व्यक्ति लाभ लेना चाहता है, उसे संभावित ’हानि’ की रिस्क तो लेनी ही होगी क्योंकि कोई ’सूचना’ पूर्णतः सुरक्षित होने का दावा नहीं किया जा सकता । किसी भी सूचना-प्रणाली में ही उसमें संचित की जानेवाली जानकारी को रिट्राइव करने के सूत्र प्रकट और अप्रकट रूप से छिपे होते ही हैं । यह संभव है कि वन-टाइम-पासवर्ड जैसे साधनों से उसे यथासंभव सुरक्षित रखा जा सके किंतु दूसरे अन्य रास्ते भी अवश्य होते ही हैं ।
नागरिक-अधिकार और नागरिक-दायित्व परस्पर निहित होते ही हैं ।
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जो नागरिक ’आधार’ से वंचित है या किन्हीं कारणों से इसका उपयोग नहीं करना चाहता, क्या उसे उसके दूसरे नागरिक-अधिकारों से वंचित किया जा सकता है? और, क्या उसे उसके दूसरे नागरिक-अधिकारों से वंचित किया जाना न्यायसंगत है?
उदाहरण के लिए बैंक में खाता रखना या डेबिट-क्रेडिट कार्ड, वाहन-चालक (ड्राइविंग) लायसेंस आदि का उपयोग करने से उसे वंचित करना क्या उसके मौलिक अधिकार का हनन नहीं होगा?
क्या एक ’संन्यासी’ को हर समय और हर स्थान पर अपनी ’पहचान’ देना उसका दायित्व है? क्या यह ’व्यवस्था’ का ही दायित्व नहीं है कि वह किसी भी ’संदिग्ध’ व्यक्ति की स्वतंत्र जानकारी सुनिश्चित कर अपने लिए सुरक्षित कर ले? ज़रूरी नहीं कि इसके लिए उससे प्रत्यक्ष संपर्क किया ही जाए । वह जिन लोगों से मिलता-जुलता है, जहाँ आता-जाता है, वहाँ के लोगों के माध्यम से भी यह सूचना एकत्र की जा सकती है । क्या रेल में यात्रा करने के लिए या होटल में कमरा बुक करने के लिए मेरा फ़ोटोग्राफ़ मेरा पर्याप्त प्रमाण नहीं है? क्या मेरे फ़ोटोग्राफ़ तथा मेरी इस आवश्यक जानकारी, जैसे नाम आदि की सत्यता की जाँच करना ’व्यवस्था’ का ही दायित्व नहीं है? हाँ इसके लिए उससे सहयोग करना मेरा भी दायित्व अवश्य है । क्या यही ’आधार’ की प्रासंगिकता और औचित्य की मर्यादा नहीं है?
--          
प्रसंगवश :
बढ़ती जनसंख्या और बढ़ते अपराधों को ध्यान में रखते हुए सरकार को सुरक्षा प्रणाली बनानी चाहिए । मगर आधार खुद निराधार है तो इसे कार्यान्वित कर कोई खास उपलब्धि हासिल नहीं होगी । कई नियमों का पालन नागरिकों को असुविधा में डाल सकता है ।
सरकार को ऐसे नियम बनाने चाहिए जिससे कम से कम असुविधा हो ।
1.सभी कार्यों के लिए एक पहचान-पत्र,
2.प्रति नागरिक एक ही फ़ोन नबर,
3.प्रति नागरिक एक ही बैंक अकाउंट
जो भी व्यक्ति किसी आर्थिक गतिविधि में जैसे शेयर-क़ारोबार, फ़ायनेन्सिंग, उसके पास अवश्य ही ’आधार’ होना चाहिए और उसे उसके ’आधार’ में दर्ज़ / रजिस्टर किया जाना क़ानूनन अनिवार्य हो ।  

August 07, 2017

न - नुक्‍ता चीं -अनुक्त चिह्नकोश

नुक्‍ता चीं -अनुक्त चिह्नकोश 
न 
--
नक़द (रोकड़, नगद), [रुक्म (स्वर्ण), रुक्मिणी, रक़म],
नक़दी,
नक़ल (प्रतिलिपि), [नक़लनवीस, नक़ल-बही, नक़लबाज़, नक़लची, नक़ली],
नक़ाब (मुख को ढाँकनेवाला छिपानेवाला आवरण), [नक़ाबपोश],
नक़ीब (सहायक),
नक़ीर (तुच्छ, महत्वहीन),
नक़्कारख़ाना (जहाँ ढोल-नगाड़े बजाए जाते हैं, जैसे महल का द्वार),
नक़्कारची (नगाड़ा बजानेवाला),
नक़्क़ारा (नगाड़े की आवाज़),
नक़्क़ाल (नक़लची),
नक़्क़ाली,
नक़्क़ाश (नक़्श, आकृति बनानेवाला),
नक़्क़ाशी (उत्कीर्ण करना, उकेरना),
नक़्श (आकृति, रूप),
नक्शा (मानचित्र),
नख़रा (नक़ली प्यार जताना), नख़रेबाज़, नाज़-ओ-नख़रा,
नख़ल (खजूर), नख़लिस्तान (मरुद्यान),
नख़ास (पशुओं का बाज़ार),
नग़मा (मधुर गीत या संगीत),
नज़दीक (समीप, पास),
नज़दीकी (पास का),
नज़म (काव्य, पद्य),
नज़र (दृष्टि),
नज़रबन्द (नज़रक़ैद),
नज़र -करना (उपहार या भेंट देना),
नज़राना (उपहार),
नज़रिया (दृष्टिकोण),
नज़ला (ज़ुकाम),
नज़ाकत (मृदुता, कोमलता),
नज़ारा (दृश्य),
नज़ीर (उदाहरण, मिसाल),
नफ़र (नौकर, कर्मचारी, कारिंदा),
नफ़रत (घृणा),
नफ़री (दिन भर का काम या मज़दूरी),
नफ़स (साँस, प्राण),
नफ़सानियत (काम-वासना),
नफ़सानी,
नफ़ा (लाभ, फ़ायदा), [नफ़ा-नुक़्सान],
नफ़ीरी (बाजा),
नफ़ासत (सुचारुता, सौष्ठव), [नफ़ीस],
नफ़्स (नफ़स),
नबज़ (नाड़ी),
नमाज़ (इस्लाम), [संस्कृत नमस्य, नमस्यित],
नमाज़ी (नमाज़ से संबंधित),
नवाज़ (दयालुता)
-नवाज़ ( -करनेवाला), [बंदानवाज़, ग़रीबनवाज़, ज़र्रानवाज़, हमनवाज़]
नवाज़िश (दया, सौजन्य),
नवाज़ी (दयालुता),
नसतालीक़ (फ़ारसी-अरबी लिखने की विशिष्ट शैली),
नाक़िस (दोषयुक्त, बिगड़ा हुआ), [नाकिस लागू (कर्फ़्यू, पाबन्दी)],
नाख़ुन, नाखून,
नाख़ुना (मिज़राब, वॉयलिन या गिटार  बजाने की),
नाख़ून (नख),
नाज़ (नक़ली प्यार की भाव-भंगिमा, अनुरोध),
नाज़ों-पला,
नाज़िम (प्रशासक),
नाज़िर (नज़र रखनेवाला, निरीक्षक),
नाज़ुक (कोमल, मृदु),
नाफ़ (मध्य, नाभि),
नाफ़ा (कस्तूरी),
निज़ा (मतभेद),
निज़ाम (व्यवस्था, संस्था),[संस्कृत नियामक],
निज़ामत,
निज़ार (पतला, दुर्बल),
 निस्फ़ (आधा),
निस्फ़ानिस्फ़ (आधा-आधा),
निस्फ़ी (आधा भाग),
नुक़ता (बिन्दु) [नुकता, नुकता-चीन, नुकताचीनी],
नुक़रा (चांदी, पिघली हुई चांदी, श्वेत या शुभ्र अश्व),
नुक़्सान (हानि, क्षति),
नुक़सानी,
नुक़्स (दोष, कमी),
नुसख़ा (उपाय, उपचार),
नेफ़ा (पेटी, कमरबन्द, नाड़ा),
--


