December 21, 2009
मृत्यु पर ध्यान
~~~~~~~~मृत्यु पर ध्यान~~~~~~~~~~
~~~~~~~~.(मृत्यु-अवधान).~~~~~~~~~
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अंग्रेज़ी कविता :
A Meditation on Death.
का हिन्दी अनुवाद ।
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हवा के झोंके से बुझ जानेवाली दीपक की लौ की भाँति,
हमारा यह जीवन भी विनाश की ओर अग्रसर है ।
सभी चीज़ों में जीवन और मृत्यु के चक्र को देखते हुए,
ज़रूरत है,
मृत्यु के प्रति सजग होने में पारंगत होने की ।
जैसे बहुत धन, यश प्राप्त कर लेनेवाले भी,
अवश्य ही एक दिन मर जाते हैं,
वैसे ही जिसे मृत्यु कहते हैं,
मुझे भी कदापि नहीं छोड़ेगी ।
वह सदा बुला रही है,
आओ ! -मेरे पीछे आओ !!
मृत्यु जन्म का सच्चा साथी है,
और कभी पीछे नहीं रहती ,
(साथ रहती है उसके, हर क्षण )
एक अवसर की तलाश में,
-किसी युद्धरत 'सामुराई' की तरह ।
जिसे हम अपना जीवन कहते हैं,
उसकी गति को रोका नहीं जा सकता,
और नहीं बदल सकते,
उसकी दिशा को हम ।
यह अपने अंत की ओर दौड़ रहा है ।
-जैसे सूरज दौड़ता है,
-पश्चिम की ओर ।
जो हमारी दृष्टि में शक्ति और बुद्धि में हमसे बहुत बड़े हैं,
मृत्यु उन्हें भी खींच ले जाती है कभी-न-कभी ।
फिर मेरे जैसे अदना से आदमी की हैसियत ही क्या है ?
क्योंकि यह मेरा जीवन कितनी ही दृष्टियों से अपूर्ण है ।
हर क्षण ही मरता हूँ मैं,
किसी नए सार्थक पुनर्जन्म की उम्मीद के बिना ही ।
हमारा जीवन इतनी अधिक अनिश्चितताओं से भरा है,
और फिर, इसकी लम्बाई को जान पाना भी तो है नामुमकिन,
हृदय में भावी मृत्यु के भय और उद्वेग के रहते हुए,
दिन-प्रतिदिन जीते रह पाना ही बहुत मुश्किल है ।
और ऐसी कोई संभावना ही नहीं कि जीवन का अंत मृत्यु में नहीं होगा ।
भले ही वह बूढ़े हो जाने पर भी क्यों न हो ।
मृत्यु हमारे स्वभाव का ही एक हिस्सा है ।
जैसे पकने पर फल टपक जाता है,
जैसे कुम्हार का घड़ा किसी दिन अवश्य ही फूटकर मिट्टी हो जाता है ।
वैसे ही हमारी ये अस्थियाँ भी,
(जिन्हें हम हड्डी कहते हैं,)
एक दिन टूटकर बिखरकर समाप्त हो जायेंगी ।
युवा, बूढ़े, मतिमंद और विद्वान् भी,
सभी हैं, मृत्यु के हाथों की पहुँच में ।
और हम भली-भाँति जानते ही हैं,
कि अंत भी सुनिश्चित ही है ।
सभी बनी हुई चीज़ें अनित्य हैं,
सभी बनती हैं, और फिर मिट जाती हैं ।
परिस्थितियाँ हमें जन्म देती हैं,
और फिर परिस्थितियाँ ही हमें मृत्यु भी देती हैं ।
हमारा यह शरीर, और मन भी,
जल्दी ही धरती पर पड़ा होगा,
-'धराशायी' !
जैसे नदी के प्रवाह में बहती लकड़ी के व्यर्थ टुकड़े को,
नदी तट पर फेंक देती है,
हमारी चेतना विलीन हो जायेगी, और मन भी हो रहेगा नि:शेष,
पानी में फूटते किसी बुलबुले जैसा ।
-हवा होकर ।
इस संसार में हम अनामंत्रित ही चले आये हैं,
और यहाँ से हमें कब विदा होना है,
इसे पूछने की अनुमति लेना भी ज़रूरी नहीं ।
हम जन्म में आते हैं, जो सदा समाप्त होता है,
-मृत्यु में ।
जैसे हम आते हैं, वैसे ही चले भी जाते हैं ।
लौ के बुझ जाने पर,
क्या दीपक आँसू बहाता है ?
शोकग्रस्त नहीं,
सजग होओ !
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मूल कविता
A Meditation on Death - http://mindfulpath.blogspot.com/
(published on Tuesday, September 1,2009)
के लिए,
मेरी fav sites में
Buddha-'s Messages
पर जाएँ ।
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