बाल-कविता : हर रोज!!
--------------©-----------------
जब सूरज की नींद खुली,
जब धरती की नींद खुली,
सूरज ने समझा, सुबह हुई!
धरती ने समझा, सुबह हुई!
जब सूरज की आँखें झपकीं,
सूरज ने समझा, रात हुई!
जब धरती की आँखें झपकी,
धरती ने समझा, रात हुई!
चन्दा-तारों ने भी समझा,
सुबह हुई, या रात हुई!
पर फिर उनकी नींद खुली,
सोचा सबने, क्या बात हुई!
तब से रोज यही होता है,
रोज ही रात हुआ करती है,
हर रोज सवेरा होता है!
कितना अच्छा लगता है,
जब रोज रोज यह होता है,
हर रात नई होती है,
हर रोज नया दिन होता है!!
***
Nurseryrhymesforthegrownup...
No comments:
Post a Comment