धर्म और कर्म
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प्रश्न :
क्या यह सत्य है कि प्रत्येक कर्म में ही उसका नाश बीजरूप में विद्यमान होता है?
उत्तर :
अवश्य क्योंकि "कर्म" कल्पना ही है और सभी कल्पनाएँ सतत उत्पन्न और विलीन होती रहती हैं।
प्रश्न :
और धर्म?
उत्तर :
यदि धर्म, "कर्म" है, तो अवश्य ही उसके संबंध में भी यही सत्य है।
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