August 06, 2017

' द' - नुक्‍ता चीं -अनुक्त चिह्नकोश

नुक्‍ता चीं -अनुक्त चिह्नकोश
--
द 
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दक़-लक़ (निर्जन, एकाकी, सुनसान, मैदान, रेगिस्तान),
[लक़दक़ - उत्साहित,  ख़ुश), [लक़लक़ -एक पक्षी ’लगलग’],
दक़ियानूस (रूढ़िवादी),
दक़ीक़ा (क्षुद्र, तुच्छ, महत्वहीन),
दख़मा (पारसी समुदाय में शव की अन्त्येष्टि के लिए बना ऊँचा स्थान),
दख़ल (प्रवेश),
दख़ल-अंदाज़ी (हस्तक्षेप),
दख़ील (प्रविष्ट, स्वीकृत),
दग़दग़ा (उद्विग्नता, दहशत, घबराहट),
दग़ना (ग़रम लोहे से दाग़ा जाना),
दग़ल (धोखा), [दग़ा],
दग़ली (धोखेबाज़),
दग़ा (धोखा, छल),
दग़ीला (चिह्नित), दाग़दार,
दग़ोलिया (नक़ली, ठग, झूठा),
दफ़्तर, दफ़तर (कार्यालय),
दफ़न, दफ़्न, दफ़नाना,
दफ़ा (बार, बार-बार, वैधानिक नियम की धारा,)
दफ़ा (पलायन कर जाना, भगा देना),
दफ़ीना (भूमि में दबा ख़ज़ाना),
दग्तर दफ़तर (कार्यालय, कार्यस्थल),
दफ़्तरी (दफ़्तर से संबंधित कार्य या कार्मचारी),
दफ़्ती (मोटा गत्ता),
दबीज़ (मोटा मज़बूत कपड़ा या चीज़),
दरख़ास्त, दरख्वास्त (निवेदन, प्रार्थना),
दरगुज़र (के पास से होकर गुज़रना),
दरज़ी (वस्त्र सिलनेवाला), [जो कपड़े का नाप दर्ज़ करता है],
दरयाफ़्त, दरियाफ़्त (पता लगाना, जानकारी लेना),
दरवाज़ा (द्वार),
दराज़ (लंबा, फैला होना), [फ़र्नीचर (मेज़ या अलमारी में) बना आला], ड्रॉअर,
दराज़-दस्त (हाथ भर की लंबाई का),
दराज़ी (विस्तार),
दरेग़ (इनकार, न देना, रोक लेना),
दरेज़ (रंग या आकृति से छपाई किया कपड़ा),
दरोग़ (झूठ, मिथ्यावचन, कपट),
दरोग़गोई (झूठ बोलना),
दरोग़ हलफ़ी (झूठा शपथ-पत्र), [दारोग़ा],
दहलीज़ (देहरी, दरवाज़े की चौख़ट),
दाख़िल (प्रविष्ट, दर्ज़),
दाख़िला (प्रवेश),
दाख़िली (आंतरिक, भीतरी),
दाग़ना (चिन्हित करना),
दाग़ी (चिन्हित, निन्दित),
दारोग़ा (पुलिस प्रमुख या निरीक्षक),
दारोग़ाई,
दिक़ (परेशान, त्रस्त), [दिक़्क़त],
दिक़्क़त (मुसीबत),
दिमाग़ (मस्तिष्क, मिज़ाज),
दिमाग़ी,
दोज़ख़ (नरक), दोज़ख़ी,
--

रंग कायनात का,

आज की कविता
--
रौशनी,एक ही तो रंग है, कायनात का,
रंग ही एक ही तो जिस्म है हयात का,
रौशनी बिखरती है फूट-फूट ज़र्रों से,
किरणें जगाती हैं एक जादू रंगों का,
किरच-किरच टूट जाती है यूँ हयात,
ये जादू भी आख़िर को टूट जाता है,
कहीं कुछ भी नहीं, कहीं कोई भी नहीं,
न रौशनी न अंधेरा, न कायनातो-हयात,
अपनी पुरसुकून ज़ात में लौट जाते हैं हम ।
--
दर्द
--
कहाँ होता है ख़त्म,
कहाँ से होता है शुरू?
भटकती रहती है रूह!
यह जिस्म भी तिलिस्म है,
ज़िन्दगी जीना और मर जाना,
ग़मे हयात की ही रस्म है !
जिस्म और रूह भी,
दर्द की ही क़िस्म है !
--

August 05, 2017

'त' - नुक्‍ता चीं - अनुक्‍त-चिह्नकोश,

--

--
तंज़ (व्यंग्य, वक्रोक्ति, ताना मारना),
[अंग्रेज़ी टैंज़ी, संस्कृत -दंश],
तअल्लुक़ (संबंध) ताल्लुक़, ताल्लुक़ात,
तआरुफ़ (परिचय) तारीफ़, तरफ़,
तक़दीर (भाग्य, नियति) (क़द्र, क़दीर, क़ादिर, मुक़द्दर],
तक़दीरी (भाग्य से जुड़ा),
तक़रीबन (लगभग), क़रीब,
तक़रीर (भाषण, वक्तव्य), तक़रीरी,
तक़लीद (नक़ली, कृत्रिम, बनावटी,
तकलीफ़ (कष्ट, कठिनाई),
तकल्लुफ़ (कष्ट होना, शिष्टतावश संकोच),
तक़सीम (विभाजन, गणित में भाग की क्रिया),
तक़सीमी (विभाजन से संबंधित),
तक़सीर (दोष, भूल), क़सूर, कसर),
तक़ाज़ा (आग्रह, बलपूर्वक की गई माँग),
तक़ावी (ऋण, अग्रिम),
तख़मीनन (अनुमानतः),
तख़मीना (अनुमान),
तख़ल्लुस (प्रचलित प्रसिद्ध नाम) [जैसे उपेन्द्रनाथ ’अश्क’]
तख़ैयुल (कल्पना), [ख़याल, ख़याली],
तख़्त (गद्दी), [तख़्तताऊस मयूर से शोभित सिंहासन, भारत का],
तख़्ता, तख़्ती,
तग़मा (तमग़ा) [संस्कृत ताम्रकः ताम्रपत्र],
तग़ाफ़ुल (उपेक्षा) ग़ाफ़िल, ग़फ़लत,
[हमने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन,
ख़ाक हो जायेंगे हम तुमको ख़बर होने तक -ग़ालिब्],
तग़ार (तसला), तग़ारी,
तग़ीर (गिरना, पतन, ह्रास), तग़ीरी,
तग़ैय्युर (गिरावट, पतन),
तज़किरा (स्मृति, संस्मरण), ज़िक्र, मज़कूर,
तजवीज़ (ऊहापोह, रास्ता खोजना, उपाय),
तनख़ाह, तनख़्वाह (वेतन),
तनाज़ (विवाद, मतभेद, झगड़ा),
तपेदिक़ (क्षय रोग, यक्ष्मा),
तफ़्क्कुर (चिंतन-मनन) [फ़िकर, फ़क़ीर],
तफ़तीश / तफ़्तीश [जाँच, अनुसंधान, परीक्षा),
तफ़रीक़ (अलग होना, विभाजन), [फ़रक़, फ़िराक़],
तफ़रीह (मौज, भ्रमण, सैर, मनोरंजन),
तफ़र्क़ा (मतभेद, भिन्नता),
तफ़सीर (व्याख्या, विवेचना ख़ासकर क़ुरान की),
तफ़ावत (दूरी, अंतर, भिन्नता),
तबक़ा (तल, मंज़िल, सतह, श्रेणी, कोटि),
तबाक़ (चौड़ी तश्तरी, थाली),
तमीज़ (शालीनता, सभ्यता),
तरक़्की (उन्नति, विकास),
तरफ़ (की दिशा में), [बरतरफ़ करना - नौकरी से हटाना],
तरफ़ैन (विवाद के दोनो पक्ष),
तरबूज़ / तरबूज़ा,
तराज़ू (तौलने की),
तरीक़ा (विधि, क्रम, उपाय),
तर्ज़ (गीत की लय, धुन),
तलख़ (तीखा, तीक्ष्ण, उग्र), [तलख़मिज़ाज उग्रप्रकृति],
तलाक़ (पति-पत्नी के बीच),
तलफ़ी (सुधार करना, क्षतिपूर्ति करना),तवक़्का (भरोसा, विश्वास),
तवाज़ा (आतिथ्य-सत्कार),
तवायफ़ (नर्तकी, वैश्या),
तवारीख़ (बीता हुआ काल, इतिहास), [तारीख़],
तावारीख़ी,
तशख़ीस (मूल्य-निर्धारण),
तशफ़्फ़ी (दर्द, ग़ुस्सा शांत होना),
तशरीफ़ (स्वयं, रखना, फ़रमाना, लाना, ले जाना),
तसव्वुफ़ (सूफ़ी आचार-विचार),
तस्फ़िया (विवाद सुलझाना, सुलझना),
तहक़ीक़ (जाँच)
तहक़ीक़ात (जाँच, विश्लेषण, विवेचना),
तहज़ीब (तौर-तरीक़ा),
ताक़ (अलमारी, दीवार में बना आला), [ताक़ पर रख़ना],
ताक़त (बल, क्षमता, सामर्थ्य),
ताज़गी (ताज़ापन), ताज़ा (बासी का विपरीत),
ताज़िया, ताज़ियाना,
ताज़ीरात (दण्ड-संहिता, अपराध-संहिता),
तारीख़ (तिथि), [तारीख़वार - तिथियों के क्रम से],
ताल्लुक़ (संबंध, संबंधित होना),
ताल्लुक़ा (राजस्व-क्षेत्र),
ताल्लुक़ात (ताल्लुक़ बहुवचन),
तावीज़ (तिलस्म, बीज-मंत्रित),
तिफ़्ल (बच्चा),
तिफ़्ली (बचपन),
तीरंदाज़ (निशानेबाज़, निशानची),
तीरंदाज़ी (निशानेबाज़ी),
तुग़ियानी (अति, उत्साह, अधीरता),
तुफ़ंग (बन्दूक, तोप जैसा साधन),
तुफ़ैल (साथी, मित्र, साधन),
तूफ़ान (आँधी-तूफ़ान),
तूफ़ानी,
तेग (भाला, तलवार),
तेग़ा (खुखरी),
तेज़ाब, तेज़ाबी,
तौफ़ीक़ (सहायक, मददग़ार),
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August 04, 2017

