कविता : 05-10-2022
स्मृतिशेष : सोचो, साथ क्या जाएगा?
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इस भूमि पर चरण किसके टिक सके हैं?
आगत अनागत चरण किसके रुक सके हैं?
संवेग से जो युक्त थे, संकल्प जिनके साथ था,
वे बढ़ गए आगे, यहाँ क्या झुक सके हैं!
लक्ष्य के संधान में, अलक्ष्य के अनुमान में,
जो मोह-भ्रम से युक्त थे, दंभ के अज्ञान में,
पंकयुक्त इस भूमि पर, कंटकयुक्त इस पथ पर,
ठहर गए इस भूमि पर, गर्व, हठ, अभिमान में,
धँसते चले गए गह्वर में, गर्त में, इस भूमि में,
कर्तव्यपथ से च्युत हुए, निष्कर्ष में, परिणाम में!
यह पथ स्वयं अस्थिर, यह भूमि भी है चञ्चल,
कौन इस पर टिक सका, कौन कभी रुका अचल!
अनगिनत आगत अनागत, चरण इस पर चल चुके,
अट्टालिकाएँ भव्य भवन, इस भूमि पर, बना चुके,
काल के प्रवाह में कुछ मिट गए, कुछ रह गए,
आगत विगत वे अनगिनत, चरण सब चले गए!
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