दो कविताएँ
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1. ’कुछ भी!’
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यह फूल खिला ये रंग उड़े,
आकर्षित तितली भृंग उड़े,
सुरभि-संदेसे फैले चहुँ ओर,
झोंके-समीर अनंग उड़े।
उमड़ी कल्पना भावना भी,
हम बहकर उनके संग उड़े,
सपने कौतूहल के सारे,
खुलकर बिखरे वे रंग उड़े ।
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2. लिखना / समझना
मैं माँ लिखूँगा,
तुम स्नेह समझ लेना,
मैं पानी लिखूँगा,
तुम प्यास समझ लेना,
मैं गीत लिखूँगा,
तुम प्रीत समझ लेना ...!
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1. ’कुछ भी!’
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यह फूल खिला ये रंग उड़े,
आकर्षित तितली भृंग उड़े,
सुरभि-संदेसे फैले चहुँ ओर,
झोंके-समीर अनंग उड़े।
उमड़ी कल्पना भावना भी,
हम बहकर उनके संग उड़े,
सपने कौतूहल के सारे,
खुलकर बिखरे वे रंग उड़े ।
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2. लिखना / समझना
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मैं बाबा लिखूँगा,
तुम प्रणाम समझ लेना,मैं माँ लिखूँगा,
तुम स्नेह समझ लेना,
मैं पानी लिखूँगा,
तुम प्यास समझ लेना,
मैं गीत लिखूँगा,
तुम प्रीत समझ लेना ...!
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