आज की कविता :20/11/2014
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पता नहीं कितने युगों से,
द्वार पर तुम प्रतीक्षारत,
द्वार मेरा या तुम्हारा,
तय न कर पाया अभी तक!
सोचता हूँ तुम बुलाओ,
या मुझे होगा बुलाना,
द्वार पर आकर तुम्हारा,
इस तरह से मुस्कुराना,
छोड़कर भ्रम में मुझे,
भ्रमित करती बुद्धि मेरी,
द्वार पर तुम प्रतीक्षारत !
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पता नहीं कितने युगों से,
द्वार पर तुम प्रतीक्षारत,
द्वार मेरा या तुम्हारा,
तय न कर पाया अभी तक!
सोचता हूँ तुम बुलाओ,
या मुझे होगा बुलाना,
द्वार पर आकर तुम्हारा,
इस तरह से मुस्कुराना,
छोड़कर भ्रम में मुझे,
भ्रमित करती बुद्धि मेरी,
द्वार पर तुम प्रतीक्षारत !
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