कि सोचना क्या है?!
कविता 14-11-2022
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चूँकि मैं हूँ इसीलिए क्या मैं सोचता हूँ?
या कि मैं सोचता हूँ, इसीलिए क्या मैं हूँ?
चूँकि मैं हूँ इसीलिए क्या मैं चाहता हूँ?
या कि मैं चाहता हूँ, इसीलिए क्या मैं हूँ?
मै सोचता हूँ कि ये, 'सोचना' क्या होता है?
मैं सोचता हूँ या कि ये 'सोचना' ही होता है?
ये 'सोचना', -जो कि होता है बेखयाली में,
ये 'सोचना', -जो कभी इरादतन भी होता है,
'सोचना' जिस पर होता हूँ कभी तो मैं ही हावी,
'सोचना' जो कभी तो मुझ पर भी हावी होता है!
कभी तो चाहते हुए भी तो सोच नहीं पाता,
कभी न चाहते हुए भी तो 'सोचना' होता है,
मैं सोचता हूँ कि यह 'चाहना' क्या होता है?
'चाहना' जिस पर होता हूँ कभी तो मैं हावी,
'चाहना' जो कभी मुझ पर भी हावी होता है!
जो होता है बनकर कभी उम्मीद या डर कोई,
जो कभी अफ़सोस कोई या कि ग़म भी होता है!
मैं चाहता हूँ कि इस सोचने पर और नहीं सोचूँ,
मैं सोचता हूँ इस चाहने पर और नहीं सोचूँ,
पता नहीं है मुझे, मैं कुछ समझ नहीं पाता,
ये 'सोचना', ये 'चाहना', मुझे नहीं आता!
बस कि ठिठक के रह जाता हूँ ये सोचकर,
कि क्या बिना सोचे, या कि बिना चाहकर,
क्या सफ़र ज़िंदगी का चलता ही नहीं,
क्यों परेशान हुआ जाए, सोचकर या, चाहकर!
नहीं मैं चाहता हूँ, हैरान या परेशान होना,
अच्छा है इस चाहने, सोचने से अनजान होना!
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