July 05, 2022

पानी में छप छप!

मौसम, आया है! मौसम आया है!! 

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हर साल ही तो यह ऋतु एक बार आती है, जैसे कि और दूसरी पाँच ऋतुएँ! धरती इससे पहले की कठोर ग्रीष्म की ऋतु में जैसे तपस्या में डूबी होती है। ग्रीष्म ऋतु से अप्रभावित रहकर, मानों उसे उसका पता ही न हो!

टिटहरियों की नई पीढ़ी आ चुकी है, और दूसरे भी बहुत से नए नए पक्षी दिखाई दे रहे हैं। गुलमोहर अपनी छटा के उत्कर्ष तक पहुँचकर यद्यपि रक्तस्नात तो नहीं, किन्तु रक्तरंजित तो अवश्य ही अब भी दिखलाई देता है।

नीम के फूल हरी निबौलियों से पीली निबौलियों में बदल गए हैं और अब रास्ते पर जहाँ पहले गुलमोहर के फूलों की चादर थी,  वहाँ अब ये निबौलियाँ बिछ रही हैं। मिनटों में आते जाते वाहन उन्हें कुचलकर चले जाते हैं, और एक विचित्र गंध वातावरण में फैल जाती है, जो न तो अच्छी लगती है, न खराब।

दिन भर, और रात्रि में भी, कभी लगातार बारिश होती रहती है, तो कभी मौसम एकदम बदल जाता है। कभी लगता है मौसम घर में नहीं बैठने देगा, तो कभी लगता है कि घर से बाहर ही न निकलने देगा। 

कुछ दिनों पहले तक शाम के समय लोग झिझकते हुए घर से बाहर निकलते थे, तो अब शाम होते होते अगर मौसम जरा भी ठीक हो तो, तुरंत ही निकल पड़ते हैं!

पार्क में पहले विदेशी बबूल के बहुत से छोटे बड़े पेड़ थे जो बड़े  अटपटे तरीके से फैले हुए थे। इन पेड़ों की पत्तियाँ पशु तो सूँघते तक नहीं, खाना तो बहुत दूर की बात है। बहरहाल, इनके घने फैलाव के तले सर्प आराम फ़रमाते रहते हैं। किन्तु अब लोगों ने इन पेड़ों को काटकर लकड़ी इकट्ठा कर ली है और पेड़ों को पूरी तरह जला दिया है। सर्प रात्रि में अब भी यहाँ आते जाते रहते हैं और कभी कभी उनसे सामना भी हो जाता है, किन्तु उनसे डर कर मनुष्य, और मनुष्यों से डर कर वे तुरंत ही दूर भाग खड़े हो जाते हैं। 

इन पेड़ों पर झुरमुटों के बीच अनेक छोटी छोटी चिड़ियाँ छोटे छोटे घोंसले बनाती हैं, जो काँटों के बीच बहुत सुरक्षित होते हैं। पेड़ों पर अनेक छोटे छोटे कीड़े पतंगे उनके लिए आहार होते हैं और जीवन, जीवन का आधार होता है। इन्हीं वृक्षों, झाड़ियों के सूख जाने पर रात्रि में मकड़ियाँ इन पर अपना जाल फैला लेती हैं । कुछ कीड़े, कुछ चींटियाँ उनका शिकार होकर उस जाल में फँसकर, उनका भोजन बन जाते हैं।

बारिश का मौसम ख़त्म होते होते इन पर रात्रि में गिरते ओस के कण, असंख्य मोतियों की एक झालर फैला लेते हैं, और सुबह की धूप के रंग उन्हें सिन्दूरी / केसरिया रंग में रंग देते हैं।

शरद भी एक और ऋतु है, शरद सुहावन ऋतु ।

अभी तो लगता है कि प्रकृति जैसे थक गई हो और सब अत्यंत शान्त और स्तब्ध सा हो जाता है। हालाँकि अभी पूरे दो महीने हैं शरद का आगमन होने के लिए। 

अभी तो पानी में छप छप करना अच्छा लग रहा है! 

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"कुछ भी!"

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