आज की कविता / सबब
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साँस लेना भी ख़ता ही तो है,
जिन्दा रहना भी सज़ा ही तो है,
कौन सा है किसका सबब क्या मालूम,
सोचने मेँ इसका मज़ा भी तो है!
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साँस लेना भी ख़ता ही तो है,
जिन्दा रहना भी सज़ा ही तो है,
कौन सा है किसका सबब क्या मालूम,
सोचने मेँ इसका मज़ा भी तो है!
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