November 26, 2014

॥ अज्ञातपथगामिन् कोऽपि ॥


A Hindi Poem by Anuj Agrawal and its Sanskrit rendering by me :
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समय की डुगडुगी बजाते बढ़ता जाता है
अज्ञात पगडंडियों से गुज़रता
अपने चिन्ह छोड़ जाता है
पर वो नज़र नहीं आता
देखने वालों को बस रास्ता नज़र आता है ।
सारे चिन्ह उसका पीछा करते हैं
वो हमेशा आगे चलता है
पर कहीं नहीं पहुंचता
कहीं नहीं जाता
उस तक पहुँचने वालों का इंतज़ार करता है ।
उसकी छोड़ी गयी मुस्कुराहट संसार है भूल भुलैया
हर कोई उस में खोया रहता है
वो कोई वजह नहीं बताता
गम्भीर मुद्रा में सोया रहता है
वो समझ नहीं आता
उसकी मुस्कान का रहस्य
कोई उस सा मुस्कुराने वाला ही जान पाता है !
अ से
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॥ अज्ञातपथगामिन्  कोऽपि  ॥
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डमड्डमड्डमड्डमयन् महाकालो
अग्रे सरति नादयन् काल-ढक्काम्
गच्छति अज्ञातचरणपथैः
स्थापयन् त्यक्त्वा निज पद चिह्नान्।
न दृश्यते अपि अन्यान्
अवलोकयन्ति  ते पथमेव तस्य।
येन अनुगच्छति कोऽपि सः.
चिह्नान् सर्वान् अनुसरन्ति  ते तदपि
सैव गच्छति अग्रे सर्वेषाम्।
न पर्याप्नोति लक्ष्यम् कमपि
न च गच्छति कुत्रापि
अपि ईक्षते-प्रति पथमागन्तुकानाम्
ये प्रपद्यन्ते पथम् तस्य।
तस्य स्मितम् हि  लोको
स्मृतिविस्मृतिविभ्रमो
जनाः विस्मृताः तस्मिन्
न वदति सः किमर्थम्।
स्वपिति गभीरामुद्रया ध्यानस्थ सः
न कोऽपि अभिजानाति
गूढ़ो हि तस्य  मर्मम्।
तदपि कोऽपि विरलो
विहसिते तस्य सदृशः
विजानाति सः अवश्यः
कोऽपि एव तस्य तुल्यः ॥
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