॥ उल्लूक दर्शनम् ॥
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कुशयनम् रात्रौ तस्य निवसति अगेहे कुशासु ।
कुशासनस्थो स्वपत्यपि उल्लूको मुनि कौशिको ।।
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अर्थ :
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रात्रि में सोना उसके लिए वर्ज्य है। कुशयुक्त उजाड़ स्थान में वह किसी स्थायी घर की चिंता से रहित निवास करता है। कुशा (घास) आसन पर बैठकर निद्रा (समाधि) सुख पाता है, उल्लूक को इसलिए कौशिक भी कहा जाता है।
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कुशयनम् रात्रौ तस्य निवसति अगेहे कुशासु ।
कुशासनस्थो स्वपत्यपि उल्लूको मुनि कौशिको ।।
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रात्रि में सोना उसके लिए वर्ज्य है। कुशयुक्त उजाड़ स्थान में वह किसी स्थायी घर की चिंता से रहित निवास करता है। कुशा (घास) आसन पर बैठकर निद्रा (समाधि) सुख पाता है, उल्लूक को इसलिए कौशिक भी कहा जाता है।
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