एक और त्रिवेणी
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कला विद्या (skill) है, बुद्धि तर्क (logic), धर्म (justice) आचरण (behaviour) है, जबकि विवेक (conscience) दर्शन है। इनमें से कोई अकेला एक, कोई दो, या कोई तीनों भी मिलकर जीवन को तब तक सार्थक और सम्पूर्ण नहीं कर सकते जब तक कि चौथा भी उनके साथ न हो। कला, बुद्धि और धर्म प्रत्यक्षतः प्रतीत होनेवाले प्रकट स्थूल, सूक्ष्म और कारण तत्त्व हैं जबकि दर्शन उनकी अप्रकट, प्रच्छन्न पृष्ठभूमि है।
कला अभ्यास से निखरती है, बुद्धि प्रयोग से कुशाग्र होती है, धर्म उचित-अनुचित न्याय पर ध्यान दिए जाने से फलित होता है, जबकि विवेक नित्यता-अनित्यता की परीक्षा / दर्शन करने से। रोचक बात यह है कि नित्यता-अनित्यता काल के सन्दर्भ में होती है, जबकि काल स्वयं बुद्धि में ही और बुद्धि स्वयं काल में ही पुनः पुनः व्यक्त और अव्यक्त, प्रकट और विलुप्त होते हैं। बुद्धि के सक्रिय होने पर ही काल की कल्पना कर पाना संभव होता है, और बुद्धि भी सीमित काल तक ही सक्रिय रह सकती है।
काल का मूल्याँकन आकाश / स्थान के मूल्याँकन का ही रूप है। कल् कल्यते कलयति कलनं इति कालः ... के अनुसार काल को घटना के आधार पर मापा जाता है। घट् घट्यते घटयति इति घटनं वा घटना ... के अनुसार दो या दो से अधिक घटनाओं के व्यतीत होने के अन्तराल की तुलना करने पर ही काल का मान निर्धारित किया जा सकता है, जो कि मूलतः काल का सापेक्ष मान (relative value) ही होता है।
इस सापेक्ष काल का सबसे अधिक विस्तारयुक्त प्रकार वर्ष होता है। रोचक तथ्य यह भी है कि वर्ष शब्द से स्थान के विस्तार को भी इंगित किया जाता है, जैसे 'भारतवर्ष' में वर्ष भारत देश के भौगोलिक विस्तार का द्योतक है। इस प्रकार वर्ष एक घटना है।
काल के अंश के रूप में वर्ष पुनः 12 मास का होता है । मास शब्द मा मीयते, मा धातु से मापने के अर्थ में प्रयुक्त किए जाने से बनता है। मास में दो पक्ष होते हैं और प्रत्येक पन्द्रह दिनरात्रि या अहोरात्र का मान होता है। एक अहोरात्र 60 घटी, घड़ियों या 24 घंटों (होरा / hours) के मान का होता है। प्रत्येक घटी पुनः 60 कलाओं (minutes) की और प्रत्येक कला (minute) 60 विकलाओं (seconds) का होता है। प्रत्येक विकला पुनः 60 पलों के मान की कही जाती है। (यहाँ यह क्रम अंश, कला, विकला और पल है, या अंश, पल, कला, विकला है, इस विषय में मुझे स्पष्ट स्मरण नहीं है।)
अब कलाकः या कलाक या क्लाकः या clock इसी 'कला' के रूप हैं जो पुनरावृत्तिपरक होने से निश्चयात्मक कला / विद्या ही है जिसे स्थान या देश के विस्तार में बिन्दु को केन्द्र मानकर रेखा द्वारा उसके चतुर्दिक परिभ्रमण करने से प्राप्त होते हैं। यह हुआ काल का भौगोलिक प्रकार। किसी सरल रेखा के एक सिरे को जब एक स्थिर बिन्दु की तरह केन्द्र मानकर उस केन्द्र के चारों ओर घुमाया जाए तो जो गोलीय विस्तार प्रकट होता है उसे अंश कहा जाता है। इन 360 अंशों के परिभ्रमण से रेखा पुनः अपने उसी स्थान पर आ जाती है, जहाँ से उसने परिभ्रमण प्रारंभ किया था । इसलिए एक वृत्त 360° का होता है। 24 होरा या घंटों में, या 60 घंटियों या घड़ियों में एक अहोरात्र पूर्ण होता है।
इस प्रकार के 15 अहोरात्र का एक पक्ष होता है और ऐसे दो पक्षों का एक मास (month). ऐसे 12 मास का एक वर्ष या वर्त्त या आवर्त्त होता है। इसलिए देश या वर्ष को वर्त्त भी कहते हैं जो वृत् वर्त् वर्तते धातु से बनता है। आर्यावर्त, और इलावर्त या इलावृत्त ऐसे ही बने हैं।
बारह मास बीतने पर पृथ्वी अपनी कक्षा में उसी स्थान पर लौट आती है जहाँ से उसने सूर्य के चारों ओर अपनी कक्षा में घूमना प्रारंभ किया था।
इसे और विस्तार न देकर यहाँ केवल यही कहा जा रहा है कि काल (Time) और देश (Space) दोनों को ही एक ही प्रकार से मापने का यह एक तरीका है और काल, महाकाल के सन्दर्भ में जैसे पुनरावृत्तिपरक होता है, आकाश / स्थान भी उसी प्रकार महाकाश के सन्दर्भ में पुनरावृत्तिपरक होता है।और यह भी कि जैसे समस्त काल वर्तमान के इस क्षण (महाकाल) में समाया है, वैसे ही समस्त आकाश 'यहाँ' के रूप में एक बिन्दु में कीलबद्ध है।
विशेष यह कि ये दोनों माप कोणीय / angular, और वृत्तीय / circular माप, असीमित विस्तारयुक्त काल और स्थान को मापने के लिए एक साधन का कार्य करते हैं।
एक ओर स्थान के संदर्भ में बिन्दु (point) से रेखा (straight line) की उत्पत्ति, और बिन्दु और रेखा से तल (plane) की उत्पत्ति और रेखा तथा तल से त्रिआयामी स्थान (Space) की उत्पत्ति की विवेचना इस प्रकार से की जा सकती है, तो दूसरी ओर, कला, विकला, पल, अंश आदि के द्वारा काल (Time) की उत्पत्ति की विवेचना भी इस तरह से की जा सकती है।
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