वक्त.
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कभी दोस्त, कभी दुश्मन, कभी दुनिया,
इश्क की राहों में रोड़े भी कई हैं ।
कभी अपने, तो कभी परायों के,
-और कभी किराए के,
सियासत की जंग में घोड़े भी कई हैं ।
कसमें, - कसमें थीं, वादे, -वादे थे,
निभाये हैं कुछ मगर तोड़े भी कई हैं ।
कतरा-कतरा करके ही सही,
दर्द दरिया ने भी जोड़े भी कई हैं ।
वक्त के कितने चेहरे ज़ाहिर हैं,
सच्चे -झूठे हैं, उसने ओढ़े भी कई हैं ।
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