~~~~~~~~~~~~नाद-ब्रह्म~~~~~~~~~~~~~~
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सृष्टि के 'प्रारंभ' से,
जिसे वे बिग-बैंग कहते हैं,
और उससे भी पहले से,
-उसके साथ-साथ, और उसके अनंत आवर्त्तनों के अंतराल में,
'सम्यकत्त्वेन आयाति / अयति वा,
'कल्यते कलयति वा,' - से परिभाषित किए जानेवाले -'समय' अथवा 'काल' से अस्पर्शित,
परमाणु के अन्तरिक्ष में भी व्याप्त विराट आकाश और तरंग-रश्मि !
अणु-अणु में,
कण-कण में,
चर-अचर में,
'प्रकारेण आनयति यत्तत्प्राण: ,
चेतयति चयति वा तच्चेतस '
से विभूषित,
चेतना और प्राणों के पारस्परिक नृत्य के स्पंदन में,
दिग-दिगंत की दूरियों और अपने ही उरांतर की अंतरंगता में,
-मुझमें और तुममें,
सबमें ओत-प्रोत,
सब तुममें ही तो ओत-प्रोत है !!
संगीत के सुरों में,
पायल की खनक में,
वेणु की कसक में,
तबले की गमक में,
झूलों की रमक में,
तारों की चमक में,
अश्रु-कणों और स्मित की ऊर्मियों में,
सागर में सरिता में,
दृश्य में, दृष्टा में,
और उनके दर्शन की लीला में,
हे नाद-ब्रह्म !
कहाँ नहीं हो तुम ?
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December 08, 2009
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