यह जो है मन!
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कविता / 20-11-2023
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लगता तो है, यह चंचल है,
कितना अस्थिर प्रतिफल है!
यह है सबसे पहला विभ्रम,
जो चंचल है, वह अनुभव है!
अनुभव नित्य बदलता है,
आता है, फिर जाता है,
स्मृति बनकर रह जाता है,
क्या मन कोई अनुभव है!
स्मृति भी तो नित्य बदलती है,
बनती-मिटती है, चलती है!
फिर क्या मन कोई स्मृति है?
स्मृति ही तो है जो चंचल है!
स्मृति है अतीत, अतीत अनुभव,
अनुभव स्मृति, अनियत अनुभव,
क्या मन कोई अनुभव है?
अनुभव है विचार प्रत्यय,
प्रत्यय है, प्रतीति, विचार,
प्रतीति, विचार अस्थिर, अनित्य,
क्या मन कोई प्रत्यय है!
सुख-दुःख, शान्ति-अशान्ति पुनः,
तृप्ति-अतृप्ति, परितृप्ति पुनः,
असंतोष संतोष सभी,
आते हैं, फिर जाते हैं,
बेचैनी आती जाती है,
व्याकुलता आती जाती है,
चैन भी आता जाता है,
नींद भी आती जाती है,
भय भी आता जाता है,
लोभ भी आता जाता है,
ज्ञान भी आता जाता है,
विस्मृति भी आती जाती है,
तो स्मृति भी आती जाती है,
इच्छा, द्वेष के साथ साथ,
तृष्णा भी आती जाती है!
सब आता जाता है किन्तु,
क्या मन आता जाता है?
यदि मन भी आता जाता है,
तो मन भी बस है प्रतीति,
होती है आने जानेवाली,
नित्य बदलती अनुभूति!
क्या मन कोई अनुभूति है,
यदि है तो, किसको होती है?
वह कोई, जो कहता है "मैं",
क्या यह उसको होती है?
जो कहता है, मुझको होती है,
जो कहता है, यह मैं, या मेरा,
क्या वह भी आता जाता है,
क्या मन, यह 'मैं', या 'मेरा' है?
यह 'मैं'-'मेरा' हैं आते जाते,
मन में ही तो आते जाते,
जिस मन में वे आते जाते,
क्या मन वह आता, जाता है!
मन ही क्या वह नित्य नहीं,
मन ही क्या, नहीं वह भूमि,
जिस पर दृश्य उभरते हैं,
जो आते हैं, फिर जाते हैं!
उन दृश्यों का दृष्टा कोई,
क्या वह भी आता जाता है?
क्या मन, दृश्य या दृष्टा है?
क्या मन आता या जाता है?
आते या जाते हैं ये देवता,
वैसे तो बहुविध होते हैं,
गिनती में बस होते तैंतीस,
इतनी ही कोटि के होते हैं!
नाट्य-शास्त्र में, मुनि भरत,
कहते हैं इन्हें भाव संचारी,
मन-भूमि में रमा करते है,
क्या मन संचारी होता है?
मन तो वह व्यापक आकाश,
जिसमें व्याप्त ऐसा प्रकाश,
जिसका उद्गम भी मन है,
क्या उद्गम आता जाता है?
सबमें है व्याप्त, है यत्र-तत्र,
यहाँ वहाँ भी सदा सर्वत्र,
कहाँ नहीं इसका अस्तित्व,
समष्टि, समूह, या व्यक्तित्व!
क्या ये सब आते जाते हैं?
तो मन को चंचल क्यों कहते हो?
क्यों इतना व्याकुल रहते हो?
मन को सबसे पहले जानो !
फिर चाहो तो, कुछ भी मानो!
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