December 26, 2009

उन दिनों -39.

~~~~~~~~~~~~~~ उन दिनों -39. ~~~~~~~~~
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एक आह्लाद में बीत रहे थे दिन ! नलिनी को देखकर अपर्णा की याद आती थी । वह षोडशी बाला, जिसे पहली बार 'सर' के घर देखा था । वह नलिनी जैसी तो नहीं थी, लेकिन उसमें कुछ ऐसा ज़रूर था कि नलिनी को देखते ही बरबस उसका स्मरण उठता ही था ।
आज 'सर' के साथ भोजन पर जाना था ।
नलिनी के घर पर । साफ़-सुथरा छोटा सा घर, घर पर छोटा भाई , माता-पिता, और एक बहन । वैसे एक बड़ा भाई और था, जो कहीं दूसरे शहर में नौकरी कर रहा था ।
दोपहर के साढ़े बारह बज चुके थे । जैसे ही हम पहुँचे, नलिनी हाथ जोड़कर स्वागत में दरवाजे पर खड़ी मिली । उसके पीछे उसके माता-पिता, और भाई-बहन । यह मकान पास की ही किसी दूसरी कालोनी में था । कितनी ही बार वहाँ से जाना हुआ था, लेकिन कभी कोई काम नहीं पड़ा था वहाँ जाने का । और तब नलिनी को जानता भी कहाँ था ? हाँ, शायद रवि के अखबार में शायद उसकी रचनाएँ पढ़ते समय नज़रों से गुज़रा होगा, पर याद नहीं आता ।
बाहर लंबा-चौड़ा बगीचा, एक ओर गैराज में खड़ी पुरानी मालूम होती कार, बरामदे में खडा स्कूटर, दो-तीन छोटी बड़ी सायकिलें, एक मोपेड ।
ड्राइंग-रूम भी फैला-फैला सा, अगले आधे हिस्से में 'ड्राइंग-रूम', और पिछले आधे में 'डाइनिंग-रूम' जैसा जान पड़ता था ।
भोजन के समय उसके माता-पिता भी साथ भोजन कर रहे थे, भाई भी । बस बहन और वह खाना परोस रहे थे ।
पूरे समय उसके माता-पिता चुप ही रहे थे । हाँ बाद में ज़रूर हमारी बातें हुईं, -जिस समय नलिनी और उसकी बहन खाना खा रहे थे, और उनकी माँ उन्हें परोस रही थी । वे 'डाइनिंग-रूम' में थे । हम सब अब 'ड्राइंग-रूम' में थे ।
यहाँ अगरबत्तियों की भीनी-भीनी खुशबू अब भी गमक रही थी ।
पिता सरकारी रिटायर्ड अफसर थे । शायद किसी अच्छे पद पर रहे होंगे । लेकिन मैं उनके घर में एक पुराना स्कूटर, और गैराज में खड़ी पुरानी फिएट देखकर उनके अतीत का अनुमान लगा रहा था ।
और जब हम चलने लगे, तो नलिनी हमें उसका कमरा दिखाने लगी । छोटा सा रूम, एक पलंग, दो-तीन कुर्सियाँ, स्लाइडिंग-ग्लास-शटर से बंद किताबों के शेल्फ, एक लम्बी मेज, सामने दीवार पर 'अरुणाचल' का भव्य चित्र । 'अरुणाचल' के चित्र के ठीक दायीं तरफ भगवान् श्री रमण महर्षि का उसी ऊंचाईवाला एक चित्र ।
पीछे की दीवार पर जे. कृष्णमूर्ति भी मौजूद थे । शेल्फ पर सरस्वती की प्रतिमा, कोने में गणेशजी भी दर्शन दे रहे थे । एक शान्ति और उल्लास, जैसा नलिनी में दिखलाई देता था, वही उस छोटे से कमरे में भी ओत-प्रोत जान पड़ता था ।
जल्दी ही हम वापस हुए ।

>>>>>>>>>>>>>>>>>> उन दिनों -40. >>>>>>>>>

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