'च' से 'ज' / 'ज़' तक - नुक्‍ता चीं - अनुक्‍त-चिह्नकोश

'च' से 'ज' / 'ज़' तक -नुक्ता
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चक़मक़ (पत्थर),
चख़, चख़-चख़ (वाक्युद्ध),
चटख़ारा (स्वाद लेकर),
चपड़क़नाती (चिकनी-चुपड़ी बातें),
चरख़ा (सूत कतने का, चक्र, पहिया),
चरख़ी (कुम्हार का चाक, कोल्हू, धागा या डोरी लपेटने का पहिया),
चाक़ (काटना, चाक़-जिगर, चाक़-दामन),
चाक़-चौबन्द (चुस्त-दुरुस्त),
चारख़ाना (चौकड़ीदार, वर्गाकृति),
चिराग़ चराग़ (दीपक),
चिराग़-गुल (होना), (बुझना, अंधेरा होना),
चिराग़-दान (दीप-स्तंभ),
चिलग़ोज़ा (चीड़वृक्ष का फल),
चीख़ (डर या दर्द से मुँह से मिकलनेवाली ऊँची आवाज़),
चीख़ना,
चीज़ (वस्तु) [संस्कृत चि > चयित > चुनी हुई, अंग्रेज़ी choice, choose],
चुग़द (उल्लू, मूर्ख),
चुग़ल (ख़ोर),
चुग़ली,
चूज़ा (मुर्ग़ी का बच्चा),
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ज / ज़
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ज़ंग (लोहे में लगना),
जंग (युद्ध, लड़ाई),
ज़ँगाना (ज़ंग लगना),
ज़ँजीर (श्रँखला),
ज़ंजीरी,
ज़ईफ़ी (कमज़ोरी, बुढ़ापा),
ज़क (हार, पराजय),
ज़कात (कर, टैक्स, दान),
ज़ख़म (घाव),
ज़ख़मी (घायल),
ज़ख़ीरा (संग्रह, भंडार),
ज़ख़्म (ज़ख़म),
ज़ख़्मी (ज़ख़मी),
ज़चा / ज़च्चा (प्रसूता),
जज़बात (भावनाएँ),
जज़िया (जिज़िया : इस्लाम के अनुसार ग़ैर-इस्लामी लोगों पर लगाया जानेवाला कर),
जज़ीरा (द्वीप),
जज़्ब (सोखना),
जज़्बा (भावना, भावुकता),
जज़्बात / जज़बात (भावनाएँ, भावुकताएँ),
ज़न (स्त्री),
ज़नख़दाँ (ठुड्डी),
जनख़ा (नपुंसक),
जनाज़ा (शव, अरथी),
ज़नानख़ाना (रनिवास),
ज़नाना (स्त्री, स्त्रियों से संबंधित),
ज़नानापन (स्त्रैण),
जफ़ा (निष्ठुरता, अन्याय, कठोर व्यवहार),
ज़फ़ीर (सीटी जैसी ध्वनि),
ज़फ़ील (सीटी की आवाज़),
ज़बर (बलशाली),
ज़बरदस्त,
ज़बह (पशुवध),
ज़बान (जिह्वा, वाणी, वचन),
ज़बानी (मौखिक),
ज़बून (अशक्त, दुर्बल),
ज़ब्त (रोकना, निग्रह, अधिकार में रखना),
ज़ब्ती (ज़ब्त किया गया सामान),
ज़मज़म (मक्का स्थित प्रसिद्ध कुआँ),
ज़मानत , ज़मानतन,ज़मानती,
ज़माना (समय, काल-विशेष),
ज़मीं (ज़मीन, भूमि),
ज़मींक़न्द, ज़मींदार,
ज़मीन, ज़मीनी,
ज़मीर (दिल, मन, विचार),
ज़र (सोना-चाँदी, ज़ेवर-ज़ेवरात, अंग्रेज़ी जेवेलरी),
ज़रद (पीले रंग का),
ज़रदा (तम्बाखू),
ज़रदी (पीलापन, अंडे का पीला अंश),
ज़रब (धक्का, आघात, गुणा),
ज़रबीला (प्रभावशाली),
ज़रर (हानि, क्षति),
ज़रा (थोड़ा सा),
ज़राफ़त (हाज़िरजवाबी, तत्कालबुद्धि),
ज़री (ज़र, सोना-चाँदी, ज़ेवर-ज़ेवरात, अंग्रेज़ी जेवेलरी),
ज़रूर (अवश्य),
ज़रूरत,
ज़रूरियात (ज़रूरी बातें),
ज़र्द (पीले रंग का),
ज़र्दा (ज़रदा, तमाखू),
ज़र्दी / ज़रदी (पीलापन, अंडे का पीला अंश),
ज़र्रा (कण, कंकड़,ज़लज़ला (भूकम्प),
ज़लालत (घटियापन, दुष्टता, नीचता, अपमान),
[जलाल - शानदार, महिमापूर्ण],
ज़लील (अपमानित, बेइज़्ज़ती करना),
ज़वाल (ढलता हुआ, क्लेश, दरिद्र, दीन-हीन होना, विपन्नता),
ज़हमत (असुविधा, परेशानी, तकलीफ़),
ज़हर (विष),
ज़हरी / ज़हरीला,
जहाज़ जहाज़ी,
ज़हीन (बुद्धिमान, प्रतिभाशाली),
जहेज़ (दहेज),
ज़ाकिर (स्मरण में) [ज़िक्र, मज़कूर (जिसका उल्लेख किया जाए), मुज़ाक़िर],
ज़ात (मूल चरित्र, प्रकृति, प्रकार, स्वरूप, स्व),
[मैं अपनी ज़ात में नीलाम हो रहा हूँ क़तील ,
ग़मे-हयात से कह दो ख़रीद लाए मुझे],
ज़ाती (आन्तरिक, निजि, व्यक्तिगत), [ज़ाती ममला],
ज़ाफ़रान (केसर),
ज़ाफ़रानी (केसरिया, नारंगी), केसरयुक्त,
जाफ़री (बाँस की जाली या पर्दा),
जफ़ा (वृद्धि), [इजाफ़ा, संस्कृत एध, एधमान > बढ़ता हुआ, ईन्धन अग्नि],
ज़ाबित (स्व-निग्रह, आत्म-संयम),
ज़ब्ता (प्रक्रिया, विधि, ज़ाब्ता-ए-हिन्द),
ज़ायक़ा (स्वाद),
जायज़ (वैध),
जायज़ा (जाँच, परीक्षा, पड़ताल),
ज़ामिन (ज़मानत देनेवाला),
ज़ार (ज़ार-ज़ार रोना), फूट-फूटकर, बिलख-बिलखकर रोना,
ज़लिम (क्रूर), [ज़ुल्म],
ज़ालिमाना (क्रूरतापूर्ण),
ज़लिमी (क्रूर, क्रूरतापूर्ण),
ज़हिद (समर्पित),
ज़ाहिर (स्पष्ट, खुला),
ज़ाहिरा (स्पष्टतः, साफ़ तौर पर),
ज़ाहिरी (ज़ाहिर),
ज़ाहिल (लापरवाह), [जाहिल - असभ्य, अनपढ़, गँवार],
ज़िन्दगानी (ज़िन्दगी, जीवन),
ज़िन्दा (जीवित),
ज़िक्र (उल्लेख),
जिज़िया (जज़िया),
ज़िद (हठ),ज़िदियाना (हठ करना),
ज़िद्द (ज़िद, हठ),
ज़िबह ज़बह (वध / बलि),
ज़िम्मा (दायित्व),
ज़िम्मादार ज़िम्मेदार ( जिस पर दायित्व है),
ज़िम्मावार, ज़िम्मेवार, ज़िम्मेदारी, ज़िम्मेवारी,
ज़ियाफ़त (आतिथ्य, अतिथि-सत्कार),
ज़िरह (संदेश-श्रँखला), ज़ँजीर (श्रँखला),
ज़ियारत (तीर्थयात्रा) [संस्कृत -यायावरत, यायावरी],
ज़िला (राजस्व-क्षेत्र),
ज़िलादार, ज़िलावार,
ज़िल्लत, ज़लालत (अपमान, तिरस्कार),
ज़िहन ज़ेहन (बुद्धि, मन, दिमाग़, समझ),
ज़ीन (बैठने के लिए घोड़े पर लगाई जानेवाली काठी),
ज़ीन (बहुत मोटा सूती कपड़ा),
ज़ीनत (सौन्दर्य, शोभा, अलंकार),
ज़ीना (सीढ़ियाँ),
ज़ीर, ज़िरह, (संदेश-श्रँखला),
ज़ीरा (जीरा),
ज़ुकाम (सर्दी-ज़ुकाम),
जुज़ (हिस्सा, टुकड़ा, अंश),
जुज़ो-कुल, जुज़बन्दी (ग्रन्थ की जिल्द बाँधना),
ज़ुलुम, ज़ुलम, ज़ुल्म, ज़ुल्मियत (अत्याचार, अन्याय, क्रूरता),
ज़ुल्फ़ (केश, बाल),  
ज़ुल्फ़ी (बालों का),
ज़ुल्म ज़ुलम ...,
ज़ेर (निम्न-स्तर का),
ज़ेवर (गहना),
ज़ेवरात,
ज़ेहन, ज़िहन (बुद्धि, मन, दिमाग़, समझ),
ज़ोम (पूर्वाग्रह, आक्रामकता, डिठाई),
ज़ोर (ताक़त, बल),
ज़ोहरा (शुक्र ग्रह),
ज़ौक़ (स्वाद, आस्वाद, रस), [ज़ौक़-शौक़],
ज़्यादती (आधिक्य, अधिकता, दमन करना, ज़ोर-ज़बर्दस्ती),
ज़्यादा (अधिक), [संस्कृत -ज्यायतः, ज्येष्टता],
--

