वक्त और एहसास क्या है!
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Salvador Dali की घड़ियाँ!
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वक्त भी फैलता-सिकुड़ता है जैसे,
उसका एहसास भी उसी तरह से !
जैसे कोई वक्त, किसी भी दूसरे से,
कभी छोटा या बड़ा भी नहीं होता!
और कोई एहसास भी कोई कभी,
नहीं होता छोटा या बड़ा, दूसरे से,
क्योंकि एहसास तो होता है हमेशा,
जागने में, सपने में, या फिर सोने में,
इसलिए जब भी कोई सो जाता है,
वक्त भी उसका, सो जाया करता है,
एहसास भी उस वक्त के ही साथ,
इसलिए वक्त और एहसास उसका,
दोनों हालाँकि फैलते-सिकुड़ते हैं!
कोई छोटा या बड़ा नहीं होता है,
जैसा हम कहा-समझा करते हैं!
वक्त का एहसास हुआ करता है,
एहसास महसूस किया जाता है,
न वक्त कोई छोटा-बड़ा होता है,
न उसका एहसास ऐसा होता है!
जब कोई वक्त कहीं नहीं होता,
जब कोई एहसास भी नहीं होता,
हमें कुछ महसूस भी नहीं होता,
तब भी हाँ हम होते हैं, बस होते हैं,
पर नहीं चीज़ वक्त जैसी कोई,
नहीं होता एहसास जैसा भी कुछ,
नहीं होता है महसूस जैसा भी कुछ,
न हम जागते होते हैं, न सोए हुए,
न सपनों में, खयालों में खोए हुए,
नींद में नींद का एहसास नहीं होता,
नींद में वक्त भी महसूस नहीं होता,
क्या कहें नींद में हम जब होते हैं,
वक्त तब होता है, या नहीं होता?
तब जो होता है, वह वही बस होता है,
जो न बनता है, और न ही मिटता है!
जो नहीं फैलता या सिकुड़ता है,
जो न बनता है, न बिगड़ता है,
तो फिर जो भी है, बस वही भर है,
जो उसको जानता है, वही भर है।
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