December 07, 2022

जटायु, संपाति और वैनतेय

रामायण-प्रसंग

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दो तीन दिनों में ही जिन्दगी, सिरे से बदल गई है। 

'इंटरनेट' पर कुछ करने की इच्छा और जरूरत ही नहीं रही।

इस पोस्ट को लिखना शुरु किया था, इसलिए अगर संभव हुआ तो, इसे पूरा करने का विचार अवश्य है।

रामायण की कथा चेतना के आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक पक्षों और कार्य को एक साथ लेकर चलती है। प्राण और चेतना वैसे ही परस्पर अनन्य हैं जैसे सत् और चित्, शिव और शक्ति, अव्यक्त और व्यक्त। 

इसी आधार पर प्राण और चेतना के व्यक्त प्रकारों में पक्षियों के स्वरूप में व्यक्त हुई चेतना गिद्ध और गरुड़ के दो विशेष कार्यं और प्रयोजन को पूर्ण करती है।

जटायु का अर्थ हुआ अत्यन्त दीर्घ आयु तक जीवित रहनेवाला, तथा संपाती का अर्थ हुआ मर जानेवाला। ये वस्तुतः मनुष्य की उसी चेतना के उदाहरण हैं जो मनुष्य के भीतर पूरे संसार को जानने और समझने की प्रेरणा पैदा करती है।  गिद्ध का आहार  मृत जानवर होते हैं।

जटायु और संपाती दोनों गृद्ध भाई थे। इन्होंने सूर्य तक जाने की इच्छा से उड़ान भरी थी। जटायु कुछ ऊँचाई तक जाने के बाद सूर्य के ताप से व्याकुल होने लगा तो उसके बड़े भाई संपाती ने उस पर अपने पंखों की छाया की, किन्तु जटायु पृथ्वी पर उतर गया। कुछ समय पश्चात संपाती के पंख भी सूर्य की गर्मी सह न सकने से जल गये और वह भी धरती पर गिर पड़ा। ज्योतिषीय दृष्टि से ये दोनों पक्षी पृथ्वी की दो गतियों के प्रतीक हैं - एक है अपने झुके हुए अक्ष पर पृथ्वी का घूर्णन, दूसरा है, -वलयाकार कक्षा में उसका सूर्य के चारों तरफ परिभ्रमण करना।

रामायण की कथा में सीता की रक्षा के लिए पहले जटायु रावण से युद्ध करता है किन्तु रावण उसे पराजित करता है और इसके बाद जब राम और लक्ष्मण सीता को खोजते हुए जटायु के पास पहुँचते हैं तो उन्हें पता चलता है कि रावणने सीता का अपहरण किया है।

कथा के दूसरे हिस्से में जब वानर सीता की खोज में असफल हो जाते हैं और प्रायोपवेशन अर्थात आमरण अनशन के द्वारा शरीर त्याग करने के लिए समुद्र तट पर बैठ जाते हैं तब उन्हें एक गिद्ध संपाती दिखाई देता है और उन्हें लगता है कि वे उस गिद्ध का आहार बन जाएँगे। तब संपाती से उनकी बातचीत के बाद संपाती उन्हें आश्वासन और सान्त्वना देते हुए स्पष्ट करता है कि वह उसी जटायु का बड़ा भाई है, जिसका समाचार उसे वानरः से मिला है और उसे भी यह सौभाग्य प्राप्त हुआ है कि वह भी भगवान् श्रीराम के कार्य में सहयोग दे।

तब संपाती उन्हें जटायु के साथ हुई सूर्य की ओर की गई उड़ान की कथा सुनाता है कि किस प्रकार से अपने पंख जल जाने पर वह धरती पर गिर रहा था तो मुनि निशाकर ने उसे अपने हाथों में उठाकर मरने से बचा लिया था। तब मुनि ने उसे यह भी कहा था कि तुम इस पर्वत की तलहटी में रहो, जब भगवान् श्रीराम अवतार ग्रहण करेंगे तब तक तुम्हें तुम्हारा आहार अनायास ही नित्य ही प्राप्त होगा और फिर जब तुम्हारी भेंट वानरों से होगी तो तुम्हारे नए पंख आ जाएँगे। और फिर तुम्हारा जीवन उत्तम गति को प्राप्त होगा। 

मुनि निशाकर कौन हैं? पृथ्वी की वह गति जिससे किसी स्थान पर रात्रि होती है।

किन्तु अब बात करें वैनतेय की, जो भगवान् विष्णु का वाहन है और जिसकी गति काल से भी बढ़कर है। श्रीविष्णु का स्मरण करनेवाले मनुष्य को उनका वाहन तार्क्ष्य, पक्षीराज गरुड, मृत्यु या काल के पंजे से भी बचा लेता है। तारयति इति तार्क्ष्य: ...!

यह हुई जटायु, संपाती और वैनतेय की कथा। 

अंत में एक वैदिक शान्तिपाठ --

ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः। स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवान्सस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः।। स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नो पूषा विश्ववेदाः। स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।।

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