ग / ग़ नुक्ता चीं -अनुक्त चिह्नकोश

ग / ग़ नुक्ता चीं -अनुक्त चिह्नकोश
--
गंजीफ़ा (ताश जैसा एक खेल),
ग़च / ग़चू (बच्चे जो छोटा सा गड्ढा बनाते है गुल्ली-डंडा या कंचे खेलने के लिए),
गज़क (तिल-गुड़ का बना)
ग़ज़ब (भयावह, स्तब्धकारी, कठिन, विस्मयप्रद)
ग़ज़ल (उर्दू कविता / पद्य),
गज़ी (मोटा सूती कपड़ा),
ग़टरग़ूँ (कबूतर की आवाज़), (गुटरगूँ),
ग़दर (विद्रोह, राष्ट्रद्रोह),
ग़द्दार, ग़द्दारी,
ग़नी (धनिक, अमीर),
ग़नीमत (सौभाग्य) समझना,
गफ़ (गठा हुआ कपड़ा),
ग़फ़ (---उपरोक्त---),
ग़फ़लत (लापरवाही),
ग़बन (पैसे का),
ग़म (दुःख, रंज),
ग़मज़ (कामुक दृष्टि),
ग़मी (शोक, मृत्यु),
ग़रक़ / ग़र्क़ (डूबा हुआ),
ग़रक़ी (बाढ़ में डूबना),
ग़रग़रा (ग़रारा करना gargling)
ग़रज़ (ज़रूरत), गर्ज़,
ग़रज़मंद (ज़रूरतमंद)
ग़रज़ी (ज़रूरतमंद),
ग़रारा (ग़रारा करना),
ग़रारा (स्त्रियों के पहनने का पाजामा),
ग़रीब (निर्धन),
ग़रीबाना (निर्धनिक, धनहीन, दरिद्र),
ग़रीबी (निर्धनता),
ग़रूर (गर्व),
ग़र्क़ (डूबा हुआ), ग़रक़,
गर्ज़, ग़रज़ (ज़रूरत),
ग़लत (दोषपूर्ण, त्रुटियुक्त, अनुचित),
ग़लती (दोष, त्रुटि, भूल),
ग़लाज़त (गंदगी, अस्वच्छता),
ग़लीज़ (अस्वच्छ, अपवित्र, गंदा),
ग़ल्ला (अनाज, लेन-देन की रोकड़ रखने का ख़ाना), ग़ुल्लक,
ग़श (बेहोशी होना),
ग़शी (बेहोश होना),
ग़ाज़ी (काफ़िरों को हरानेवाला),
ग़ाफ़िल (लापरवाह),
ग़ार (गुफा, गड्ढा, खाईं),
ग़ारत (लूट-मार),
ग़ारतगर (लुटेरा),
ग़ालिब (प्रायः, अकसर),
ग़ालिबन (प्रायशः, अकसर),
गिरफ़्त (पकड़),
गिरफ़्तार (पकड़ लेना, क़ैद),
गिरफ़्तारी,
(गरिफ़्त, गिरिफ़्त भी प्रचलित रूप हैं),
[संस्कृत प्रग्रह > पकड़, अंग्रेज़ी grip],
ग़िलाफ़ (आवरण, जैसे तकिये का ग़िलाफ़),
ग़ुल्ला, ग़ुल (शोरग़ुल),
ग़ुंचा (कली, पुष्प), [संस्कृत -गुच्छं],
गुज़र (गुज़र-बसर),
गुज़रना (से होकर जाना),
गुज़श्ता (अतीत में, बीते हुए समय में),
गुज़ार (बीतना)
गुज़ारना (बिताना),
गुज़ारा (गुज़ारे का साधन),
गुज़ारिश (निवेदन),
गुज़ारी (कार्य, -कारगुज़ारी),
गुफ़्तगू (बातचीत),
गुफ़्तार (अभद्र भाषा, -गाली-गुफ़्तार),
ग़ुबार (फैलाव, ग़ुबार उठना),
ग़ुब्बारा (बुलबुला, बैलून),
ग़ुर्राना (क्रोध से हुंकारना),
ग़ुलेल, ग़ुलेलची,
ग़ुलेला (ग़ुलेल से फेंका पत्थर)
ग़ुल्लक, ग़ल्ला (अनाज, लेन-देन की रोकड़ रखने का ख़ाना),
गुस्ताख़ (आक्रामक, धृष्ट),
गुस्ताख़ी (ढिठाई),
ग़ुस्ल, ग़ुसल (स्नान),
ग़ुस्ल-ख़ाना, ग़ुसल-ख़ाना,
ग़ुस्सा (रोष),
ग़ुस्सैल (क्रोधी),
ग़ैब (गुप्त, अदृश्य, रहस्यमय),
ग़ैबी (रहस्यमय, अदृश्य),
ग़ैर (पराया),
ग़ैरत (लज्जा, हया, संकोच),
ग़ैरतमंद (लज्जालु),
ग़ैरियत (अजनबी होना),
--    


