February 24, 2021

वह थोड़ा सा समय!

 कविता / 24 02 2021

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जो बचा रखा है ज़िन्दगी ने मेरे लिए, 

चाहता हूँ जीना उसे सिर्फ़ अपने लिए! 

वह अनिश्चित भविष्य जो मिला है जिसको, 

नहीं मैं जानता, पर चाहता हूँ जानना उसको!

उस कसौटी पर नहीं, जो थी वर्तमान या अतीत,

बिलकुल नया ही समय, जिसे करूँगा मैं व्यतीत!

सोचते होंगे आप यह कैसे हो सकेगा मुमक़िन,

मुझको है यक़ीन पूरा, कर सकूँगा मैं लेकिन!

कर्तव्य या आदर्श नहीं, ध्येय या संघर्ष नहीं, 

करना है अब मुझे केवल, है जो भूमिका वही! 

और इस करने में, न अधिकार है, न है अपेक्षा,

न ही पलायन करना है, मुझे न करना है उपेक्षा!

क्योंकि क्षण भर भी किसी का, कर्म से विरहित नहीं, 

हर कोई है वही करता, प्रकृति से है जो तय वही !

इसलिए निश्चिन्त हूँ मैं, फिर भी न छोडू़ँगा विवेक,

भय नहीं, आशा नहीं, संशय नहीं बस निश्चय एक! 

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