जीवन : एक खेल
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हर दम सुख ही क्यों चाहो!
थोड़ा सा दुःख भी झेलो!
सुख-दुःख का है जीवन खेल,
जीवन के संग संग खेलो!
क्यों ऐसे उदास रहते हो,
गुमसुम से क्यों रहते हो,
रोओ, चिल्लाओ, या गाओ!
खुलकर, हँसकर कुछ बोलो!
लगता है जीवन छोटा है,
फिर लगता है इतना लंबा भी,
युग युग भी छोटा लगता है,
लेकिन पल पल भी लंबा भी!
पल पल में भी युग जी लो,
युग युग में भी पल पल!
बीते कल में, भावी कल में भी,
जीवन-प्रवाह, बहता कल कल!
जीवन-प्रवाह की धारा में,
डूबो, उतराओ, बह जाओ,
या तैरो भी, जितना जी चाहे,
या फिर पार उतर जाओ!
हर दम ही जीना क्यों चाहो,
थोड़ा सा मिटना भी झेलो!
मरना-मिटना भी जीवन है,
जीवन के संग संग खेलो!
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