 
       

August 03, 2017

आसमान

आज की कविता
आसमान

मेरी खिड़की से भी आसमान दिखता है!
हर सुबह से शाम तक देखा करता हूँ मैं!
और रोशनदान से भी आसमान दिखता है!
रात भर भी हालांकि देख सकता हूँ मैं,
बाँटता नहीं उसे शामो-सुबह दिन-रात में!
लोग कहते हैं खुले में आसमाँ कभी देखो!
घर में रहकर आसमाँ को किसने कब देखा?
सोचता हूँ मैं किसी दिन ये भी करना है मुझे,
पर सोचता हूँ देखकर भी क्या नया होगा?
जब तक न हो कहीं  कोई आसमाँ मेरे भीतर,
किसी बाहर के आसमाँ से मेरा क्या होगा?
--

ख / ख़ - नुक्‍ता चीं - अनुक्‍त-चिह्नकोश

निवेदन :
प्रस्तुत ब्लॉग में केवल उन्हीं शब्दों का संग्रह है जिन्हें लिखने में नुक्ते / नुक़्ते / नुकते / नुक़ते का प्रयोग प्रचलित देवनागरी लिपि में लिखी जानेवाली उर्दू तथा हिंदी में प्रायः पाया जाता है।
यदि किसी शब्द की सही वर्तनी (स्पेलिंग / हिज्जे) क्या है इस बारे में संशय है, तो उस शब्द की वर्तनी (स्पेलिंग / हिज्जे) यहाँ खोजिए ! यदि यह शब्द आपको यहाँ मिल जाता है तो उस शब्द में नुक्ते / नुक़्ते / नुकते / नुक़ते का प्रयोग अवश्य है। और वह शब्द अगर यहाँ नहीं पाया जाता है, तो उसकी सही वर्तनी में भी नुक्ते / नुक़्ते / नुकते / नुक़ते का प्रयोग नहीं होता ।
संक्षेप में, ब्लॉग को अनावश्यक विस्तार देने से बचाने के उद्देश्य से ऐसे तमाम शब्दों को
"नुक्‍ता चीं : अनुक्त चिह्नकोश"
 में स्थान नहीं दिया गया है।
--
ख / ख़
--
ख़ंजर,
ख़ंजरी dagger ,
ख़ंजरी (खंजड़ी),
ख़ंदक़ trench,
ख़च्चर mule,
ख़ज़ांची, ख़ज़ाना,
ख़त,
ख़तना,
ख़तम, ख़त्म, ख़ात्मा,
ख़तरनाक, ख़तरा,
ख़फ़गी, ख़फ़ा, ख़ौफ़,
ख़बर, ख़बरगीर, ख़बरनवीस,
ख़बीस (बुरा, दुष्ट, दुष्ट आत्मा, पिशाच),
ख़ब्त (पागलपन, उन्माद), ख़ब्ती (उन्मत्त),
ख़म (वक्रता, टेढ़ापन, ज़ुल्फ़ का ख़म),
ख़मियाज़ा (भरना, वसूल करना, भुगतना),
ख़मी (धूर्तता),
ख़मीर (उठना),
ख़मीरा (सुगंधित तम्बाकू, गाढ़ा चाशनी जैसा पदार्थ),
ख़मोश, ख़ामोश (चुप, मौन, शान्त),
ख़मोशी, ख़ामोशी,
ख़यानत (विश्वासघात, भरोसा तोड़ना),
ख़याल (विचार, ध्यान, सावधानी, कल्पना, अनुमान,),
ख़यालात,
ख़याली,
ख़र (चंचल), ख़रगोश, ख़र-दिमाग़,
ख़रख़शा (झगड़ा, झड़प, लड़ाई),
ख़रबूज़ा, ख़रबूज़ी (रंग या प्रकार),
ख़राद, ख़रादना (धातुकर्म), ख़रादी (लुहार),
ख़राब (बुरा, बेकार), ख़राबी,
ख़रामाँ (संयत, सभ्य, नपा-तुला)
ख़राश (गले में होना), ख़राशना, ख़ारिश,
ख़रीता (थैली, बटुआ),
ख़रीद, ख़रीदना, ख़रीद-फ़रोख़्त,
ख़रीदार, ख़रीदारी,
ख़रीफ़ (वसंत ऋतु तक होनेवाली उपज), ख़रीफ़ी (फ़सल),
ख़र्च, ख़र्चना, ख़र्चा, ख़र्ची,ख़र्चीला, ख़र्चू,
ख़लक़ (संसार)
[ख़लक़ ख़ुदा का, मुलुक (मुल्क, राज्य) बादशाह का, हुक़ुम (हुक्म) शहर-कोतवाल का...]
ख़लल (बाधा),
ख़लास (मुक्त, मुक्त होना, राहत मिलना, छूटना),
ख़लासी (क़ुली, माल ढोनेवाला श्रमिक),
ख़लिश (गुदगुदी, चुभन), ...
(कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीरे नीमकश को,
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता... -ग़ालिब)
ख़लीज (खाड़ी) ख़लीज की जंग (खाड़ी-युद्ध),
ख़लीफ़ा, ख़िलाफ़त (उत्तराधिकार), ख़िलाफ़त (शासन), ख़िलाफ़ (विपक्ष, विरोधी),
ख़वातीन (स्त्री, महिला -बहुवचन), ख़ातून (स्त्री, महिला -एकवचन),
ख़वास (सेवक),
ख़शख़श (खसखस, अफ़ीम के डोड़ा का दाना),
ख़स (ख़स के पर्दे, जो ठंडक के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं),
ख़सम (पति),
ख़सरा (पटवारी का कृषि-भूमियों का लेखा-जोखा, ख़सरा-खाता),
ख़सी (ख़स्सी, बधिया),
ख़सीस (नीच, कुटिल, बदमश),
ख़स्तगी (कुरकुरापन),
ख़स्ता (कुरकुरा, भंगुर),
ख़ाँ (ख़ान),
ख़ाक (मिट्टी), ख़ाकी (रंग) ख़ाकसार (नम्रता से शिष्टतावश स्वयं के बारे में उक्ति),
ख़ाका (रूपरेखा),
ख़ातिर (के लिए, सम्मान), ख़ातिरदारी,
ख़ातून (स्त्री, महिला -एकवचन), ख़वातीन (स्त्री, महिला -बहुवचन),
ख़ादिम (सेवक), ख़ादिमा (सेविका),  
ख़ान (खाँ), समुदाय का प्रधान व्यक्ति या उसका वारिस,
