~~~~~~~~~~~~~~~~~ प्रतीक्षा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~
****************************************************
~~मैं अगर ख़ुद हूँ एक बेचैनी,
~~क्या ये बेचैनी मिट सकेगी कभी !
~~हाँ, ऐसा भी हुआ है अक्सर,
~~वो लम्हे जो तेरे साथ कभी गुज़रे हैं,
~~किसी बेखयाली में, और किसी बेखुदी में,
~~जहाँ ख़बर भी नहीं आती है मेरे वजूद की कोई,
~~जो मुझे अपने-आपसे बहुत दूर लिये जाते हैं,
~~और उस वक्त यही लगता है,
~~कि वक्त का वह लम्हा कितना छोटा है !
~~कि पलक झपकते बीत जाता है,
~~और छोड़ जाता है मुझको सहरा में,
~~मेरी बेचैनी की गर्म रेत और लू के गर्म थपेड़ों में,
~~और वक्त फ़ैल जाता है,
~~-बेहिसाब, दरिया सा,
~~एक अंतहीन सहरा सा ।
~~और बेचैनी भटकती रहती है,
~~क़दम-दर-क़दम,
~~क्या ये बेचैनी मिट सकेगी कभी ?
~~क्या मैं मिट सकूँगा अभी ?
~~मुझे मालूम है, तेरी 'याद' तू नहीं,
~~और न तेरे साथ गुज़रे वक्त की बेखुदी की याद ही है तू,
~~मुझे मालूम है,
~~बेखुदी की, बेखयाली की वह याद बस एक तसव्वुर भर है,
~~फ़िर भी वह तस्वीर कुछ तो सुकून देती है,
~~जैसे तीखी धूप में अपना ही साया,
~~एक झूठा सुकून देता है ।
~~फ़िर भी न जाने क्यूँ लगा करता है,
~~मैं पा सकूँगा,
~~किसी दिन उसको ।
~~इंतज़ार है तब तक ,
~~प्रतीक्षा करूँगा मैं तब तक,
~~इस अंतहीन सहरा में,
~~जिसे 'हयात' कहा जाता है ।
*******************************************************
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment