लोकतंत्र की कसौटी
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वादे नहीं, इरादे!
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चुनाव लोकतंत्र का उत्सव है, और हर चुनाव में राजनीतिक दल वादों और प्रलोभनों या भयों से जनता को तात्कालिक रूप और अस्थायी तौर से प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।
प्रजातंत्र, लोगों और राजनीतिक दलों के परिपक्व होने का पता इससे चलता है कि वे सभी प्रत्याशियों की परख उनके सिद्धान्तों या वादों से नहीं, बल्कि इरादों को भांपकर करते हैं या नहीं।
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