आज की संस्कृत रचना
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त्रिपथगाम् धारयति शम्भू जटायाम् वेणीमिव ।
तथापि प्रसरयन्ति ताः व्याप्त्वाखिलाः जगतीः।।
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अर्थ : यद्यपि भगवान शम्भू अपनी जटाओं को त्रिपथगा (गंगा) रूपी वेणी में बाँध रखते हैं तथापि वे तीनों लोकों और उनसे भी परे सर्वत्र व्याप्त हैं।
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रामो हि व्याप्तो तासु रमते केशवो हरिः।
केशिसूदनः केशे शिवो हि सर्व भूतेषु ।।
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