ख़ानगी, (घरेलू,व्यक्तिगत, स्त्रीवाची -वैश्या),
ख़ानदान (परिवार, कुल), ख़ानदानी,
ख़ानसामाँ (ख़ान-सामान, भंडारी, बावर्ची, रसोइया),
ख़ाना (हिस्सा, कार्यालय, घर, दवाख़ाना, डाकख़ाना, मुसाफ़िरख़ाना), ख़ाना-ख़राबी (परिवार का नष्ट हो जाना), ख़ाना-जंगी (युद्धविराम), ख़ाना-तलाशी (पता खोजना), ख़ानापूरी करना (जानकारी दर्ज करना), ख़ाना-ब-दोश (बेघर, प्रवासी),
ख़ाब (स्वप्न), ख़्वाब,
ख़ाम (कच्चा, अधूरा), ख़ाम-ख़याली, ख़ामख़्वाह / ख़्वामख़्वाह / ख़ामख़ा (अकारण),
ख़ामी (अभाव, दोष, त्रुटि),
ख़ामोश (चुप),
ख़ार (काँटा)
[इन आबलों से पाओं के घबरा गया था मैं,
दिल ख़ुश हुआ है राह को पुर-ख़ार देखकर, -ग़ालिब]
ख़ारिज (निरस्त करना, होना), ख़ारिश (ख़राश) (संस्कृत क्षरित, क्षारित),
ख़ालसा (ख़ालिस) शुद्ध (संस्कृत प्र-क्षालित),
ख़ाला (मामी),
ख़ालिक़ (सृष्टिकर्ता, विधाता),
(ख़ालिस) (शुद्ध - संस्कृत प्र-क्षालित),
ख़ाली (रिक्त),
ख़ाविंद (पति, स्वामी),
ख़ास (विशिष्ट), ख़ासियत (विशेषता)
ख़ासा (बहुत अधिक, प्रचुर),
ख़ासियत (विशेषता),
ख़ाहमख़ाह (ख़ामख़्वाह / ख़्वामख़्वाह / ख़ामख़ा, -अकारण), बेवजह,
ख़ाहिश (इच्छा), ख़्वाहिश,
ख़िज़ाँ (पतझड़),
ख़िज़ाब (hair-dye),
ख़िताब (पदक), ख़िताबी (स्पर्धात्मक),
ख़िदमत (सेवा), ख़िदमती (सेवक, सेवा से संबंधित),
ख़िराज (कर, टैक्स, अंशदान, हिस्सा),
ख़िलअत (सम्मान),
ख़िलाफ़ (विरुद्ध), [ख़लीफ़ा, ख़िलाफ़त (उत्तराधिकार), ख़िलाफ़त (शासन), ख़िलाफ़ (विपक्ष, विरोधी)],
ख़िलाफ़त (उत्तराधिकार),
ख़ुतबा (पढ़ना), लिखे हुए को पढ़ना,
ख़ुतूत (अक्षर, पत्र, लेख),
ख़ुद (स्वयं),
ख़ुद-इख़्तियार, ख़ुद-कुशी, ख़ुद-ग़र्ज़, ख़ुद-ब-ख़ुद,
ख़ुदरा (थोक / ख़ुदरा भाव),
ख़ुदा (परमेश्वर),
ख़ुदाई (ईश्वरीय),
ख़ुदावंद (ईश्वर),
ख़ुदी (स्वाभिमान),
ख़ुफ़िया (गुप्तचर),
ख़ुम (मदिरा पात्र)
ख़ुमार (नशा, मत्त होना),
ख़ुमारी (नशा, उल्लास),
ख़ुरजी (थैला),
ख़ुरमा (खजूर, मीठा व्यंजन),
ख़ुराक (आहार),
ख़ुराफ़ात (उपद्रव),
ख़ुर्द (छोटा),
ख़ुर्दा (रेज़ग़ी बिक्री या ख़रीद),
ख़ुर्रम (ख़ुश),
ख़ुलासा (विस्तार, स्पष्टता),
ख़ुश (प्रसन्न),
ख़ुशाल, ख़ुशहाल (सकुशल),
ख़ुशी (प्रसन्नता)
ख़ुश्क (सूखा),
ख़ुश्की (सूखापन),
ख़ुसूसन (ख़ासकर),
ख़ुसूसियत (विशेषता), ख़ासियत,
ख़ूँख़्वार / खूँख़ार  (नृशंस),
ख़ून (लहू, रक्त),
ख़ूनी,
ख़ूब,
ख़ूबानी (अंजीर या अख़रोट),
ख़ूबी (विशेषता), बख़ूबी,
ख़ेमा (शिविर, पक्ष),
ख़ैर (कुशल) ... माँगे सबकी ख़ैर,
ख़ैरख़्वाह, ख़ैर-ख़बर,
ख़ैरात (दान),
ख़ैराती (दान से संबद्ध, लेने या देने वाला),
ख़ैरियत (कुशल-मंगल),
ख़ोजा / ख़्वाजा,
ख़ोर (मुफ़्तख़ोर, चुग़लख़ोर),
ख़ौफ़ (भय), ख़ौफ़नाक (भयावह),
ख़्याल (ख़याल),
ख़्वाजा,
ख़्वाब (ख़ाब),
ख़्वार (नीच, घटिया),
ख़्वारी (घटियापन, नीचता),
ख़्वाह (करनेवाला), ख़ैरख़्वाह, ख़ामख़्वाह,
ख़्वाहिश (इच्छा), ख़्वाहिशमंद (इच्छुक),
--       

             

         

         
                    
  
            

('अ' से 'क' तक) - नुक्‍ता चीं - अनुक्त-चिह्नकोश

नुक्‍ता चीं : अनुक्त चिह्नकोश  
--
निवेदन :
प्रस्तुत ब्लॉग में केवल उन्हीं शब्दों का संग्रह है जिन्हें लिखने में नुक्ते / नुक़्ते / नुकते / नुक़ते का प्रयोग प्रचलित देवनागरी लिपि में लिखी जानेवाली उर्दू तथा हिंदी में प्रायः पाया जाता है।
यदि किसी शब्द की सही वर्तनी (स्पेलिंग / हिज्जे) क्या है इस बारे में संशय है, तो उस शब्द की वर्तनी (स्पेलिंग / हिज्जे) यहाँ खोजिए ! यदि यह शब्द आपको यहाँ मिल जाता है तो उस शब्द में नुक्ते / नुक़्ते / नुकते / नुक़ते का प्रयोग अवश्य है। और वह शब्द अगर यहाँ नहीं पाया जाता है, तो उसकी सही वर्तनी में भी नुक्ते / नुक़्ते / नुकते / नुक़ते का प्रयोग नहीं होता ।
संक्षेप में, ब्लॉग को अनावश्यक विस्तार देने से बचाने के उद्देश्य से ऐसे तमाम शब्दों को
"नुक्‍ता चीं : अनुक्त चिह्नकोश"
 में स्थान नहीं दिया गया है।
--

