आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन।।
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते।।१६।।
(गीता अध्याय ८)...
कविता / 06-06-2022
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यह सूखा तृण, अब तक हरा न हो पाया,
बारिश की बून्दोंं से भी तृप्त न हो पाया!
मेरे घर के ही आसपास रहता है कहीं,
मुझसे मिलने आ जाता है कभी यहीं,
बाक़ी दिन यह कहाँ बिताया करता है,
अब तक मैं उससे यह पूछ नहीं पाया!
आज मिला तो उसकी कुछ तसवीरें खींची,
हँसकर ये तसवीरें, दीं उसने भी खुशी खुशी।
जीवन में मेरा हो या ब्रह्माजी का भी यह क्षण,
अज्ञान में ऐसा ही सूखा, है जैसा यह सूखा तृण!
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