संत ज्ञानेश्वर
--
सन् १९७० में कॉलेज की शिक्षा के प्रथम वर्ष में मेरी दोस्ती शिव गोयल तथा उसके मित्र ओमप्रकाश जाधव से हुई।
ओमप्रकाश के घर पर गुजराती पत्रिका अखंड आनन्द पढ़ते पढ़ते मैंने गुजराती भाषा को सीख लिया। आगे चलकर इसका लाभ मुझे यह हुआ कि वर्ष १९८६ में जब नौकरी के दौरान मेरा स्थानांतर राजकोट हुआ तो मुझे संत ज्ञानेश्वर द्वारा मूलतः मराठी में रचित ग्रन्थ "अमृतानुभव / अनुभवामृत" का श्री जे.कृष्णमूर्ति की एक प्रशंसक सुश्री विमला ठकार द्वारा लिखित गुजराती अनुवाद पढ़ने को मिला, तो बहुत खुशी हुई।
इस ग्रन्थ के इस गुजराती अनुवाद से मेरे गुजराती भाषा के ज्ञान में बहुत सुधार हुआ । पुस्तक को मूल भाषा मराठी में तो मैं वर्ष १९९३ के बाद ही पढ़ पाया। बाद में कभी वर्ष २००४ के बाद इसका श्री रमेश बालसेकर द्वारा लिखा गया अंग्रेजी अनुवाद भी पढ़ने को मिला, जो अत्यन्त विद्वत्तापूर्ण है। किन्तु जो भाव मैं मूल मराठी ग्रन्थ से ग्रहण कर सका उसे अंग्रेजी से ग्रहण कर पाना मेरे लिए अनावश्यक और कठिन ही था।
फिर कभी इस ग्रन्थ का कौतूहलवश ही संस्कृत और हिन्दी में अनुवाद करना चाहा, तो उसे "आकाशगंगा" नामक मेरे ब्लॉग में क्रमबद्घ पोस्ट किया।
कुछ अध्याय करने के बाद किसी कारण से वह कार्य अब तक अधूरा ही है।
वास्तव में मुझे लगता है कि किसी कार्य को सुनियोजित तरीके से कर पाना मेरे लिए कभी संभव ही नहीं है।
फिर भी किन्हीं कारणों से प्रयास चलता रहता है।
यदि किसी को मेरे ब्लॉग में रुचि हो तो मुझे यह जानकर थोड़ी खुशी तो होगी ही। यद्यपि मैं अब भी नहीं कह सकता कि संस्कृत भाषा का मेरा ज्ञान कितना प्रामाणिक और ठीक है। यही बात मेरे हिन्दी के अतिरिक्त अन्य भाषाओं के ज्ञान के बारे में भी सत्य है।
--
No comments:
Post a Comment