अंग्रेज़, अँग्रेज़, अंग्रेज़िन, अँग्रेज़िन, अंग्रेज़ी, अँग्रेज़ी, अंग्रेज़ियत, अँग्रेज़ियत,
अंजाम, अंजुमन, अंदाज़, अंदाज़न, अंदाज़ा,
अक़ल, अक़्ल, अक़ीक (कार्नेलियन carnelian)
अक़ीदत, अक़ीदा,
अख़नी, अख़नी-पुलाव,
अख़बार, अख़बारी,
अखरोट, अख़रोट,
अख़लाक, अख़्लाक,
अख़ीर, आखिर,
अगरचे although,
अग़ल-बग़ल,
अज़, ’से’ (कम-अज़-कम)
अज़ा mourning.
अज़ान,
अज़ाब दंड, punishment, suffering,
अज़ीज़, अज़ीज़ी,
अज़ीम,
अपाहिज, (सं. अ-पायिक, लंगड़ा),
अफ़ग़ान, अफ़ग़ानी,
अफ़लातून,
अफ़वाज (फ़ौज),
अफ़वाह, अफ़वाही,
अफ़सर, अफ़्सर, अफ़सराना, अफ़सरियत, अफ़सरी,
अफ़साना,
अफ़सोस,
अफ़ीम, अफ़ीमची,
अफ़्रीका, अफ़्रीकी,
अराज़ी (अर्ज़ का बहुवचन) ज़मीन का टुकड़ा,
अर्ज़ (चौड़ाई), अर्ज़ी,
अलक़तरा (टार, तारकोल),
अलगरज़, अलग़रज़ी,
अलग़ोज़ा,
अलिफ़,अशरफ़, अशरफ़ी, अशर्फ़ी, अशराफ़,
अहमक़, अहमक़पन, अहमक़ी
--

आग़ा (तुर्की -स्वामी, अफ़ग़ान),
आग़ाज़ : आरंभ,
आग़ोश : आलिङ्गन,
आज़माइश, आज़माइशी, आज़माई, आज़मूदा,
आज़ाद, आज़ादगी, आज़ादी,
आज़ार,
आजिज़,
आफ़त,
आफ़ताब, संस्कृत आतप. आताप (सूर्य), आफ़ताबी,
आफ़ताबा, पानी का बर्तन (संस्कृत आप् > जल) आप्त-आप्,
आफ़रीन : उत्साहवर्धन, (हौसला-अफ़ज़ाई),
आफ़ियत (अरबी : कुशलता, ख़ैरियत),
आमोख़्ता (फ़ारसी, उर्दू, - सीखा हुआ),
आरज़ा (अरबी : रोग),
आरज़ू,
आवाज़, आवाज़ा (ताना मारना),
आशिक़ आशिक़ा, आशिक़ाना, आशिक़ी,

इंतक़ाम,
इंतक़ाल,
इंतख़ाब (चुनाव),
इंतज़ाम,
इंतज़ार,
इंतिख़ाब, इंतख़ाब (चुनाव),
इंतिज़ाम, इंतज़ाम,
इंतिज़ार, इंतज़ार,
इक़दाम, इक़दामात,
इक़बाल, इक़बालिया, इक़बाली,
इक़रार, इक़रारी, एक़रार,
इख़लाक, अख़लाक, अख़्लाक,
इख़लास (शुद्ध स्नेह), लगाव,
इख़वान (सधर्मी, समान आस्था रखनेवाले),
इज़्तिराब : बेचैनी, व्याकुलता,उद्विग्नता,
इज़हार,
इजाज़त,
इज़ाफ़त, इज़ाफ़ा,
इज़ार, इज़ारबंद,
इज़्ज़त,
इत्तफ़ाक़, इत्तफ़ाक़न, इत्तफ़ाक़िया,, इत्तफ़ाक़ी,
इनक़लाब, इंकलाब, इन्क़िलाब, इंक़िलाब,
इनसाफ़, इन्साफ़ी,
इफ़रात,
इम्तियाज़ (विशिष्टता, अनोखापन),
इलाक़ा,
इश्क़, इश्क़िया, इश्क़ी,
इसबग़ोल,
इसराफ़ (अत्याचार, बदला, अति, बेहद),
इस्तक़बाल (स्वागत), इस्तिक़बाल,
इस्तग़ासा (वाद, न्याय माँगना),
इस्तिक़बाल, इस्तक़बाल (स्वागत),
--

ईज़ा (चोट),
ईज़ाद (आविष्कार)
ईदुज़्ज़ोहा,
ईदुलफ़ितर,
ईफ़ाय (वचन पूरा करना),
--
उ 
उज़्र, उज़र (आपत्ति),
उर्फ़,
--

--

एक़रार,
एरा-ग़ैरा, ऐरा-ग़ैरा,
एवज़,
एवज़ी,
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ऐरा-ग़ैरा, एरा-ग़ैरा,
ऐल-फ़ैल (बड़बड़, गाली-गलौज), औल-फ़ौल,
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औज़ार,
औल-फ़ौल, ऐल-फ़ैल (बड़बड़, गाली-गलौज),
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क / 

क़ंद : मिश्री की डली, (सिन्धी : खंड), खांडसारी, कलाक़ंद,
क़ज़ा (आदेश, नियति, भाग्य, मृत्यु),
क़ज़ाक़ (डकैत, लुटेरा),
क़ज़ाक़ी (डकैती),
क़ज़िया (फ़साद, विवाद)
क़त (काट, काटना), क़लम की नोंक,
क़तल, क़त्ल,
क़ता, क़त (काट, काटना), क़तअ, क़तआ (शैली),
क़त्ताल (क़ातिल)
क़त्ल, क़ातिल,
क़द (ऊँचाई), क़द्दावर (ऊँचे क़द का),
क़दम क़दमचा (क़दमचाल), पायदान,
क़दीम (प्राचीन, पुरातात्विक, ऊँचा), क़दीमी,
क़द्र, क़दर, क़ादिर मुक़द्दर, इक़दार,
क़नात (पर्दा, शामियाना), क़नाती,
कफ़ (बलग़म > बल गम् संस्कृत),
कफ़ (पकड़),
कफ़चा (करछुल),
कफ़न, कफ़नाना (और दफ़नाना), कफ़नी (अनसिला वस्त्र),
क़फ़स (कारागृह), रोक,
क़बर, क़ब्र, मक़बरा,
क़बायली, क़बाइली, क़बीला, क़ाबिल, क़बीली, क़बुली (पशु जिसकी बलि दी जाना है) इक़बाल, मुक़ाबला, क़बूल, मक़बूल,
[संस्कृत खर्पर, कपाल, कर > कैर > कैरल > कैरलीय), रूसी क्यूपोला, अंग्रेज़ी कपल, सी-यू-पी-आय्-डी > क्यूपिड, कब (सी-यू-बी) सी-ए-बी- क्यूब, क्यूबिकल,  ...’काबा’ मक्का में स्थित घनाकार स्थल / इमारत]
क़बूलना, क़बूलियत, क़बूली,
क़ब्ज़, क़ब्ज़ा, क़ब्ज़ियत,
क़ब्र, क़बर,क़ब्रगाह, क़ब्रिस्तान, (संस्कृत : शवग्रह > शवर् गृह > क़ब्रगाह, शवरि-स्थान)
कमज़ोर, कमज़ोरी,
क़मर (चन्द्र),
क़मीज़,
क़याम (स्थायित्व, अंतिम, निवास), क़ायमी,
क़यामत, क़य्यूम,
क़यास (अनुमान, कल्पना, विचार करना)
क़रनाई (बिग़ुल, अंग्रेज़ी में ’बगल्’),
क़रार (वादा, वचन, सहमति, निश्चय), क़रारी (परस्पर सहमति),
क़रावल (प्रहरी),
क़रीना (क्रम से, व्यवस्था से),
क़रीब (समीप), क़रीबन, तक़रीबन,
क़र्ज़ (ऋण), क़र्ज़ा,
क़लंदर (पारिव्राजक मुसलमान फ़क़ीर), क़लंदरी,
क़लई (धातु का लेप), पोल (खुलना),
क़लक़ (दुःख, शोकग्रस्त होना),
क़लम (लेखनी, तलवार > सर क़लम करना, पौधे की टहनी जिससे नया पौधा लगाया जाता है), क़लमी (गुलाब, मोगरा, जूही, आम, नींबू आदि के प्रकार),
कलाक़ंद (मिठाई), क़ंद > क़ंद : मिश्री की डली, (सिन्धी : खंड), खांडसारी,
क़वायद (व्यायाम),
क़व्वाल, क़व्वाली,
कश्शाफ़ (निर्मल, शुभ्र),
क़सबा (छोटी बस्ती), क़सबाती (क़सबे से संबंधित), क़स्बा,
क़सम (प्रण, वचन), क़समी,
क़साइन / क़साई,
क़सूर (अपराध), क़ुसूर,
क़स्बा, क़सबा (छोटी बस्ती), क़सबाती (क़सबे से संबंधित), क़स्बा,
क़स्साब, क़स्साब-ख़ाना, क़साईख़ाना, क़स्साबी,
क़हक़ह, क़हक़हा, क़हाक़ा,
क़हत (दुर्भिक्ष, अकाल)
क़हर (आपदा),
क़हवा (क़ॉफ़ी)
काग़ज़, काग़ज़ात, काग़ज़ी,
क़ातिल (हत्यारा), क़ातिलाना,
क़ादिर, (शक्तिशाली),
क़ानून, क़ानूनन, क़ानूनियत, क़ानूनिया, क़ानूनी,
क़ाफ़िया (क़ाफ़िया शायरी में क़ाफ़िया तंग होना > असामञ्जस्य), क़ाफ़ियाबन्द (तुक मिलना),
काफ़िर (कुफ़्र), काफ़िराना, काफ़िरी,
क़ाफ़िला,
काफ़ी (बहुत, पर्याप्त),
काफ़ूर (कपूर), (काफ़ूर होना -लुप्त होना),
क़ाबला (सिटकनी),
क़ाबिज़ (क़ब्ज़ा कर लेना),
क़ाबिल (योग्य, अनुकूल), क़ाबिलियत,
क़ाबू (नियंत्रण, वश, अंकुश),
क़ामत (क़द-काठी),
क़ायम (साबुत, पूर्ण, टिकाऊ),
क़ायल (प्रशंसक), क़ाइल,
कारख़ाना,
क़ारूँ (मोज़ेस का चचेरा भाई), क़ारूँ का ख़ज़ाना,
क़ालीन (बिछाना),
क़ासिद (संदेशवाहक),
क़िंदील (कंदील, चन्द्रिल, कैंडल)
क़िता (टुकड़ा), क़ता, क़त, (किताब, न कि क़िताब),
किफ़ायत (लाभ), किफ़ायती (कम लागत या ख़र्च में),
क़िबला (मक्का की दिशा), पूज्य व्यक्ति, राजा या ईश्वर,
किमख़ाब (ज़री, सोने-चाँदी के तारों से जटित वस्त्र), किमख़ाबी,
क़िरतास (दक्खिनी हिंदी) काग़ज़ / काग़ज़ात,
क़िरमिज़ (संस् -कृमिज, कृमि से उत्पन्न हुआ), क़िरमिज़ी रंग (अंग्रेज़ी -क्रिम्सन), किर्मिज़ी,
क़िला (दुर्ग),
क़िस्त (काश्त, किश्त, कृषतः, कर्ष)
क़िस्म (प्रकार),
क़िस्मत (भाग्य),
क़िस्सा (प्रसंग, कहानी, वाक़या),
क़ीमत, क़ीमती,
क़ीमा (क़ीमा किया हुआ माँस),
क़ुतुब (ध्रुव तारा), [कुतुब (किताब) कुतुबख़ाना (किताबघर)],
कुफ़र, कुफ़्र, कुफ़राना, कुफ़ुर,
कुफ़्ल (केश-लट),
क़ुमक़ुमा (रंग गुलाल फेंकनेवाली पिचकारी, मशाल),
क़ुरबान, क़ुरबानी, क़ुर्बान, क़ुर्बानी,
क़ुरान,
कुरीज़ (पक्षियों के पंख झड़ना),
क़ुर्क, कुर्क़ी,
क़ुर्बान, क़ुर्बानी, क़ुरबान, क़ुरबानी,
क़ुल्फ़ी (बर्फ़ की),
क़ुलाबा (जोड़, ज़मीन-आसमान के क़ुलाबे मिलाना, आँटें),
क़ुली (श्रमिक),
क़ुव्वत (क्षमता, बल),
क़ुसूर, क़सूर, (अपराध),
कूज़ा (मिट्टी का बना लोटा),
क़ैंची,
क़ै,
क़ैद, क़ैदी, क़ैदिन,
कैफ़ियत (हालत,स्थिति),
कोफ़्त (झुँझलाहट, रोष, असंतोष),
कोफ़्ता (माँस या सब्ज़ियों का बना पकौड़ा),
क़ोरमा,
क़ौम (जातिविशेष के लोग), क़ौमियत, क़ौमी,
क़ौल (वचन),
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August 01, 2017

नुक्‍ता-चीं है ग़मे-दिल ...

नुक्‍ता-चीं है ग़मे-दिल ...
कभी सोचता था कि हिंदी (या हिन्दी?) में नुकते के साथ प्रयुक्त होने वाले वर्णों वाले प्रचलित शब्दों की एक फ़ेहरिस्त बनाकर रखूँ । बस ख़याल ही रह गया । फिर सोचा कितने लोग याद रख सकते हैं ? हाँ शायद ’एडिटिंग’ के समय काम आ सकता है ।
बाय द वे, नुक्‍ता-चीं की व्युत्पत्ति का प्रयास किया तो हाथ लगा ’अनुक्त-चिह्न’ ।
वह बिंदु जिसका स्वतंत्र उच्चारण नहीं होता । संस्कृत व्याकरण की वैज्ञानिकता देखिए कि इस अनुक्त-चिह्न के लिए जो क तथा ख के साथ क़ और ख़ व तथा प और फ के साथ ~प तथा फ़ हो जाता है ’अनुक्‍त चिह्न’ के रूप में इसे स्थान दिया जाता है ।
यह ’प’ तथा ’~प’ व ’फ’ और ’फ़’ अरबी (और संभवतः फ़ारसी) में भी प्रयुक्त होता है, इसलिए ’पाकिस्तान’ और ’बाकीस्तान’ को अरबी में एक ही तरह से लिखा जाता है ।
शायद इसीलिए चचा ग़ालिब कह गए होंगे :
नुक़्ताचीं है ग़मे-दिल, उसको सुनाए न बने ।
क्या बने बात जहाँ बात बनाए न बने ....
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इधर कोई ब्लॉग में इसे प्रस्तुत करने जा रहा हो तो शायद हिंदी (या हिन्दी?) का कुछ भला ही होगा !
अग्रिम शुभकामनाएँ !
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आदान-प्रदान -एल्डन नोव्लॉन

आदान-प्रदान
-एल्डेन  नोव्लॆन
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जब तक तुम इस कविता को पढ़ते रहोगे,
मैं इसे लिखता रहूँगा ।
मैं इसे लिख रहा हूँ यहाँ और अभी,
तुम्हारी आँखों के सामने ही,
हालाँकि तुम मुझे देख नहीं सकते ।
शायद तुम इसे ख़ारिज़ कर दो,
यह कहकर कि यह शाब्दिक बाज़ीगरी है,
मज़ाक तो यह है, कि तुम गलत हो ।
असली मज़ाक तो यह है,
कि तुम नाटक कर रहे हो ।
और यह एक यथार्थ है,
सुनिश्चित और ठोस,
हम दोनों से परे का ।
मैं इसे तुमसे बेहतर कहूँ :
मैं लिखता ही रहूँगा,
इस कविता को तुम्हारे लिए,
मेरे मर जाने के बाद भी ।
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मूल कविता :
An Exchange of gifts:
(Alden Nowlan)
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As long as you read this poem,
I will be writing it.
I am writing it here and now
Before your eyes,
Although you can’t see me.
Perhaps you will dismiss this
As a verbal trick,
The joke is you’re wrong;
The real trick
Is your pretending
This is something
Fixed and solid
External to us both.
I tell you better:
I will keep on
Writing this poem for you
Even after I’m dead.
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